समीर की रूह से सच्चा प्यार

समीर की रूह से सच्चा प्यार

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अमावस्या की काली रात थी। तेज हवा चल रही थी। बारिश भी हो रही थी। रास्ता सुनसान था। चारों तरफ धुप्प अंधेरा छाया हुआ था। दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था। जरा रुकिए...मैं आपको अपने बारे में बताना तो भूल गई। मैं प्रिया हूं। एक सॉफ्टवेयर कंपनी में जनरल मैनेजर हूं। इस शहर में अकेली रहती हूं। मेरे माता-पिता वाराणसी में रहते हैं। मेरी सगाई हो गई है। मेरी उम्र अभी 30 साल है। एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर होने की वजह से मैं भूत-प्रेत में विश्वास नहीं करती। यह क्या आज मुझे क्या हो, गया है। खराब मौसम और चारों तरफ फैले अंधेरे में मुझे डर क्यों लग रहा है। खैर मैं मन ही मन भगवान का नाम लेकर आगे बढ़ने लगी। बारिश की वजह से कोई ऑटो भी नहीं मिल रहा था। मैं सोच रही थी कि कहीं कोई सिर छुपाने की जगह मिल जाए। इधर, फोन की घंटी बजती ही जा रही थी। मैंने उसे पॉलीथिन में लपेट कर रख दिया था। इसलिए फोन भी उठा सकती थी। फोन भीगने का डर था। अभी एक माह पहले ही 60 हजार का नया फोन लिया था।

चलते-चलते दो किमी पैदल चल चुकी थी। ऑफिस में दौड़-धूप की वजह से पहले ही थक गई थी। आज कंपनी के मालिक का दौरा जो था। कार खराब होने की वजह से सुबह भी ऑटो से जाना पड़ गया था। उस पर पैदल चलने से शरीर एकदम थक सा गया था। एक-एक कदम चलना भारी पड़ रहा था। मुझे याद आने लगा कि दो साल पहले ऐसी ही तूफानी रात में तो मैं समीर (जो अब मेरा मंगेतर है) से मिली थी। तब भी ऐसे ही हालात थे। समीर ने मुझे घर पहुंचाया था। पहली ही मुलाकात में पहली ही नजर में हम दोनों में प्यार हो गया था। समीर ने बताया था कि उसके माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। इसके बाद हम दोनों में रोज घंटों बात होने लगी। समीर मेरे माता-पिता से मिला। उनको भी समीर पसंद आ गया था। उन्होंने समीर के साथ मेरी सगाई भी करवा दी। इधर कुछ दिनों से समीर का फोन न आने से मैं बहुत परेशान थी। चलते-चलते थोड़ी दूर पहुंची तो पीले रंग का एक दोमंजिला मकान दिखा। उस घर से रौशनी आ रही थी। मैंने मन ही मन सोचा कि यहां आसरा मिल जाए तो। मैंने उस घर की घंटी बजाई। कुछ देर बाद बुजुर्ग आदमी ने दरवाज़ा खोला। उनके साथ एक बुजुर्ग महिला भी थीं। मुझे देखती ही उन्होंने कहा कि "बेटी तुम तो बहुत भीग गई हो। अंदर आ जाओ।"

बुजुर्ग महिला ने कहा कि "मैं कपड़े दे देती हूं।" मैं अंदर चली गई। घर में हर चीज करीने से सजा था। फिर भी महसूस हो रहा था कि कुछ कमी है यहां। बुजुर्ग दंपति के चेहरे उदास थे। खैर बुजुर्ग महिला कपड़े लेकर आईं। वे कपड़े शायद उनकी पोती के थे, जो शायद मेरी ही उम्र की होगी। मैंने उनसे कहा कि "मैं आपको दादी कह सकती हूं। मेरी दादी भी बिल्कुल आपकी तरह ही हैं।" उन्होंने कहा कि "क्यों नहीं।" मैंने कहा, "दादी आपके साथ और कौन-कौन रहता है।" वह बोली, "अब इस घर में हमारे अलावा कोई और नहीं रहता है। एक पोती शिवानी है, जो कनाड़ा पढ़ती है। साल भर में एक बार आ जाती है।" मैंने पूछा कि "आपके बेटे-बहू कहां रहते हैं।" यह सुनते ही दादी की आंखों से आँसू बहने लगे। दादा जी की भी आंखे नम हो गईं। उन्होंने बताया कि "उनके बेटे और बहू की दो साल पहले हादसे में मौत हो गई। उसी हादसे में हमारे पोते समीर की भी मौत हो गई।" समीर नाम सुनते ही मैं चौक गई। तभी दादी ने अपने बेटे-बहू और पोते की फोटो मुझे दे दी। फोटो देखते ही मुझे जैसे करंट लग गया। उसमें समीर भी खड़ा था। मैं स्तब्ध सी रह गई। क्या जिस समीर से मैं दो साल से प्यार कर रही हूं। उसकी दो साल पहले ही मौत हो गई थी।

मैं समीर के रूह से प्यार करती थी। मुझे याद आने लगा कि समीर से जब भी फोटो साथ खिंचाने की बात करती थी, वह मना कर देता था। मैंने बचपन में सुना था कि भूत या आत्मा की फोटो खींचने पर नहीं आती है। मैं हैरान और परेशान थी। मैंने उसी समय फोन पर यह बात माँ और पिता जी को बताई। मैंने दादा और दादी को बताई। मैंने इनसे कहा कि भले ही समीर की रूह से मैंने प्यार किया है, पर मैं अब इस रिश्ते को निभाऊंगी भी। अब आप मेरे साथ रहेंगे। आप दोनों की देखभाल भी मैं ही करूंगी। शिवानी की शादी भी मैं अपने चचेरे भाई से करा दूंगी। तभी मैंने देखा कि फोटो में से समीर की रूह निकल कर आ रही है। वह सिर्फ मुझे ही दिखाई दे रहा था। उसने मुझसे कहा, "आई लव यू प्रिया। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। दो साल पहले मैंने तुम्हें देखा था, जब मैं जिंदा था। इससे पहले कि मैं प्यार का इज़हार करता था, काल ने मेरी जिंदगी छीन ली। तुम्हारे प्यार और दादा-दादी व बहन शिवानी की चिंता से मैं यहीं रूह बनकर भटकता रहा। अब तुमने मेरी सारी चिंताएं दूर कर दी हैं। अब मुझे मुक्ति मिल गई है। अलविदा। " 


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