मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं

मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं

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चुनाव को बीते एक माह बीत चुके थे। आज चुनाव परिणाम आने वाला था। हर तरफ चर्चा का दौर था कि अमुक प्रत्याशी जीतने वाला है। रामबुझावन का भी दिल धड़क रहा था। उसने राम मनोहर के लिए काफी मेहनत की थी। उम्मीद थी कि राम मनोहर जीतेंगे तो उसकी झोपड़ी पक्की हो जाएगी। साथ ही यह भी डर सता रहा था कि अगर दूसरा प्रत्याशी हरिचरण चुनाव जीत गया तो छोड़ेगा नहीं। वह भी चुनाव प्रचार करने के लिए कह रहा था। राम बुझावन बेसब्री से चुनाव परिणाम का इंतज़ार कर रहा था। कभी खबर आती कि हरिचरण का पलड़ा भारी चल रहा है तो कभी सूचना आती कि राममनोहर तीन हजार मतों से आगे चल रहे हैं। सबकी धड़कनें पल-पल आती सूचनाओं से घट-बढ़ रही थीं। रामबुझावन भी मतगणना स्थल के बाहर डटा हुआ था। उधर, परिणाम को लेकर शहर में गहमा-गहमी बढ़ी हुई थी। हर कोई एक सधे राजनीतिक विश्लेषक की तरह अपना निष्कर्ष पेश कर रहा था और दावा भी कर रहा था कि परिणाम ऐसा ही आएगा। परिणाम अपने कहे के मुताबिक न आने पर नाम बदलने की कसम भी खा रहा था। खैर चुनाव परिणाम आया और राममनोहर चुनाव जीत गए। यह खबर सुनते ही राममनोहर सपनों की दुनिया में खो गया कि अब उसका पक्का घर होगा। दरवाजे पर फटपटी (मोटरसाइकिल) खड़ी होगी। तभी राममनोहर माला पहने मतगणना स्थल से बाहर निकले। अन्य कार्यकर्ताओं ने कंधे पर उठा लिया और गाड़ी की तरफ ले गए। राममनोहर ने एक बार रामबुझावन की तरफ देखा और फिर मुंह मोड़ लिया। रामबुझावन से सोचा आज जीत की खुशी में साहब बिजी हैं। कल मिलूंगा। यह सोचकर वह घर पर गया और खाना खाकर बिस्तर पर लेट गया। उसने रात करवटें बदलकर काटी। सुबह होते ही वह रामनोहर के घर पहुंचा। चुनाव के दिनों में जो दरबान बड़े प्यार से मिलता उसने उसे गेट पर ही रोक दिया। दरबान ने कहा कि साहब बिजी हैं। बाद में आना। लौटते समय राम बुझावन ने सुना कि नए चुने गए विधायक राममनोहर दरबान से कह रहे थे कि चुनाव बीत गया है। अब ऐसे ऐरे-गैरे लोग घर में नहीं दिखने चाहिएं।


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