मतलबी दुनिया में अनमोल रिश्ते
मतलबी दुनिया में अनमोल रिश्ते
'मतलबी हैं लोग यहां मतलबी जमाना, जिसको हमने अपना समझा निकला वो बेगाना' धीमी आवाज में बज रहा यह संगीत रेस्टोरेंट के माहौल को गंभीर बना रहा था। मि. आकाश कोने में एक टेबल पर बैठकर अपने खास दोस्त का इंतजार कर रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि उनका दोस्त उनकी आर्थिक मदद करेगा और उनकी समस्या हल होगी। यह सोचते-सोचते वह अतीत में खो गए। घर में काफी रौनक रहती थी। कपड़े का काफी बढ़िया कारोबार चल रहा था। शेयर बाजार में भी अच्छा-खासा पैसा लगाया था। हर उत्सव व खास मौकों पर घर में आयोजन होते थे। मित्र व रिश्तेदार बड़ी संख्या में भाग लेते थे। यह देखकर मि. आकाश निहाल हो जाते थे। उनको खुद की किस्मत पर अभिमान होता था पर उनको पता नहीं था कि समय एक सा नहीं रहता। एक दिन कपड़ों के गोदाम में आग लग गई। सबकुछ राख हो गया। शेयर के भाव भी काफी गिर गए। इससे शेयर बाजार में भी उनका पैसा डूब गया। दुकान का बीमा था, लेकिन कम का था। बीमा से कुछ पैसे मिले तो काम थोड़ी आगे बढ़ा। ऐसे समय में रिश्तेदारों व दोस्तों ने भी साथ छोड़ दिया था। मि. आकाश हर तरफ से निराश हो चुके थे। ऐसे संकट के समय में अचानक उनके दोस्त अनिल का फोन आया। उसको उनके बारे में पता चल गया था। उसने उनको आर्थिक मदद देने की पेशकश की और रेस्टोरेंट में बुलाया। अंधे को क्या चाहिए थीं दो आंखें। मि. आकाश तुरंत रेस्टोरेंट पहुंचे। अभी मि. आकाश अतीत में ही खोए थे कि किसी ने उन्हें झकझोरा। ध्यान टूटा तो सामने अनिल खड़ा था। बात शुरू हुई तो पुरानी यादें ताजा हो गईं। अंत में अनिल जब पैसों की चर्चा किए बिना चलने के लिए उठा तो मि. आकाश निराश हो गए। तभी अनिल ने दस लाख का चेक निकाल के उनके हाथ में दे दिया। इसके बाद जाने लगा। मि. आकाश उसे जाते देखते रहे।