सीने मा आग

सीने मा आग

2 mins
350


"मान जा गोमती, काहे ज़िद ठाने बैठी है। खुद तो भूखी प्यासी बैठी है इंहा औरन की मेहरारु को भी लिये बैठी है। छोड़ ये सब, घर चल" "न हम्म न जाब, ये भट्टी अब कितने लोगन के परान लेगी। गन्गू, धनिया, रामरती, विमला, आपन मत्थे का सिन्दूर पोछे बैठी है । सब्बै छोटन छोटन लरिका की महतारी है, गन्गू की तरफ देख, दुधमूँहा बच्चा लई के केहिके दरवज्जे जायेगी। अब तो फैसला हुई के रहेगा। " "कच्छु न होब।

ठेकेदार केर बड़े बड़े लोगन कने पैचान है।

तुम लोगन की जान जई । मरदन की मजूरी जई । भुख्खे मरिहैं सब " "चाहें जो होय, अब हम ई भट्टी न जरन देब। अगर ई जरिहै, तो हम सारी लुगाइयाँ बाहिमें कूद के पिरान दई देँगी, लख्खी के बापू । " पिछले दो महिने से जैचंद ठेकेदार इस गाँव से मजदूरों को ट्रक मे भरकर, शहर, एक गगनचुम्बी इमारत के निर्माण मे मजदूरी के लिये ले जाता और शाम को इसी तरह गाँव छोड़ता।

और यहीं गाँव की टेकरी के पास उसने देसी दारू की भट्टी भी खोल दी। शाम लौटने के बाद थके हारे मजदूरों की आदत हो गई नशा करने की। ठेकेदार का लालच और भट्टी की आग तेजी से दहकने लगी। अब नशा और तेज हो, शराब मे यूरिया और बेसरम के पत्ते, केमिकल भी मिलाने लगे। और ये नशा प्राण घातक बन गया मजदूरों का। गोमती और गाँव की औरतो ने पहिले विरोध किया । और अब पिछले तीन दिनो से भूखी प्यासी बैठी है बुझी हुई भट्टी को घेर कर।

"रहन देव बचवा । अब भट्टी की आग न जलिहै, काय से की इन लुगाइयन के सीने मा आग सुलग गई है नसा के विरोध मे"गोमती के बूढ़े ससुर ने अपने बेटे से कहा।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama