श्रीराम का ऋण....
श्रीराम का ऋण....
एक प्रेरक कथा...
जो हमने कभी ना कभी.. कहीं ना कहीं.. किसी ना किसी से सुनी होगी.. या रामायण में देखी भी होगी..।
भगवान श्री राम को जब वनवास की सजा मिली थी... तब वो माता सीता के साथ जंगल जंगल भटक रहे थे..। भटकते भटकते माता सीता को प्यास लगी तो उन्होंने प्रभु श्रीराम से कहा..। राम जी सीता जी को एक वृक्ष के समीप बिठाकर आस पास पानी की तलाश करने लगे.... कुछ देर यहाँ वहाँ भटकने के बाद भी जब उन्हें पानी नहीं मिला तो एक मोर उनके पास आया और बोला :- स्वामी यहाँ से कुछ दूरी पर एक जलाशय हैं... मैं आपको वहाँ लेकर चलता हूँ.. जंगल बहुत घना हैं इसलिए रास्ता भटकने का भय हैं... इसलिए मैं मार्ग में अपना एक पंख गिराता हुआ आगे चलता हूँ.. आप उसके सहारे जलाशय तक आइये..।
मोर ने ऐसा ही किया तो अपना पंख एक एक करके राह में गिराता गया..।
यहाँ यह बात जान ले की मोर अपने पंखों का त्याग अपनी स्वेच्छा से एक नियमित समय पर ही करता हैं.. अगर वो इस तरह अपने पंखों को गिराएगा तो उसकी मृत्यु निश्चित हैं..।
जलाशय तक पहुंचते पहुंचते ऐसा ही हुआ ... जलाशय के निकट पहुंचते ही मोर अपनी अंतिम सांसे ले रहा था.. तभी प्रभु श्री राम वहाँ पहुंचे.. उन्होने मोर की ऐसी अवस्था देखकर कहा:- तुम्हारे इस त्याग ने मुझे तुम्हारा ऋणी बना दिया हैं...। मैं अपना ये ऋण अवश्य चुकाऊंगा..। मेरे अगले अवतार में तुम्हारा यह पंख मेरे सिर की शोभा बढ़ाएगा..।
अगले अवतार यानि कृष्ण अवतार में हम सब जानते हैं की भगवान श्री कृष्ण अपने सिर पर हमेशा मोरपंख लगाते थे...।
इस पूरे कथानक में कहने का तात्पर्य यह हैं की जब भगवान श्री राम को अपना ऋण उतारने के लिए दूसरा अवतार लेना पड़ा तो हम तो फिर भी मामुली से इंसान हैं..। ना जाने हम कितने ऋणानुबंध से बंधे हुवे हैं..। इसलिए इसी जन्म में सभी ऋणों से मुक्त होकर जाए..। अपने कर्म से अपने वचनों से किसी भी प्रकार का ऋण बाकी ना रखें..।
राम नाम को अंक हैं...
सब साधन हैं सुन..।
अंक गएं कछु नाथ नहीँ....
अंक रसे दस गुन..।।
अर्थात :- तुलसीदास जी कहते हैं.. इस संसार में सिर्फ राम का नाम ही अंक हैं..। इसके अतिरिक्त सब शून्य हैं...। अंक के न रहने पर कुछ प्राप्त नहीं होता.. लेकिन शून्य के पहले अंक के आने पर वो दस गुना बढ़ जाता हैं..। अर्थात राम नाम का जाप करने से ही वो दस गुना बढ़ जाता हैं..।
जय श्री राम...।