STORYMIRROR

Diya Jethwani

Drama Romance

4  

Diya Jethwani

Drama Romance

अफसाना..

अफसाना..

12 mins
11

कभी कभी कुछ लम्हे हमारी जिंदगी में ऐसे आ जातें हैं जिन्हें हम चाहकर भी भूला नहीं पाते हैं.....। एक ऐसी याद छोड़ जातें हैं जिनसे हम ताउम्र निकल ही नहीं पाते....।

चंद लम्हों की मुलाकात..... कभी ना भूलने वाली याद बनकर रह जाती हैं....। बात हैं आज से लगभग बारह वर्ष पूर्व... मैं सुनील उर्फ़ सोनू.... अपने आफिस के काम के सिलसिले में दिल्ली से अपने घर जयपुर लौट रहा था...।

ट्रेन की कंफर्म सीट थी....। रात के लगभग नौ ही बजे होंगे कि कुछ  सात  आठ लोगों का ग्रुप मेरे ही बर्थ में चढ़े...। उनमें से तीन चार लड़के थे और एक औरत थी और दो तीन लड़कियां थीं...। सभी लोगों के पहनावे से पता चल रहा था की वो मुस्लिम थे...। औरत को छोड़ कर बाकी सभी लड़कियां जिनकी हाइट औसतन ही थीं वो बुर्के में थीं....। उनके शरीर की बनावट और आपसी बातचीत से पता चल रहा था की वो सभी उस औरत की बेटियां थीं....। कुछ देर की चिल्लमपिल्लि के बाद सभी अपनी अपनी सीट पर बैठ गयें थे.....। वो लोग अपने साथ कुछ खाने पीने का सामान भी लाए थे... जो वो एक दूसरे को दे रहें थे....। घंटे भर तक उन सभी की ऐसे ही आपस में बातचीत और मस्ती मजाक चलता रहा....। मेरी सीट उसी बर्थ में ऊपर की तरफ़ थीं.....। मुझे शोर शराबा बिल्कुल पसंद नहीं था....। इसलिए मैं उनकी बातचीत से थक कर नीचे उतर आया और वाशरूम की तरफ़ चला गया....। थोड़ी देर ट्रेन के दरवाजे पर ही खड़ा रहा...। तकरीबन आधे घंटे बाद मैं वापस अपनी सीट पर लौट कर आया तो वहां का माहौल शांत हो चुका था....। मैंने चैन की सांस ली और अपनी सीट पर ऊपर की तरफ़ चला गया....। मेरी सीट के बिल्कुल सामने वाली सीट पर एक लड़की बुर्के में बैठी कुछ पढ़ रहीं थीं.....। तभी नीचे से उस औरत की आवाज आई... :- अफसाना.... बेटा.... अभी सो जा....।

जी अम्मी...।

उस लड़की ने अपनी माँ को जवाब दिया और उसने वहीं बैठे बैठे अपना बुर्का उतार दिया....।

मैंने जैसे ही उसको देखा.... मेरी आंखें फटी की फटी रह गयीं.....। बला की खुबसूरत थीं वो लड़की...। मैं एकटक बस उसे देखे ही जा रहा था....। मुझे होश ही नहीं था की मैं कहां बैठा हूँ....।

अचानक उस लड़की की नजर मुझ पर पड़ीं... वो मुस्कुराती हुई अपना हाथ हिलाकर मुझे होश में लाने की कोशिश कर रहीं थी....।

मैं अचानक सकपका गया और शर्मिदा सा होकर सीट पर मुंह फेरकर लेट गया....।

कुछ देर में बर्थ की लाइटस भी बंद कर दी गयीं.... सभी सोने लग गयें थे...। मैंने पासा पलटकर वापस उसकी तरफ़ देखा... उसकी आंखें भी बंद थीं...। मंद रोशनी में भी उसका गोरा मुखड़ा चांद के जैसा चमक रहा था....। सोती हुई तो ओर भी प्यारी लग रहीं थीं....। मैं फिर से उसे देखता ही रहा....।

तभी अचानक उसने आंखें खोली और मुस्कुराने लगी.... वो सोने का नाटक कर रहीं थी....। इस बार मेरे भी चेहरे पर मुस्कान आ गयीं...। तकरीबन एक घंटे तक हम एक दूसरे को बस देखे ही जा रहे थे... आंखों ही आंखों में बातें कर रहें थे...।

**************************************************

फिर उसने आंख मारकर नीचे उतरने का इशारा किया ओर खुद वाशरूम की ओर चल दी....।

बर्थ के सभी लोग गहरी नींद में थे....। पर पता नहीं क्यूँ मैं चाहकर भी हिम्मत नहीं कर पाया।

दस पन्द्रह मिनट बाद वो वापस आ गयीं.... ओर आतें ही ऊपर चढ़कर थोड़ी नाराज़ होतें हुवे  धीरे से बोलीं... आए क्यूँ नहीं....!!

मैं हिचकिचाते हुवे बोला :- डर लग रहा था...।

वो मुस्कुराई ओर बोलीं :- हम्मम.... मैं समझ गयीं...। आपको डर क्यूँ लग रहा हैं....।

क्यूँ.... बताओ....?

हम मुस्लिम हैं ना.... आपको हम पर भरोसा नहीं है...। हैं ना.... यहीं वजह हैं ना...?

सच तो ये ही था पर उस वक्त मैं कुछ कह नहीं सका...।

मैं कुछ देर के लिए खामोश हो गया.... । वो भी चुप हो गयी..।

शायद वो मेरी चुप्पी की वजह समझ गयीं थीं ओर उसे ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगा....। कुछ देर की खामोशी मुझे बहुत खटक रहीं थीं....।

मैं कुछ कहता उसी वक्त गाढ़ी एक स्टेशन पर रुकी.....। रात का समय था ओर हल्की हल्की ठंड भी लग रहीं थीं...। उस स्टेशन पर गाड़ी दस मिनट रुकने वाली थीं...। मैंने हिम्मत करके खामोशी तोड़ते हुए कहा :- चाय पियोगी......!

उसने जवाब नहीं दिया...।

मैंने फिर हिम्मत करके कहा :- नीचे चलोगी मेरे साथ...?

इस बार वो मुस्कुराई ओर बहुत धीरे धीरे... संभल संभल कर सीट से नीचे उतरने लगी.... मैं भी उसके पीछे पीछे नीचे उतरा...।

रात की वजह से स्टेशन पर गिने चुने लोग ही थे....। हम दोनों एक चाय की स्टाल पर गयें मैं फटाफट दो कप चाय के लाया और उसे एक कप देकर स्टेशन पर ही मौजूद एक बेंच पर बैठने का इशारा किया....।

चाय के एक एक सिप  के साथ हम दोनों की बातें शुरू हुई...।

तुम मुझे आप मत बोलो....। तुम बुलाओ....। वैसे तुम्हारा नाम बहुत खूबसूरत हैं... बिल्कुल तुम्हारी तरह...।

आपको..... सोरी..... तुम्हें मेरा नाम... कैसे....!!

तुम्हारी अम्मी ने जब तुम्हे बुलाया था.... तब पता चला.....।

ओहह....। वैसे तुम्हारा नाम क्या हैं....?

सोनू.... प्यार से सब यहीं बोलते हैं.... वैसे सुनील...।

वाओ..... नाइस नेम..।

अच्छा तुम जयपुर रहतीं हो....?

अरे नहीं नहीं..... हम तो लखनऊ से हैं....। जयपुर तो चाचा के घर शादी में जा रहें हैं..। दिल्ली हम खरीदारी के लिए गए थे...।
ओर आप.... सॉरी.... तुम...?

मैं जयपुर में ही रहता हूँ....। दिल्ली काम से जाता रहता हूँ.....। ये सब तुम्हारे भाई बहन हैं.....?

हां...।

अच्छा एक बात कहूँ....।

हां बोलो ना..!

तुम अपना फोन नंबर दे सकतीं हो....!

एक काम करो तुम मुझे अपना नंबर दे दो.... मैं तुम्हें फोन करूंगी....। क्योंकि अभी हम शादी में होंगे ना तो फोन कभी किसी ओर के पास हो तो...।

हां हां..... मैं समझ सकता हूँ...। लड़कियां इतनी आसानी से नंबर देतीं भी नहीं हैं.... वैसे सच कहूं तो सही भी हैं...।

वो हल्का सा मुस्कूराई ओर बोलीं... चले... गाड़ी का होर्न बज चुका हैं....।

तुम चलों मैं आया...।

वो भीतर चलीं गयीं और मैं चाय वालें को पैसे देकर एक पानी की बोतल लेकर अपनी सीट पर वापस आ गया....।

हमारे बीच अब आंखों ही आंखों में अनगिनत बातें होने लगी...।

कुछ देर की ऐसी खामोशी वाली बातचीत के बाद उसने अचानक वो किया.... जिससे मैं आज तक उबर नहीं पाया हूँ...।
उसने अपने हाथों की उंगलियाँ मेरे हाथों में फंसा ली...। ओर फिर मेरे स्पर्श को हमेशा के लिए अपने जहन में उतारने लगी...।

कुछ देर ऐसे ही हाथों में हाथ डालें हम एक दूसरे से दूर दूर बैठे रहे...। फिर उसने मुझे अपनी सीट पर आने का इशारा किया...।

मैंने डर की वजह से मना कर दिया...। लेकिन उसमें ना जाने कहां से हिम्मत आ गयीं ओर अपनी सीट से ही फांदते हुवे मेरी सीट पर आ आ गयी....। मैं मना करता रहा पर वो कहां सुनने वाली थीं...। वो झट से सीट पर आई और अगले ही पल मेरे गाल पर किस करके वापस जाने लगी...।

ये सब इतना जल्दी ओर अचानक हुवा की मैं आश्चर्य में पर गया... ओर वो वापस अपनी सीट पर जाकर ऐसे मुस्कुरा रहीं थीं... जैसे उसने वो सब पा लिया हो... जो वो पाना चाहती थीं...।

कुछ पलों के बाद मैं खुद से ही शर्म के मारे लाल पीला हो गया था.... । फिर उसने एक कातिल मुस्कान के साथ पूछा... रिटर्न चाहिए जनाब...।

मैं कुछ देर यहाँ वहाँ देखकर ..... रात के अंधेरे का फायदा उठाकर ....इस बार थोड़ी हिम्मत करके....धीरे से उसकी सीट पर गया... और उसे सीने से लगा लिया...। कुछ पल के लिए तो मैं सच में सब कुछ भूल चुका था....। बस उसमें खो चुका था...। ओर वो भी... पूरी तरह से बिना डर के मेरी बांहों में समा चुकी थीं....। कुछ क्षण बाद मैंने उसके गालों को अपने हाथों में लिया और उसके माथे को चुमते हुए बोला :- ये रिटर्न चलेगा ना मोहतरमा....!

मेरे ऐसा कहते ही उसकी आंखों से आंसू बहने लगे....। मैंने आंसू पोंछकर कहा :- क्या हुआ...! रो क्यूँ रहीं हो...!

वो कुछ नहीं बोलीं और फिर से मुझे अपने गले से लगा लिया...। कुछ देर बाद वो बोली... अभी अपनी सीट पर जाओ..... कोई देख ना ले...।

मैंने जातें जातें फिर से उसके गालों को अपने हाथों में लिया ओर इस बार उसके गाल पर एक किस करके लौट आया...।

कुछ देर पहले जो मेरी हालत थीं... अब उसकी ऐसी हो चुकी थीं...।

हम दोनों अपनी अपनी सीट पर फिर से एक दूसरे की आंखों में खो चुके थे....। घंटों तक ऐसे ही एक दुसरे को देखते देखते ना जाने कब सवेरा होने लगा....। ऐसा लग रहा था.... ये सफर कभी खत्म ना हो.... पर हल्की हल्की सूरज की किरणों के पढ़ते ही ... बर्थ में उसके घरवाले एक एक कर उठने लगे थे...। हम दोनों ने पूरी रात जागते हुए गुजार ली थीं....। कुछ ही देर में हम अपने गंतव्य पर पहुंचने वाले थे...। मैंने एक कागज पर अपना फोन नंबर लिख कर उसे वाशरूम की तरफ़ आने का इशारा किया....। मेरे जातें ही कुछ क्षणों में वो भी आ गयी....। मैंने उसे कागज़ दिया ओर कहा.... इसमें मेरा नंबर हैं... प्लीज फोन जरूर करना... मैं इंतजार करूंगा...। फिर ट्रेन की आवाज  का फायदा उठाकर मैंने उसके कानों में आइ लव यू कह दिया.....।

उसके चेहरे पर खुशी देखते ही बनतीं थीं... उसने तुरंत मेरे गाल पर किस किया ओर कहा.... मी टू... जनाब.... पहली नजर में ही हम तुम्हें अपना बना बैठे थे....। दूल्हे मिंया..... हिम्मत इकट्ठा करनी शुरू कर दो.... अगर मुझे साथ ले जाना हैं तो... ।

तुम फोन करना.... हिम्मत अपने आप आ जाएगी....।

इतना कहकर मैं वापस आ गया...। चूंकि हमारा स्टेशन आने वाला था.... इसलिए मैं अब नीचे ही बैठ गया....। उस बर्थ के बाकी सभी लोग भी उठने लगे थे... क्योंकि वो आखिरी स्टेशन था...।

आधे घंटे बाद ही हमारा स्टेशन आया... हम सभी एक एक कर उतरने लगे थे...। मैं जानबूझकर भीड़ का फायदा उठाकर उसके पीछे आकर खड़ा हो गया... ओर उतरते वक्त उसकी कमर में हाथ रखकर उसके कान में धीरे से कहा :- कॉल मी... माय लव...आई एम वेंटिंग फॉर यू....।

बदले में उसने भी पलटकर आंखें झपकाते हुए :- यस माय लव का  जवाब दिया और उतरकर अपने घरवालों के साथ सामान उठाने में लग गयीं....।

स्टेशन से लेकर बाहर रिक्शा स्टैंड तक जब तक हम रिक्शा में नहीं बैठे तब तक हम एक दुसरे को मौका मिलने पर बार बार देखें ही जा रहे थे....।

मेरा सिर्फ उसमें ही ध्यान था... उस वक्त मैंने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया की वो जयपुर में कहाँ जाने वाले हैं..।
अपनी रिक्शा में बैठते ही मुझे इस बात का ख्याल आया...। मैंने अपना माथा पकड़ लिया ओर सोचा कितना बड़ा बेवकूफ हूँ मैं भी... ना रात को हुई बातचीत में उससे पूछा.... ना अभी गोऱ किया...। अगर पता होता तो मैं वहां भी पहुँच सकता था....। अभी अपने ऊपर बहुत गुस्सा आ रहा था....। लेकिन फिर यकायक फोन नंबर का ख्याल आया ओर दिल को सुकून दिया की उसने नंबर लिया हैं.... वो जरूर फोन करेगी....। तब पूछ लूंगा और दौड़ा चला जाऊंगा....।

ये मेरा पहला प्यार था... ओर कहते हैं पहला प्यार कभी भूलाया नहीं जा सकता....। मैं खुश होता हुआ अपने घर आया और अब बस मेरा एक ही काम रह गया था... उसके फोन का इंतजार करना....। पहला दिन तो जैसे तैसे निकल गया... ये सोचकर की शादी वाला घर हैं.... उसे मौका नहीं मिला होगा...।

अगले दिन एक नयी उम्मीद और चाहत के साथ हुई... फोन को अपने सीने से लगाकर चौबीसों घंटों में हर एक मिनट पर स्क्रीन देख रहा था... की कहीं फोन तो  नहीं आया....।

मेरी हालत मेरे घर वालो से भी छिपी नहीं थीं.... क्योंकि ना मेरा खाने में ध्यान था... ना किसी से मिलने और बात करने का मन था....। बस फोन को सीने से लगाए इंतजार करना ही मेरा इकलौता काम रह गया था...। हर पल एक एक साल के जैसा बीत रहा था....।

लेकिन ये इंतजार खत्म होने का नाम ही नहीं ले  रहा...। एक एक दिन करके पूरा हफ्ता निकल गया....। अब मन में तरह तरह के ख्याल आने लगे की कहीं उसे कुछ हुआ तो नहीं.... कहीं नंबर किसी ओर के हाथों में तो नहीं चला गया...। वो किस हाल में होगी.... अब तक तो वापस भी लौट चुकी होगी... आखिर क्या हुआ होगा उसके साथ...।

बीतते दिनों के साथ मेरी भूख, प्यास, नींद सब कुछ खो चुकी थीं...। हमेशा हंसने वाला शख्स आज गहरी खामोशी और अकेलेपन मे खो चुका था...। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की आखिर फोन ना करने का कारण क्या था.... लेकिन इतना भरोसा था की वो झूठी या बेवफा तो नहीं थीं... मैंने उसकी आंखें पढ़ीं थीं... वो आंखें कभी झूठ नहीं बोल सकतीं थीं....। लेकिन मैं अब कर भी क्या सकता था... मेरे पास सिर्फ इतनी जानकारी थीं की वो लखनऊ में रहतीं हैं.... इससे ज्यादा कुछ नहीं था मेरे पास.... ओर वहां जाना या उसे खोजना..... मेरे लिए नामुमकिन था.... सिर्फ एक नाम के सहारे.... इतने बड़े शहर में किसी को खोज पाना आसान भी तो नहीं.....।

वक्त बीतता गया... हर एक बीतते दिन के साथ मेरी उम्मीदें भी दम तोड़ती जा रहीं थीं....। दिन महिनों में और महीने सालों में बदल चुके थे.....। घरवाले अब इस बात से वाकिफ हो चुके थे.....।सभी उसे भूलने का मशवरा देने लगे थे......। घरवालों की समझाइश और जबरदस्ती से मेरी शादी करवा दी गई....।

आज मेरी शादी को आठ वर्ष हो चुके हैं....। ऐसा नहीं हैं की मैं अपनी पत्नी से प्यार नहीं करता.... पर आज भी दिल के किसी कोने में एक उम्मीद हैं की कभी ना कभी एक अंजान नंबर से फोन जरूर आएगा..!

इसी उम्मीद में बारह वर्ष से अपना नंबर तक नहीं बदला हैं.... और ताउम्र बदलूंगा भी नहीं.... क्योंकि मुझे विश्वास हैं.... एक ना एक दिन उसका फोन जरूर आएगा...।

और सामने से आवाज आएगी :- हैलो..... मैं..... अफसा़ना....।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama