कवि हरि शंकर गोयल

Comedy

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कवि हरि शंकर गोयल

Comedy

श्रेष्ठ लेखन

श्रेष्ठ लेखन

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आज सुबह सुबह हंसमुख लाल जी मिल गए। बड़े गुस्से में थे । गुस्से के मारे मुंह से झाग ऐसे निकल रहे थे जैसे यमुना जी में रहने वाले "कालिया" नाग के निकलते थे । हमने कारण पूछा तो भन्नाते हुए कहने लगे "हमें समझ क्या रखा है इन प्रतिलिपि वालों ने ? पहले तो आदत लगा देते हैं । जब आदत लग जाती है तो फिर तड़पाते हैं । यह भी कोई अच्छी बात है क्या" ? 


हमें लगा कि प्रतिलिपि वालों ने हंसमुख लाल जी को फ्री में "वोदका" पिला दी है शायद । अब उसका स्वाद ऐसा लगा कि अब रहा नहीं जाता उसके बिना । मगर खुद पी नहीं सकते । भाव सुनते ही नानी मर जाती है । इसलिए ही शायद भुनभुना रहे हैं चने की तरह । हमने कहा 


"अजी छोड़िए वोदका को । देसी से ही काम चला लीजिए" हमने अपनी औकात के अनुसार फटे जेब से पुरानी बोतल निकाल कर आगे कर दी । 


उन्होंने हमें घूरकर देखा । बोले "भाईसाहब, या तो आप नशे में हैं या मैं" । 


हमने कहा कि आप सही कह रहे हैं जनाब । जबसे मिला हूं उससे , बस ऐसा नशा चढ़ा कि उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है । 


हमारी बात सुनकर वे चौंके । "भाईसाहब आप से तो ऐसी उम्मीद नहीं थी । आप भी किसी के इश्क में गिरफ्तार हो गए हैं क्या" ? 

"बेशक । हमें भी "उससे" प्यार हो गया है । और आज मैं यह स्वीकार करता हूं" । 


उन्होंने फोन करके हमारी श्रीमती जी को भी वहीं बुलवा लिया । हमारी हालत देखकर श्रीमती जी बोलीं "हां, आप सही कह रहे हो हंसमुख लाल जी । इस उम्र में इन्हें बहुत तगड़ा रोग लगा है भैयाजी । हमेशा उसके ही गुणगान करते रहते हैं" । 

"और आप ये सब सहन कर रही हो , भाभीजी" हंसमुख लाल जी बोले 

"क्या करें भैयाजी । उसकी पिटाई भी नहीं कर सकते हैं न । एक "एप" को कैसे पीटें हम तुम ही बताओ, भैयाजी" 


हंसमुख लाल जी चौंके । "मैं समझा नहीं भाभीजी" । 

"अरे भैया, इनको इश्क हुआ है प्रतिलिपि एप से । उसी में ही दिन रात डूबे रहते हैं ये । अब क्या करें इनका ? रही सही कसर वो मुआ "स्टार मेकर एप" पूरी कर देता है " श्रीमती जी ने पर्दा हटा दिया । 


हंसमुख लाल जी के चेहरे पर हंसी लौट आई । 

"अरे , भाईसाहब भी प्रतिलिपि के मुरीद हैं क्या ? हमें तो आज ही पता चला है । पर देखो ना , आज प्रतिलिपि ने कोई विषय अभी तक दिया ही नहीं है । हमारे तो पेट में गुड़गुड़ रहती है । जब तक लिख नहीं दें, गुड़गुड़ होती ही रहती है । आज कोई विषय नहीं दिया तो हम लिख नहीं पाये और जब लिखा नहीं तो फिर "फ्रैश" भी नहीं हो पाए । इसलिए अभी पचासों गालियां देकर आ रहे हैं प्रतिलिपि वालों को । पहले तो आदत लगा देते हैं फिर इस तरह सताते हैं । लगता है कि ये भी "पुड़िया वाले" हैं जो पहले पुड़िया की आदत लगा देते हैं और फिर उस पुड़िया से लूटते रहते हैं" । 


हमें यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि हंसमुख लाल जी भी "लिखते" हैं । हमने पूछा "आप कबसे लिखने लगे" ? 

"हमने जब से होश संभाला तभी से लिखने लगे थे, भाईसाहब । ये अलग बात है कि हमारी अम्मा हमारे लिखे को बहुत दिनों बाद समझ पाई । मगर हमने लिखना बंद नहीं किया कभी । चाहे कोई समझे या ना समझे , यह उसकी समस्या है, हमारी नहीं" । फूलकर कुप्पा होते हुए वे बोले । 


 मैंने कहा "वो वाला लेखन नहीं , साहित्यिक लेखन कबसे शुरू किया" ? 

"हर लेखन साहित्यिक ही होता है आदरणीय । इसलिए हर लेखन सुंदर ही होता है । हां, ये अलग बात है कि वह लेखन कुछ पाठकों को समझ नहीं आता । अब इसमें लेखक का क्या दोष ? आपको तो सब समझ में आता है न भाईसाहब" ? 


"बिल्कुल । आप जो लिखते हो वह भी और जो नहीं लिखते हो , वह भी । यहां तक कि आप जो सोचते हो वह भी "। हमारे पास इसके सिवाय और कोई चारा भी नहीं था। 


"आप जैसे सुधी पाठकों के कारण ही मैं लेखक बन पाया नहीं तो आता तो हमें लिखना "कक्का" भी नहीं है । पर पता नहीं खूब सारे लोग अच्छी अच्छी समीक्षा कर देते हैं और कुछ लोग तो सिक्कों की बौछार भी कर रहे हैं । मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा होगा कि लिखने के भी पैसे मिलेंगे ? आपको पता है कि मेरे खाते में कितने पैसे जमा हो गए हैं " ? 


जैसे कि मेरी परीक्षा ली जा रही थी । मैंने पल्ला छुड़ाते हुए कहा "मैं कोई अन्तर्यामी तो हूं नहीं इसलिए मुझे कैसे पता होगा" ? 


"पूरे दो रुपए तिहत्तर पैसे इकट्ठे हो गए हैं भाईसाहब । मैंने तो अभी से सपने देखने शुरू कर दिए हैं कि मैं भी एक दिन लेखन से करोड़पति बन जाऊंगा । मगर ये प्रतिलिपि वाले बड़े होशियार चंद हैं । अब देखो न , आज का टॉपिक ही नहीं दिया । अब आप ही बताओ , मैं किस पर लिखता" ? 


"आपके लिए टॉपिक की क्या जरूरत है हंसमुख लाल जी । उसकी जरूरत तो हम जैसे "कलम घसीटू" लोगों के लिए हैं । आप तो ऐसा किया करो कि "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" केवल 108 बार लिख दिया करो । इसमें तो सारी दुनिया समा जाती है फिर साहित्य कोई दुनिया से बाहर का थोड़े ही है' । 


हंसमुख लाल जी बड़ी गंभीर मुद्रा में सोचते रहे और कहने लगे "आपके चरण कमल किधर हैं प्रभु । आपने तो मेरी सारी समस्या ही समाप्त कर दी है । अब चाहे कोई भी टॉपिक क्यों न हो , मैं तो "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" को ही लिखकर आऊंगा । और कोई टॉपिक नहीं भी होगा तो भी यही लिखकर आया करूंगा । आप इस धरती पर पहले क्यों नहीं आए प्रभु । हमारा उद्धार बहुत पहले ही हो जाता " 


हंसमुख लाल जी ने बस एक मंत्र क्या जान लिया जैसे सारी दुनिया ही जान ली । अब वो इसी को लिख आते हैं और सैकड़ों सिक्के भी बरसते हैं उन पर । लोग बहुत ही ज्ञानी हैं । वे भी जानते हैं कि इस मंत्र में सारी दुनिया समाहित है इसलिए हंसमुख लाल जैसे श्रेष्ठ मनीषियों को पहचान कर उन्हें उपकृत कर रही है ।


कभी कभी तो हमें हंसमुख लाल जी से ईर्ष्या होती है । कुछ भी नहीं आता है उन्हें लेकिन लाखों फोलोअर्स और बरसते सिक्के बताते हैं कि वे एक बहुत बड़े लेखक हैं । हमें हमारे मुकद्दर से शिकायत है कि हमारी रचनाओं को कोई भाव क्यों नहीं देता है ? लेकिन हम तो यही सोचकर खुश हो जाते हैं कि हंसमुख लाल जी हमसे सलाह लेते हैं । और क्या चाहिए , हमें ? क्यों सही कहा ना हमने ? 



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