श्रद्धा और तोहफा
श्रद्धा और तोहफा
एक बार गौतम बुद्ध एक गांव में रुके हुए थे। वहां उनके प्रवचन सुनने के लिए रोज बहुत से लोग आते थे। एक दिन बुद्ध ने वहां से जाने की बात कही तो गांव वालों ने उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की।
हालाँकि बुद्ध ने उनकी बात नहीं मानी। इस पर गांव वालों ने तय किया कि वह उन्हें कुछ देकर विदा करेंगे। अगले दिन सब लोग कुछ न कुछ लाये थे और एक-एक करके उन्हें दे रहे थे। बुद्ध अपने शिष्यों से तोहफे उठवाकर एक तरफ रखवा रहे थे। वहां एक वृद्ध महिला ने अपनी बारी आने पर एक झूठा आम बुद्ध के सामने रख दिया।
वह बोली कि महात्मा जी मैंने आपके सामने अपनी सारी जमा पूंजी रख दी है, कृपया इसे स्वीकार करें। बुद्ध ने उस झूठे आम को प्रेम सहित उठा लिया।
सब लोगो ने बुद्ध से पुछा कि आपने उनके तोहफे तो शिष्यों से उठवाए और वृद्धा का झूठा आम खुद उठाया। ऐसा क्यों?
बुद्ध ने कहा कि वृद्धा ने श्रद्धापूर्वक अपना सब कुछ मुझे दे दिया जबकि आपने अहंकार में आकर महज दिखावे के लिए मुझे महंगे तोहफे दिए। लोगों को अपनी गलती समझ आ गई।