श्राद्ध :-अरमानों की

श्राद्ध :-अरमानों की

10 mins
407


कौतिकी बहुत ही आज़ाद ख़्यालात की लड़की थी। उसने कभी भी अपने को कमजोर नहीं समझा था। बचपन से ही सबकी लाडली रही थी वो।

घर में नौकर-चाकर, ठाठ-बाट सबकुछ तो था उसके पास मिस्टर रक्षित की तीन संतानों में सबसे बड़ी कौतिकी ही तो थी। कभी उसे अपने घर में परायापन या इसका अहसास नहीं हुआ था उसको मिस्टर रक्षित ने कभी ये अहसास, ये अनुभूति नहीं होने दी थी कि ....वह एक लड़की है। उसकी शिक्षा-दीक्षा में भी कोई कमी नहीं रहने दी थी उन्होंने। उसने भी कभी निराश नहीं किया था अपने पापा को, साथ ही परिवार की एक विशेष स्तंभ की तरह थी वो, घर में माँ का हाथ बँटाना, छोटे भाई विजित को स्कूल पहुँचाना इत्यादि। उसकी बहन कलिका जो अभी आठवीं कक्षा में पढ़ रही थी, उसे पढ़ाना भी कौतिकी के जिम्मे था। विजित अभी मात्र ग्यारह साल का ही था और वह सेन्ट जेवियर्स विद्यालय के कक्षा दो का छात्र था। अभी तक बहुत ही खुश हाल परिवार था उसका, साथ ही बहुत प्रतिष्ठित परिवार था उसका। उसके घर पर छोटे-छोटे अवसर को भी लोग बड़े ही धूमधाम से मनाते थे।बहुत ही भव्य वातावरण होता था घर में उस दिन...

आज विजित का जन्मदिन था। घर को दुल्हन की भाँति सजाया जा चुका था, कौतिकी भी अपने महाविद्यालय से अपनी अर्थशास्त्र की व्याख्यान(lecture)कक्षा को पूर्ण कर घर आ चुकी थी। उसके घर का एक विशेष नियम था कि अन्य दिन भले ही नौकर-चाकर काम को करें, परन्तु विशेष आयोजनों पर सारे कामों को कौतिकी, उसके माता-पिता तथा भाई-बहन ही किया करेंगे। नौकरों के ये पूछने पर कि क्या हुआ दीदी आज हम सबसे कोई भूल हो गयी क्या ??? कौतिकी के घर में काम करते हुए नौकरों को कभी भी परायेपन का अनुभव नहीं हुआ था, क्योंकि वो कहने के लिए तो नौकर थे, परन्तु उन्हें भी मिस्टर रक्षित के परिवार में घर के एक सदस्य की ही तरह समझा जाता था।

कौतिकी और कलिका जब भी विजित को रक्षाबंधन पर राखी बाँधती तो अपने नौकरों को भी राखी बाँधती थी, उसकी एक नौकरानी थी लाली। जब रक्षाबंधन के दिन जब सारे नौकर बैठक में कौतिकी और कलिका से राखी बँधवा रहे थे, तो जब मिस्टर रक्षित ने लाली को वहाँ नहीं देखा तो अपने नौकर विरू और शुभेष से उसके बारे में पड़ताल की, कि वो आज उदास होकर घर के एक कोने में बैठ रो रही होगी, तो कौतिकी के पापा वहाँ गए, जहाँ वो सच में बैठी रो रही थी। जब उसने उसके पापा को वहाँ देखा तो घबराते और आँसू पोंछते हुए उनसे बोली,"मालिक आप यहाँ ! क्यों मैं नहीं आ सकता, मुझे अपने ही घर में अपने बहन से मिलन के लिए अनुमति लेनी होगी। क्या मैं अपनी बहन से मिल भी नहीं सकता। वह बहन संबोधन सुन थोड़ी असहज होते हुए बोली, बहन!!!मैं आपकी।

तो वो बड़े ही अनोखे अंदाज़ में बोल उठे ,"ओ मेरी ड्रामा क्वीन बहना, अब हाॅल में चलें, सभी लोग इंतजार कर रहे हैं हम दोनों का। लोग और उनके नौकर-चाकर भी उनके घर के इस मज़ाक-मस्ती वाले अंदाज़ से परिचित ही थे, इसलिए लाली भी खिलखिला उठी और वो दोनों हाॅल में आ गए, और वहाँ आते ही अपनी चिर-परिचित अंदाज़ में बोल उठे, लेडिज एण्ड जेन्टलमैन , मीट माई सिस्टर लाली, जिन्हें उन्होंने कमरे के बाहर ही रोक रखा था।

इतना कहते हुए उन्होंने लाली को संबोधित करते हुए लालीजी अन्दर आईये, उनके इतना कहते ही कमरे में चारों और तालियाँ सुनाई पड़ रही थी।

उसके पश्चात राखी बाँधने का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ, सबने विधिवत सबको तोहफ़ा दिया।

मिस्टर रक्षित ने भी अपनी इस बहन को साड़ी का एक नया पैकेट थमाते हुए बोला, इसे रख लिया जाए भाई की तरफ से अपने बहन को एक छोटी-सी प्रेमपूर्ण भेंट। लाली तो अब निहाल हो चुकी थी, इसलिए वो बोल पड़ी , बस भैया आपका मुझे बहन कहना ही काफी है, तो वो फिर से चहक कर बोल उठे,"ओ लाली की बच्ची ज्यादा नखरे न दिखा, उसने मिसेज रक्षित की ओर देखी तो वो भी वही बोल उठी बिल्कुल फिल्मी अंदाज़ में ,"न बाबा न!

मुझे भाई और बहन के बीच में नहीं पड़ना, तुम दोनों खुद ही फैसला कर लो, आज लाली को लगा कि उसे सच में अपना भाई मिल गया हो।

धीरे-धीरे समय बीतता गया, मिस्टर रक्षित की कम्पनी ने नये मुकाम को भी हासिल कर लिया था। बड़े ही खुशहाली और आनंदपूर्वक बीत रहा था इनका जीवन, पर कहते हैं न बहुत अधिक सुख झंझावातों को भी साथ में ले आती है। अब तक विजित भी दसवीं कक्षा में चला गया था और कलिका जीवन का तरूणी के रूप में स्वागत करने को तैयार थी। बड़ा ही आनंदमय बीत रहा था उनका जीवन, तभी एक झंझावात ने सबकुछ बिखेर कर रख दिया उनके जीवन से....

आज जब कौतिकी कॉलेज के लिए निकलने वाली थी कि तभी उसके पापा मिस्टर रक्षित को एक फोन आया कि उनकी कम्पनी दिवालिया हो गयी है, उसके बाद वो धम्म से सोफे पर आकर बैठ गए, जोर से चिल्लाते हुए लाली बहन.......आ.......। लाली जो रसोई में सब्जी काट रही थी, बिल्कुल दौड़ती हुई सी उधर ही भागी जिधर से आवाज़ आई थी। विजित अपने कमरे में ही था, वह भी लाली की आवाज़ सुन अपने पापा के कमरे की ओर भागे, विरू पौधों में जो पानी दे रहा था वह भी शुभेष जो वहीं पोंछा लगा रहा था उसके आवाज़ देने पर उस ओर ही भागा मिसेज रक्षित भी जल्दी ही आरती कर कमरे में चली आई। सबने भरपूर प्रयत्न शुरू कर दिया था, कोई मास्टर रक्षित के तलवे को रगड़ रहा था, तो कोई एम्बुलेन्स को कॉल करने में लगा था।


आज घर में केवल उन सबकी लाडली कौतिकी के अलावे सभी लोग थे, क्योंकि इन सब चीजों से दूर कॉलेज में मास्टर इन इकोनोमिक्स का आखिरी पर्चा दे रही थी, तो बाहर आते ही रजत जो उसके पड़ोस में ही रहता था उसने कौतिकी को यह बतलाया कि उसके पापा की अचानक से ही तबियत खराब हो गयी है, इसलिए उन्हें लीलावती अस्पताल ले जाया गया है तो वो घबरा उठी, पर रजत ने उसे सांतवना दी कि सब ठीक हो जाएगा और वे दोनों कौतिकी के कार में बैठकर लीलावती अस्पताल पहुँच गए, वहाँ पहुँचकर वह लाली और अपनी माँ से कहने लगी कि पापा ठीक हो जाएंगे न, कहाँ हैं पापा मैं देखना चाहती हूँ उनको...

सब उसे समझाने में लगे थे सब ठीक हो जाएगा घबराओ नहीं...तभी डाॅक्टर आप्रेशन थियेटर से बाहर निकल वहीं कह गए, जो कोई सुनना भी नहीं चाहेगा और कोई डाॅक्टर संभवतः कहना भी नहीं चाहता है, पर विडम्बना यह है कि उसको कहना ही पड़ता है," आई एम शाॅरी, हि इज नो मोर! हमें बेहद ही अफसोस है कि हम उन्हें बचा नहीं पाए, यही तो वो शब्द हैं जो किसी के भी जीवन को बर्बाद करने के लिए काफी होते हैं.....

अब क्या हो सकता था," जानेवाले को कौन रोक सका है भला।" कुछ ही देर में मिस्टर रक्षित को अंतिम बार अपने घर ले जाने की तैयारी होने लगी, बड़ा ही दुखद माहौल था वह...चारों ओर केवल लोगों के रोने-चिल्लाने की आवाज़ आ रही थी।

मित्रों जीवन में यह एक आश्चर्य ही है कि सभी लोग मरते हैं, पर कोई भी मरना नहीं चाहता और चाहे भी क्यों भला किसी अपने को कोई खोना....पर हम कर भी क्या सकते हैं,हमारा इसपर नियंत्रण भी तो नहीं है...

खैर मिस्टर रक्षित अब पंचतत्व में विलीन हो चुके थे और जैसा कहा जाता है बुरा वक्त अपने साथ बहुत सारी बुरी चीजों को लेकर आता है। मिस्टर रक्षित के इस नश्वर संसार से पलायन करने के बाद कर्जदारों ने उनके सभी सामानों पर कब्जा कर लिया, शुभेष और वीरू भी अपने इस प्यारे परिवार से यह कहते हुए विदा ले लिया कि वो बीच-बीच में आते ही रहेंगे, क्योंकि इस पापी पेट को और घरवालों के लिए तो कुछ करना ही होगा न!

आह! जीवन में यह सच्चाई को कौन झूठला सकता है कि जीवन की पटरी भावनाओं के बलबूते नहीं चलती। इसलिए कौतिकी अपने इन भाईयों को कह भी क्या सकती थी, इसलिए वे दोनों चले गए।

अब बचा रह गया था केवल उनका छोटा सा परिवार जिसमें मिसेज रक्षित, कौतिकी, कलिका ,विजित व लाली ही रह गए थे, लाली को भी उन्होंने कहा कि वो भी अपने अनुसार जिन्दगी का चुनाव कर सकती है, मगर उसने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि ,"दीदी अब जाएगी तो इस घर से मेरी भी अर्थी ही जाएगी, मैं कहीं जानेवाली नहीं। उसके इस प्रकार कहने के बाद कौतिकी ने नाराज़गी वाले अन्दाज में उससे यह कह दिया कि ,"बुआ भगवान के लिए आप तो ऐसा अब मत कहो न! तुम कहीं नहीं जाओगी।

अब बस रह गया था रक्षित का इतना सा ही परिवार.....

कौतिकी ने भी अब घर चलाने के लिए एक काॅलेज में व्याख्याता की नौकरी कर ली थी, अब ठाठ-बाट के नाम पर उनके पास मात्र मिस्टर रक्षित द्वारा ख़रीदा घर ही बचा था, जिन्दगी कुछ हद तक पटरी पर आ चुकी थी, विजित अब बीएस०सी० प्रथम वर्ष में पढ़ने लगा था, कलिका की बीकाॅम० कम्पलीट हो शादी की बात चल रही थी। कलिका की रिंग सेरेमनी बड़े ही धूमधाम से सम्पन्न हो चुकी थी। एक दिन कौतिकी रजत के साथ उसके बाईक पर घर तक क्या आई थी कि उसकी माँ से अधिक उसकी बहन कलिका और भाई विजित अपने इस त्याग की प्रतिमूर्ति बहन को खरी-खोटी सुनाने लगे कि दीदी अब तुम रजत भैया के साथ बाईक पर घर मत आया करो, मुहल्ले वाले तरह-तरह की बातें करते हैं आप दोनों के बारे में।

उनको ये कहते हुए जब लाली ने सुना तो वो बोल उठी कि,"वाह क्या बात है कलिका बेटा, बहुत खूब !

आज तो तुम्हें बड़ा मान मर्यादा की पड़ी है, जब कौतिकी बिटिया तुम लोगों के लिए रात दिन अपने अरमानों की श्राद्ध चढ़ा रही थी, तो कहाँ थे तुम और तुम्हारे मुहल्ले वाले! कौतिकी उन्हें चुप करा रही थी और वो चुप नहीं हो रही थी, बोलते ही जा रही थी बस बुआ जाने दो बुआ कोई बात नहीं, तुम सब मेरे अपने ही तो हो, कौतिकी के आँखों में आँसू छलक आए थे।

मिसेज रक्षित जो थोड़ी अस्वस्थ ही चल रही थी वो भी गुस्से में चीखती-सी बोल उठी , वाह मेरे बच्चों वाह!

बहुत अच्छा इनाम दिया अपनी उस दीदी को, जिसने अपनी ख़ुशियों का, अपने अरमानों का लगभग श्राद्ध ही कर दिया।

कभी देखा है इसकी आँखों को, कभी इस ...अपनी बहन, हमारी लाडली कौतिकी जिस पर हमें फक्र है, गर्व है, अभिमान है इस पर।

विजित फिर धीरे से बोल उठा, वो सब तो ठीक है मम्मी और बुआ पर समाज भी तो कुछ है न, तभी बाहर खड़ा रजत जो संभवतः सब कुछ सुन ही रहा था वो बाहर से अन्दर चिल्लाते हुए ,"विजित बाबू क्या कहा आपने समाज...कौन सा समाज अब तक आगे आया है, और...

रही बात कौतिकी और मेरी तो मैंने सामने से ही उसे शादी का प्रस्ताव भी दिया था, परन्तु उसने जानते हो क्यों?? उसे बीच में ही टोकते हुए कहा ,"ओहो रजत जी! आप भी अब ..छोड़ दीजिए ,जाने दीजिए। परन्तु रजत ने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा ,बस कौतिकी अब और नहीं, बहुत सह लिया तुमने। हाँ तो विजित बाबू कहाँ था मैं, ओह जी याद आया,अंकल के जाने के बाद जब मैंने आपकी बहन को सामने से प्रस्ताव दिया तो इसने एक बार स्वीकार कर फिर यह कहकर ठुकरा दिया ,"नहीं रजत मैं अब अपने लिए कुछ नहीं सोच सकती क्योंकि मुझे अब अपनी माँ, भाई, बुआ और बहन के लिए सोचना है या यूँ समझ लो कि मैंने अपनी साँसें भी अपनी परिवार के हवाले कर दी है,समझो तो अब मैं अपने लिए साँस भी नहीं लेना चाहती, सच पूछो तो मैंने अपने अरमानों का श्राद्ध कर दिया है, हाँ रजत मैंने कर दिया है श्राद्ध अपने अरमानों का और यह बात आंटी और बुआ भी जानती हैं कि इसने क्या किया है तुम लोगों के लिए और सभी लोगों के आँखों में केवल आँसू थे।

उसके बाद विजित और कलिका कौतिकी के पैर पर गिर पड़े और उससे लिपटकर अपने द्वारा किए पाप की माफ़ी माँगने लगे और कौतिकी भी उनसे लिपट कर रो पड़ी।

दूसरे दिन उस घर में दो शादियाँ हुई एक कलिका की और दूसरी कौतिकी की, रजत का कोई नहीं था दुनिया में, इसलिए उसके तरफ से पिता का सारा कर्तव्य कलिका के ससुरालवाले ने निभाया और इस तरह से कौतिकी के अरमानों की श्राद्ध चढ़ने से बच गयी।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational