शक्तिमान और रामानुजन का खजाना
शक्तिमान और रामानुजन का खजाना
"सर ,दुनिया में लोग झूठ और सच मिलाकर बोलते हैं। बहुत सी कहानियां सच्ची होती हैं और बहुत सी कहानियां काल्पनिक होती हैं। वास्तविक कहानियों को भी कल्पना का सहारा लेकर ही उस कहानी को आगे बढ़ाया जाता है । काल्पनिक कहानियों के लिए भी वास्तविकता के धरातल से ही विचार जन्म लेते हैं। मैं पूरी कक्षा की ओर से आपसे निवेदन करता हूं कि आज आप कल्पना और बस एकता से मिश्रित कोई कहानी गढ़ कर सुनाएं।
गौरव सर ने कहा-" ठीक है ,जैसी तुम लोगों की इच्छा। आज मैं तुम्हें भारत के सुपर हीरो शक्तिमान और भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन को मिलाकर एक कहानी सुनाता हूं। शक्तिमान के बारे में तो तुम सब लोग काफी जानते होंगे क्योंकि तुम लोगों ने टी वी सीरियल में शक्तिमान को घूम- घूमकर उड़ते हुए देखा होगा। उसके पास बहुत सारी अद्भुत शक्तियां हैं ए शक्तियां वह ध्यान के सहारे अपनी कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर प्राप्त करता है। इन अद्भुत शक्तियों की सहायता से वह समाज में बुराई फैलाने वाले भ्रष्ट लोगों को दंडित कर धर्म के रास्ते पर चलने वाले ईमानदार लोगों की सहायता और रक्षा करता है। श्रीनिवास रामानुजन बहुत ही कम आयु में अपने विलक्षण प्रतिभा का परिचय देकर इस संसार से विदा हो गए। श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को तमिलनाडु के कोयंबटूर के इरोड नामक गांव में तमिल ब्राह्मण एवं परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास अयंगर और माता का नाम कोमलताम्म्ल था। इस संसार में श्रीनिवास रामानुजन जैसी विलक्षण प्रतिभा है जन्म लेती हैं जिनके बारे में जानकारी हम सब आश्चर्यचकित रह जाते हैं रमण जनपद से बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे उन्होंने अपने आप गणित सिखा और अपने थोड़े से जीवन काल में ही उन्होंने गणित की लगभग 4000 कर्मियों का संकलन किया उनके द्वारा दिए गए अधिक तत्व गणितज्ञों द्वारा सही सिद्ध किए जा चुके हैं बहुत ही सौम्य और मधुर व्यवहार के व्यक्ति थे इतने समय थे कि उनसे कोई नाराज हो ही नहीं सकता था उन्हें गढ़ से बहुत अधिक प्रेम था असल में उनके गणित प्रेम ने उनकी शिक्षा में बाधा डाली उनका गठन इतना अधिक था कि उन्होंने दूसरे विषयों को पढ़ना ही छोड़ दिया था। आज विश्व के विख्यात गणितज्ञों की श्रेणी में एक उचित स्थान रखने वाले श्रीनिवास रामानुजन अपनी बारहवीं कक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए थे। उनका गणित प्रेम और गणित में शोध कार्य धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। अब स्थिति यह थी कि बिना किसी अंग्रेज कर्तव्य की सहायता से उनके शोध कार्य को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता था रामानुजन ने कुछ शुभचिंतकों और मित्रों की सहायता से अपने कार्यों को लंदन के प्रसिद्ध गणितज्ञों के पास भेजा पर इससे कुछ विशेष सहायता नहीं मिली रामानुजन ने अपने संख्या सिद्धांत के कुछ सूत्र प्रोफेसर शेषू अय्यर को दिखाए तो उन्होंने उन्हें प्रोफेसर हार्डी के पास भेजने का सुझाव दिया। रामानुजन ने हार्डी को पत्र और उसके साथ अपनी खोजी गई प्रमयों की सूची भेजी। रामानुजन के शोध प्रोफेसर हार्डी को पूरी तरीके से समझ नहीं आए लेकिन जब उन्होंने कुछ दूसरे गणितज्ञों से सलाह ली तो उन्हें पता चला कि रामानुजन गणित के क्षेत्र में एक दुर्लभ व्यक्तित्व हैं।इसके बाद उन्होंने रामानुजन को इंग्लैंड बुलाया और रामानुजन कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में पहुंचे। रामानुजन और प्रोफेसर हार्डी दोनों ने एक दूसरे के लिए पूरा का काम किया रामानुजन ने प्रॉपर्टी के साथ मिलकर कई शोध पत्र प्रकाशित किए इंग्लैंड में सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन इंग्लैंड की जलवायु और रहन-सहन की शैली रामानुजन के अनुकूल नहीं थी जिसके कारण उनका स्वास्थ्य खराब है डॉक्टरी जांच के बाद पता लगा कि उन्हें क्षय रोग अर्थात ट्यूबरक्लोसिस हो गया था उस समय शेरों की कोई दवा नहीं होती थी उनका कैरियर बहुत अच्छी दिशा में जा रहा था लेकिन उनका स्वास्थ्य खराब होता जा रहा था डॉक्टरों ने भारत लौटने की सलाह दी भरत रोकने पर भी उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ और उनकी हालत गंभीर होती जा रही थी उन्होंने अब बीमारी से लड़ते-लड़ते। 26अप्रैल,1920 को मात्र 33 वर्ष की आयु में इस संसार को अलविदा कह दिया।"
गौरव सर थोड़ा सा रुक कर बोले -"यह तो था भारत के प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन का संक्षिप्त जीवन परिचय । भी अपने गणित प्रेम के कारण दुनिया की सारी चीजों को भूल कर भी केवल गणित प्रेम में खोए खोए रहते थे।एक बार भी मन ही मन ईश्वर को याद कर रहे थे कि यह ईश्वर इस संसार में आपने मुझे भेजा है तो आपने मेरी सहायता के लिए कोई न कोई बेहतरीन व्यवस्था भी सोच रखी होगी वह सोच ही रहे थे इतनी देर में होने का कि उनके सामने शक्तिमान प्रकट हो गए उन्होंने श्रीनिवास रामानुजन से कहा आर्यों की भूमि पर आपका आगमन आर्य संस्कृति के अनुरूप पूरे संस्कार के संसार के कल्याण के लिए ही हुआ है। आप संसार के कल्याण के लिए इंग्लैंड में प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर काम करें।श्रीनिवास रामानुजन आर्थिक अभाव से जूझ रहे थे। उनके पास इंग्लैंड जाने के लिए आर्थिक संसाधन भी नहीं थे।शक्तिमान ने कहा कि यहां इंग्लैंड मैं आपको अपने साथ ले चलता हूं वहां पर आपके पास जो सरस्वती मां के ज्ञान का भंडार है उसमें वृद्धि करने के लिए प्रोफेसर हार्डी को भी ईश्वर ने इस धरती पर भेजा हुआ है। वह श्रीनिवास रामानुजन को अपने साथ लेकर प्रोफेसर हार्डी के पास पहुंच गए प्रोफेसर हार्डी रामानुजन के गणित के शोध कार्यों को देखा लेकिन अपने उन शोध पत्रों ने रामानुजन ने क्या शोध किया यह तो प्रोफ़ेसर हार्डी की भी समझ से बाहर हो रहा था ।उन्होंने रामानुजन से अपने शोध कार्यों को उन्हें समझाने के लिए कहा रामानुजन ने अपने शोध कार्य को प्रोफ़ेसर हार्डी को समझाया तो प्रोफ़ेसर हार्डी को विश्वास हुआ कि सचमुच संपूर्ण दुनिया को अपना ही परिवार मानने वाली आर्यभूमि का यह बहादुर योद्धा सचमुच विलक्षण प्रतिभा का धनी है। उन्होंने श्रीनिवास रामानुजन के साथ मिलकर शोध पत्रों पर कार्य किया और बहुत से शोध पत्र प्रकाशित हुए। इन शोध पत्रों के प्रकाशित होने से काफी धन एकत्रित हुआ लेकिन इंग्लैंड की जलवायु और इंग्लैंड की संस्कृति श्रीनिवास रामानुजन की स्वास्थ्य और संस्कृति के अनुकूल नहीं थी उनका स्वास्थ्य खराब है। लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य की स्थिति की जांच हुई तब यह पता लगा कि वह क्षय रोग नाम के एक असाध्य रोग से पीड़ित हो गए हैं और उस समय चिकित्सा क्षेत्र में क्षय रोग की कोई भी दवा नहीं खोजी जा सकी थी। उन्होंने इंग्लैंड में रहते हुए कुछ समय तक संघर्ष किया लेकिन वहां से उन्हें यह सुझाव दिया गया कि स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से आप को भारत वापस चले जाना चाहिए। उनके अपने ज्ञान के भंडार में काफी वृद्धि हुई और इस खजाने को उपलब्ध करवाने में भारतीय सुपर हीरो शक्तिमान की भूमिका रही थी। इंग्लैंड से भारत पाकर भी उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ बल्कि उनका स्वास्थ्य लगातार बिगड़ता चला गया। शक्तिमान की सहायता से श्रीनिवासन रामानुजन ने सरस्वती मां के दिए गए ज्ञान के भंडार में वृद्धि की शक्तिमान की सहायता से और इंग्लैंड में प्रोफेसर हार्डी के सहयोग से कहां है ज्ञान भंडार का खजाना अर्जित किया जो आज संसार को ब्रिज के क्षेत्र में एक नई दिशा दिखाने के लिए जोधपुर की तरह काम कर रहा है।
