शक का कोई इलाज नहीं
शक का कोई इलाज नहीं
रवि मुम्बई में जिस ऑफिस में काम करता था उसी ऑफिस में प्रिया से उसकी दोस्ती हुई। प्रिया का सीधा और सरल स्वभाव रवि को उसकी तरफ खींच लाया। धीरे धीरे दोस्ती प्यार में बदल गई। परिवार की रजामंदी से अपने प्यार को शादी का नाम दे दिया। मनपसंद जीवनसाथी मिल जाये तो फिर और क्या चाहिये। दोनों साथ मे जॉब पर जाते, घर, नौकरी और रविवार को सैर सपाटा, दिन मजे से गुजर रहे थे। लेकिन प्रिया की खुशियाँ ज्यादा दिन नहीं टिक पाई। हम किसी को कितना भी जानते हो लेकिन व्यक्ति के असली व्यक्तित्व की पहचान साथ रहने पर ही पता चलती है।
रवि प्रिया को हर बात पर रोक टोक करता। उसे प्रिया का ऑफिस में किसी से भी बात करना पसंद नहीं आता। एक ही ऑफिस में होने के कारण रवि अपने काम से ज्यादा प्रिया पर नजर रखता, वो क्या कर रही है? कहाँ जा रही है? किसके साथ जा रही है? जबकि प्रिया का मन साफ था, उसके मन में कोई पाप नहीं था। प्रिया रवि को बहुत चाहती थी इसलिए रवि के रोक टोक करने पर भी हँसी मजाक करके ध्यान बदलने की कोशिश करती। लेकिन बालू के ढेर की तरह दोनों की खुशीयां शक के बोझ तले ढह गई।
प्रिया बहुत कोशिश करती रवि के मन मुताबिक रहने की लेकिन ऑफिस में काम के लिए थोड़ी बहुत तो बातचीत जरूरी थी। रवि बात बात पर प्रिया पर शक करता। प्रिया का अच्छे से तैयार होना या कभी नए कपड़े पहनकर ऑफिस जाना भी रवि को पसंद नहीं आता। रोज ही किसी न किसी बात को लेकर दोनों में झगड़े होने लगे। अपनी गृहस्थी बचाये रखने के लिए प्रिया ने नौकरी भी छोड़ दी, लेकिन रवि के शक का कीड़ा नहीं गया। प्रिया घर में अकेली बोर हो जाती, घर उसे काटने को दौड़ता।
अब ये घुटन भरी जिंदगी मैं और नहीं जी सकती रवि। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन तुम्हारे शक को नहीं मिटा सकी। दुनिया में आज सबका इलाज संभव है लेकिन शक का कोई इलाज नहीं। मैं अपनी माँ के पास जा रही हूं, कम से कम वहाँ खुल कर साँस तो ले सकती हूं। रवि ने भी प्रिया को रोकने का प्रयास नहीं किया। प्रिया दिल्ली आ गई, अपनी बोरियत दूर करने के लिए माँ के कहने पर नौकरी करने लगी।
प्रिया के जाने के बाद कुछ दिनों में ही रवि को प्रिया की कमी खलने लगी| उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा। प्रिया के साथ बिताये हुए पल उसे याद आने लगे।
"प्रिया मुझे माफ़ कर दो, अब मैं तुम्हारा दिल कभी नहीं दुखाऊंगा| प्लीज मेरे पास लौट आओ" रवि को पहली बार लगा कि उसने अपने चांद को खो दिया है। "नहीं नहीं मैं अपने चांद को नहीं खोने दूँगा" रवि ने जल्दी में बैग लिया और दिल्ली के लिए निकल गया।
ट्रेन अपनी रफ्तार से चल रही होती है। रवि अपने अतीत में खो जाता है। शादी से पहले घंटों फ़ोन पर बात किया करते थे, कभी लंबी ड्राइव पर निकल जाते थे। कभी जुहु चौपाटी पर बर्फ़ के गोले का मजा लेते तो कभी समुद्री लहरों में खो जाते। मैंने अपनी हँसती खेलती जिंदगी को खुद ही बर्बाद कर दिया। आस पास का शोर उसे फिर वर्तमान में ले आया।
घंटी बजती है, जैसे ही प्रिया गेट खोलती है रवि को देखकर चौंक जाती है, लेकिन तुरंत आँखे फेर लेती है।
"प्रिया मैं तुम्हें लेने आया हूँ, प्लीज घर चलो। तुम्हारे बिना आज मैं बिल्कुल अकेला हो गया हूं। तुम्हारे बिना मैं अधूरा हूँ। प्रिया मेरी गलतियों को माफ कर दो मैं गलत था। तुमने हमेशा अपना घर बचाने की कोशिश की लेकिन मैं तुम्हारे अंदर की पीड़ा को देख नहीं पाया। मेरी गलती माफी लायक तो नहीं है लेकिन प्लीज मुझे माफ़ कर दो" रवि एक साँस में सब बोल गया।
प्रिया ने रवि की ओर देखा, उसकी आँखें आँसुओ से भरी हैं। प्रिया के मन का प्यार एक बार फिर बाहर आ जाता है, वो रवि को गले लगा लेती है। हमारे प्रेम की डोर इतनी आसानी से नहीं टूटने वाली रवि।
प्रिया की माँ भी भावुक हो जाती हैं। "इसी खुशी के मौके पर एक बात और, आप पिता बनने वाले हैं और मैं नानी" रवि ने प्रिया की ओर खुशी से देखा और एक बार फिर गले लगा लिया।
"मम्मी हम लोग अपने घर मुम्बई जा रहे हैं। आप हमें अपना आशीर्वाद देना कि हमारी जिंदगी में खुशियां ही खुशियां हों" और वहां से निकल पड़ते हैं।