शिकार
शिकार
वह अपने दो बच्चों को भूख से बिलबिलाते देख नहीं पा रही थी। काम की तलाश और दर-दर की ठोकरें....खूबसूरत तन और बच्चों से भी अधिक भूखे भेड़िये।
स्वार्थ की दुनिया में उसे काम तो नहीं मिला, काम क्रीड़ा हेतु आमंत्रण मिलते गये। बच्चों की भूख, माँ का ह्रदय ...वह विचलित हो गई।
हार कर उसने अपने आप को भूखे भेड़ियों के हवाले कर दिया। बदले में उसे मिला भरपूर पैसा। बच्चे पढ़- लिखकर बड़े अफसर बन गये।
जिन बच्चों के लिए वह भेड़ियों का शिकार बनी थी, अब उन्हीं बच्चों की नफरत का शिकार बन गयी।
