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me Basant

Tragedy

4  

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Tragedy

इश्क

इश्क

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मालती जब मंदिर से लौटी तो उसे घर के अंदर से बोलने की आवाजें सुनाई दी। उसे लगा बेटे-बहुओं के बीच किसी बात को लेकर बहस चल रही है।

" इनके बीच में जाना ठीक नहीं।" यह सोचकर वह बाहर ही चोकी पर बैठ गई। ड्राॅइंगरूम की खिड़की बाहर चोकी के पास ही खुलती थी, जो उस समय थोड़ी खुली हुई थी, उसने सुना--

" हम तो तुम्हारी माँ की करतूतें सुन-सुनकर परेशान हो गई हैं। आखिर अपनी भी इज्जत है। लोग -बाग अंगुलियां उठाते हैं, बच्चों पर क्या असर पड़ेगा ? कुछ तो इनको सोचना चाहिए। बुढ़ापे में यूं इश्क लड़ाते हुए इन्हें जरा भी लाज- शरम नहीं आती ?"

" पर ये तो झूठ है, माँ तो मंदिर के अलावा कहीं आती-जाती भी नहीं वो।" इतना सुनते ही बड़ी बहू भड़क कर बोली---

" तुम लोगों को क्या पता, लोग कैसी-कैसी बातें कर रहे हैं। हम दोनों का तो घर से बाहर निकलना ही मुश्किल हो गया है।"

" पर माँ ने ऐसा किया क्या है ?"

" अरे ! वो पिछली गली वाला शर्मा है नातुम्हारी माँ उसी से।"

" अरे ! ऐसी बात करते हुए तुम दोनों को शर्म नहीं आती ? कुछ तो उम्र का भी लिहाज करो। पता।"

" शर्म ! अरेशर्म तो तुम्हारी माँ को आनी चाहिए जो बुढ़ापे में ऐसे गुल खिला रही हैं। विश्वास न हो तो आप ही पूछ लेना , पर वो बेशर्म सच बोलेगी भी।"

सुनकर मालती के पैरों के नीचे की धरती ही हिल गई। लगा वह कटे परों के पक्षी सी आसमान से गिर पड़ी है। गुस्से से उसके हाथ-पैर कांपने लगे। हिम्मत जुटा कर उसने दरवाजा खटखटाया तो छोटे ने आकर दरवाज़ा खोला। वह चुपचाप अपने गेडिए के सहारे

अपने कमरे की ओर जाने लगी तो बेटा बोला--

" ड्राॅइंगरूम में चलो, कुछ बात करनी है।" वहां पहुंचते ही बड़ा बेटा बोला---

" माँ, क्या बात है ? हम सब ये क्या सुन रहे हैं ? कि आप और अंकल ।"

" आगे बोलता क्यों नहीं कि इश्क लड़ा रहे हैं अरे ! बेशर्मो, तुम्हारे पिता का जब स्वर्गवास हुआ, तब मैं पच्चीस वर्ष की थी। लोगों के घरों में झाडू-बरतन करके तुम दोनों को पाला परन्तु किसी के सामने नज़र उठा कर भी नहीं देखा। इस बुढ़ापे में तुम सबने मेरे साथ कुत्ते से भी बदतर व्यवहार किया परन्तु मैंने किसी के सामने तुम्हारी करतूतें बयां नहीं की। अंदर ही अंदर घुटती रही। पिछली गली में रहने वाले शर्मा जी को मैं देवर और छोटे भाई के समान मानती हूं , वो यदि अपना दुःख मुझे सुनाकर अपना मन हलका करते हैं तो क्या ये इश्क है ?

अच्छा तो यह होता कि तुम्हारे पिता के स्वर्गवासी होते ही तुम दोनों को अनाथ आश्रम में छोड़ कर इश्क लड़ा लेती, तो अभी ये सब सुनना नहीं पड़ता।"


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