श्रद्धा
श्रद्धा
सोमवार का दिन था, श्रद्धालु लोटे भर-भर कर दूध ला रहे थे। शंकर भगवान पर दूध की बारिश हो रही थी।
"ओ माई, थोड़ा सा दूध दे दो, शंकर भगवान तुम्हारा भला करेंगे।"
एक भिखारन ने अपने नन्हें बच्चे को बरबस चुप करवाते हुए कहा।
"चल हट, देखती नहीं ये दूध हम भगवान शंकर को अर्पित करने के लिए लाई हैं।"
"मगर इतना दूध है, थोड़ा सा बच्चे के लिए दे दो, ये रात से भूखा है।"
इस प्रकार बहुत मिन्नतों के बाद भी किसी ने उसकी नहीं सुनी... बच्चे के लिए किसी का दिल नहीं पसीजा तो वह इस आशा के साथ रूंआसी होकर बैठ गयी कि शायद किसी को बिलखते हुए बच्चे पर दया आ जाए। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
सभी ने अपना-अपना दूध का लोटा शंकर भगवान पर उंडेला, आंखें मूंद, हाथ जोड़ कुछ प्रार्थना की और चल दी।
दूध बह रहा था। कुछ दूध समतल जगह न होने के कारण वहां जमा हो गया था।
दोपहर होते-होते शंकर भगवान पर दूध की बारिश बंद हो गई।
भिखारन ने देखा सड़क के कुत्ते शिवलिंग पर चढ़े दूध को चाट रहे हैं। वह उन्हें भगाने का असफल प्रयास करने लगी।
जब वह असफल रही तो श्रद्धा से सिर झुका, उन कुत्तों के कृत्य के लिए क्षमा मांगने लगी।
