सही राह
सही राह


"क्या हुआ सरू? इतनी चुपचाप सी रास्ते को क्यों तके जा रही हो?", सुधीर ने सरु से पूछा।
"इस रास्ते को देख कर बस यही सोच रही हूं कि हमने सही राह तो पकड़ी है ना सुधीर। एक बार उस पार पहुंच गए तो वापसी की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी। हमारे सारे अपने हमारे लिए हमेशा के वास्ते पराए हो जाएंगे। और फिर क्या हम खुश रह पाएंगे? कहीं ऐसा ना हो कि अपनों की जुदाई का दुख हमारे रिश्ते के सुख को भी छीन ले।", सरु बोली।
सरु की बात सुनकर सुधीर ने झटके से गाड़ी रोक दी। सरु उसे देखने लगी तो वो बोला," तुमने सही कहा सरु, हम गलत रास्ते पर चल रहे थे तभी सिर्फ सड़क दिख रही थी मंजिल नहीं।
चलो एक बार घर चलकर फिर से अपनों को मनाने की कोशिश करते हैं। ये रास्ता तो हमारा आखिरी रास्ता होना चाहिए था और हमने शुरुआत इसी से कर दी"।
सरु ने इत्मीनान से आंखें बंद कर ली और चल पड़ी उस रास्ते की ओर जहां उसके अपने थे और उनके साथ रहकर ही उसे अपने और सुधीर के रिश्ते को आगे बढ़ाना था।