सही गलत
सही गलत
करवाचौथ का व्रत तो रख लिया सुनीता ने पर लो सुगर और बी. पी. के कारण बेहाल थी। घर के सारे काम निपटाने के बाद तो उसकी ऐसी हालत थी कि लगा बस अभी चक्कर खाकर फिर जाएगी पर सासू मां का दिल नहीं पसीजा। वो उसकी इतनी तबीयत खराब देखकर भी व्रत के नियमों में कोई ढील नहीं दे रही थी जबकि उन्होंने खुद अपनी उम्र के तकाजे के कारण व्रत रखना छोड़ दिया था। सुनीता भी थोड़ी देर आराम करने के लिए अपने कमरे में चली गई जहां उसका बेटा मयंक अपने सोशल साइंस के पेपर की तैयारी कर रहा था।
"मां ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने जब बाल विवाह रोकने के लिए और विधवा पुनर्विवाह करवाने के लिए मुहिम चलाई तो उन्हें तो बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा होगा ना।"
"हां, बेटा। सदियों से चली आ रही प्रथाएं तोड़ना इतना आसान कहां होता है। पर ये तो तुझे पिछली क्लास में आया था। तू इस बार क्यों पूछ रहा है, अपनी इस साल की तैयारी करो ना, वैसे भी मेरी तबीयत बहुत खराब है। "
"बस एक प्रश्न और मां। मां ये प्रथाएं तो हमारे पूर्वजों ने शुरू की थी। फिर वो इन सब का विरोध क्यों करते थे। बड़ों की सब बातें तो माननी चाहिए ना।"
"बेटा, हर बार हमारे बड़े सही हों ये नहीं होता। ये बाल विवाह, सती प्रथा आदि कुछ ऐसे रिवाज़ थे जो गलत थे। जिन्हें छोड़ना ही उचित था इसलिए इनका विरोध भी सही था। इसमें बात छोटे बड़े की नहीं बल्कि सही गलत की है।"
मयंक मां की तरफ सेब बढ़ाते हुए बोला, "हां मां, बात वाकई छोटे बड़े की नहीं बल्कि सही गलत की है।