शब्द संकेत
शब्द संकेत
रक्षा का बंधन अब विरह का बंधन लगता है
न शब्द है,न संकेत है
बिना रूके बिना थके
बस दूर का सफर तय करते जाना है
मेरे अश्को के पायदान पर तुम्हारा मेरे प्रति यूँ मुकर जाना
मुझे मेरे अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा देता है
मै विवाह के बंधन मे हूं
न कि तुम्हारी या तुम्हारे परिवार की गुलामी की जंजीरो से बंधी हू
मैं क्या थी क्या हो गई
मेरा यह प्रश्न मेरा मुझसे है
अकथ कथन हृदय वेदना से परिपूर्ण
समझने वाला कोई नही
और समझाने वाले सुर मे भी मात्र अपना ही स्वार्थ
अतृप्ति की पराकापराकाष्ठाअब जीवन तुच्छ सा लगता है।।।।
