जीवन का खूबसूरत पृष्ठ भाग
जीवन का खूबसूरत पृष्ठ भाग
…..तुम मेरे जीवन की किताब के उस खूबसूरत पन्ने जैसे हो जिसका प्रत्येक पन्ना अपने स्नेह और रजनीगंधा की सुगंध सा मेरी आत्मा को ईश्वर के समान स्पर्श कर लेता हैं,मेरे जीवन का प्रत्येक क्षण प्रेम में तुम्हें समर्पित है
प्रेम की अनुभूति का शाब्दिक वर्णन शायद मैं ना कर पाऊं परंतु एक आत्मीय भावनाओं का संग्रहण मैं अवश्य करूंगी । वैचारिक नहीं अपितु मृदु कंठ से .....
तुम शब्दों में कब परिपूरित हो गए पता ही ना लगा
सोचा ना था इस हद तक तुम्हें अपने करीब पाऊंगी वक्त बेवक्त तुमसे मिलना,बात करना मुझे स्वयं से बहुत दूर ले गया मैं तुम्हारे करीब आ गई हर लोक लाज को तिरस्करित करते हुए तुम्हें मैंने अपना कब बना लिया और कब निस्वार्थ वश स्वयं को तुम्हें सौंप दिया हर बेबाकी का रूप तुम बन गए मैं अपनी हदों को भूल गई *जिसके लिए मैंने बहुत कुछ छोड़ा था* मन से मन की,तन से तन की इतनी समीपता मेरा पहला अनुभव था तुम पर आकर्षण मेरा बढ़ता गया थमना चाहती थी खुद को खुद से पर थाम न सकी मैं अपने भावों को। दिलो दिमाग की उथल-पुथल में फिर वही तुम्हारा मोह मुझे तुम्हारी ओर खींच ले आया एक नए चुंबकीय आकर्षण ने मुझे तुम्हारी बाहों का हार बना दिया तुम्हारी छुअन असहनीय थी खुद को तुम्हें सौंपने का मन करता है मेरी आंखों की शर्म हया अब तुमसे थी प्रेम का ऐसा पाश और उसे पाश में स्वयं को जकड़ लेना तुम्हारा बेहतरीन हुनर था हम तुम मौन थे पर आत्माओं का मिलन संभव था दिव्य एकांत और अंधेरेपन के सन्नाटे ने हम दोनों को एक कर दिया मैंने कभी तुम्हारे बाह्य रूप में अपना आकर्षण नहीं ढूंढा अपितु तुम्हारी शब्द रूप छाया का ऐसा मोह जाल था जो मेरे नेत्रों के सहारे मेरे मन मंदिर में अपना घर कर गया इस हद को पार तुमने पहले भी किया है पर मेरे संग की विलक्षणता और रमणीयता पर तुम पर केवल मेरा ही स्वाधिकार था जिस पर मैं अपना हक जमाने लगी हूं पर कभी सोचती हूं तो खुद को बहुत ही तुच्छ पाती हूं किसी बसेरे को तोड़ना और फिर वहां अपना बसेरा बनाना कहां तक उचित है आज जब खुद को दर्पण पर निहारती हूं तो खुद से नजरे नहीं मिला पाती हूं तुम्हें तुम और मैं मुबारक हो और मुझे मुझमें ही रहने दो ।
वो की संज्ञा का परिवर्तनशील नियम मैं तुम पर कभी नहीं लागू होने दूंगी चाहे प्रेम के वशीभूत हो हम दोनों को इसका दंड ही क्यों न भुगतना पड़े......
शब्दों के लिफाफे में
मन के भाव को सहेजा है
मैंने पत्र नहीं
खुद को भेजा है........
