सहारा
सहारा
रोज़ की तरह सीता आज भी गुमसुम और परेशान थी न जाने क्यों बार-बार उसका मन घबरा रहा था, न जाने वह कौन से ख्यालों में खोई हुई थी कि अचानक खट की आवाज़ ने उसे घबरा दिया, वह अपने ख्यालों की खाई से निकली तो सामने एक मेमना घायल अवस्था में देखकर वह कुछ समय के लिए डर गई। फिर उसने तुरंत उस मेमने को गोद में उठा लिया, मेमना डर गया और उस घायल अवस्था में भी अपने आप को बचाने की चेष्टा में लगा हुआ था। कब मौका मिले और वह कूदकर दौड़ जाए लेकिन दया की भावना तो एक जीव भी समझ जाता है, वह मन हीं मन सोचने लगी इस छोटे से जीव की समझदारी क्या खूब है, तुरंत ही जान बचाने की कोशिश में अपनी घाव की भी परवाह नहीं थी और तुरंत प्यार के एहसास ने इसे बदल दिया है।
सीता के मातृत्व भावना के कारण [मेमना ]वह तुरंत उससे चिपक गया, जैसे वह समझ गया कि मेरे दर्द को दूर करने वाली यही माँ है, उसने भी माँ की तरह पहले हल्दी की लेप लगाई एक कटोरा में दूध लेकर रुई के सहारे पिलायी फिर डॉक्टर के पास गई। विमला जो काम करती थी वह जब आई तब दरवाज़े पर ताला लटका हुआ देखकर बहुत आश्चर्यचकित हो गई और सोचने लगी दीदी तो इस समय कहीं नहीं जाती है फिर आज क्या हुआ क्या तबियत ....फिर अपने आपको थप्पड़ लगाते हुए बोली मैं भी बेवकूफ़ कुछ भी सोचने लगी। इतने में हीं दूर से सीता को आते देखकर वह दौड़ते हुए रिक्सा के पास गई और हाँफते हुए पूछी "कहाँ चली गई थी दीदी मेरे मन में न जाने कितने ख्याल गोते खा रहे थे ठीक तो हो न दीदी।"
सीता ने उसे रोकते हुए कहा "अरे अरे बस कर पगली कुछ नहीं हुआ मुझे, घर के अंदर चल फिर बताती हूँ।" अचानक विमला की दृष्टि मेमना पर गयी। "अब यह क्या है दीदी" अंदर जाते हीं सीता ने विमला को सारी बात बताई और बोली "जा एक कटोरा दूध ले आओ बीमार और भूखा है बेचारा।"
विमला पूछी "आप चाय लेंगी दीदी" सीता ने कहा - "नहीं पहले इसको दे" रसोई घर जाते ही वह ज़ोर से बोल पड़ी "अब कल से खाना नहीं बनाउंगी क्यों नहीं खाई दीदी।" मेमना उसकी आवाज़ से चौंक गया सीता ने उसे थपथपाते हुए शांत किया और फिर वही रुई की बाती के सहारे दूध पिलाई अब तो पल –पल उस मेमना के पीछे समय गुजरने लगा। विमला भी खुश थी कि जिस अकेलेपन के अंधियारे में उसकी दीदी खोती जा रही थी लेकिन आज इस मेमना ने उनके चेहरे पर हँसी तो ला दी। एक दिन विमला पूछी "दीदी एक इंसान दूसरे इंसान के लिए इतना नहीं करता जितना आपने मेमना के लिए किया। आपने अपने बच्चे की तरह इसकी सेवा की और प्यार दिया।" इस पर सीता ने बड़ी सहजता के साथ उत्तर दिया "देख विमला यह भी जीव है और इसे भी हमारे जैसी तकलीफ़ होती है। यह भी हमारे द्वारा किए गए व्यवहार को समझता है जहाँ इस दुनियाँ में एक मनुष्य दूसरे मनुष्य की तकलीफ़ को देखकर सुनना तक पसंद नहीं करता है किसी की तकलीफ़ को देखकर पूछने तक नहीं आता है वहाँ इस जीव को देखो मैने इसके लिए तो कुछ नहीं किया, लेकिन यह प्रत्येक पल इस प्रकार मेरे पास रहता है कि कब मुझे इसकी जरूरत पड़ जाए और यह दौडकर पूरा कर दे। यह बैठकर मेरे चेहरे को निहारता रहता है जैसे इसकी आँखें मुझ से बातें करती रहती है और कहती हैं मैं हूँ अब मैं इस निष्ठुर संसार में अकेली नहीं रही विमला।" यह बोलते- बोलते सीता की आँखें छलक गई और मेमना को उठा कर वह उसे थपथपाने लगी अब तो सीता का एक पल भी मेमना के बिना रहना मुश्किल हो गया था।
