Dinesh Uniyal

Horror

4.0  

Dinesh Uniyal

Horror

शापित आईना

शापित आईना

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राज आज बढ़ा ही खुश था, क्योंकि वह कॉलेज से अपने मित्रों के साथ प्रोजेक्ट के लिए पहाड़ी जंगलों में औषधीय जड़ी बूटियों के शोध के लिए जाने वाला था। इसलिए वह खुशी के मारे हड़बड़ाहट में नाश्ता कर रहा था। उसकी मां उससे कह रही थी, आराम से खाओ अभी बहुत समय है, गले में अटक जाएगा। पर उसे तो जैसे तैसे अपना नाश्ता खत्म करके निकलना था। इसलिए मां की बातों को अनसुना कर, उसने फटाफट नाश्ता खत्म कीया ही था कि उसके दोस्त साहिल की उसे आवाज सुनाई दी, जो उसे लेने उसके गेट से उसे चिल्ला रहा था। वह अपने पिताजी की जीप ले आया था। उसके साथ रोजी, सोनिया, मुकुंद और रिया थी । वह सबको पिकअप करते हुए राज को लेने उसके घर पहुंचा था। वहां से उन्हें कॉलेज होते हुए, जंगलों की तरफ जाना था। राज अपना बैग उठाता हुआ, बाहर की तरफ निकला जाते-जाते मां ने उसे एक खंजर पकड़ा दिया, जंगल में जंगली जानवरों से खुद की रक्षा के लिए । बाहर आकर उसने सभी को हाय हेलो कर जीप में बैठ गया। वे लोग सबसे पहले कॉलेज पहुंचे। वहां अपना अटेंडेंस लगवा कर, वे लोग जंगल की तरफ निकल पड़े। वे लोग घुमावदार रास्तों से होते हुए, पहाड़ों की तरफ बढ़ चले।

     पहाड़ी वादियों में बहुत घने जंगल होते हैं। जंगल भी इतने भयंकर कि वहां कोई जाना पसंद ना करें। यहां के जंगल बड़े बड़े पेड़ों से इस तरह भरे रहते है कि सूरज की रोशनी तक नीचे ना पहुंचे। यह जंगल इतना घना था कि यहां सदियों से कोई इंसान यहां आया ही नहीं था। लोग यहां आने से घबराते थे।

     जंगल के मुहाने पहुंचकर, वे लोग जीप साइड में लगा कर पैदल ही जंगल में आगे बढ़ गए। वे मजाक मस्ती करते हुए आगे बढ़ रहे थे। तथा जगह-जगह रुक कर जड़ी बूटियों को ढूंढ रहे थे। लड़कियों को जंगल में और अंदर जाने से डर लग रहा था क्योंकि आगे जंगल बहुत ही घना होने के कारण वहां रोशनी की कमी थी। चारों तरफ पक्षियों के चहचहाने की आवाजें गूंज रही थी। कहीं-कहीं जानवरों के चिल्लाने की आवाजें आ रही थी। उन्हें एक बोर्ड नजर आया जिस पर लिखा था कि आगे जाना निषेध है। उन्होंने उस बोर्ड की तरफ ध्यान नहीं दिया। वे लोग आगे बढ़ते रहे। अपने बचाव के लिए दो लोगों, राज और साहिल के पास हथियार थे। बाकी निहत्थे थे । राज और साहिल को अपने साथ-साथ अपने मित्रों की भी रक्षा करनी थी। इसलिए राज आगे तथा साहिल पीछे चल रहा था। जंगल में वे इतनी दूर निकल आए कि अब वापसी पर उन्हें रास्ते का पता नहीं चल रहा था।

     आज तक इस जंगल में कोई नहीं आया था। इसलिए वहां पगडंडी वगैरह नहीं बनी थी। वे लोग रास्ता खोजते खोजते परेशान हो गए। रोजी कहने लगी," हमने तो पहले ही मना कर दिया था। ज्यादा अंदर नहीं जाएंगे। पर तुम लोग हमारी बात सुने तब ना।" रिया ने भी रोजी की हां में हां मिलाई सोनिया चुपचाप थी। मुकुंद को बड़ी जोर से भूख लग गई थी। सुबह का नाश्ता तो चलते-चलते पच चुका था। वैसे भी तो वह पेट्टू था। उसे तो हर थोड़ी देर में भूख लग जाती थी। इसका उसने पूरा इंतजाम कर रखा था। उसने अपने बैग में खूब सारा खाने पीने का सामान भर रखा था।

     चलते चलते वे एक खंडहर के पास पहुंच गए। अब उनके चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गई। उन्होंने इस जगह को खोज निकाला था। काफी पुराना छोटा सा महल नुमा खंडहर था। बाहर बहुत सारी झाड़ियां झनकार उगी हुई थी। दरवाजा का पता नहीं था। अंदर पुराने समय में पत्थरों को उकेरकर कर बनाई गई टूटी फूटी मूर्तियां नजर आ रही थी। वह अंदर जाकर कुछ जगह साफ कर सुस्ताने बैठ गए। राज और साहिल सुरक्षा की दृष्टि से आसपास का मुआयना करने लगे। उन्होंने वहां कुछ नाश्ता पानी किया। यह उनके लिए एक रोमांचकारी पिकनिक साबित हो रहा था। थोड़ी देर आराम करने के बाद वे उठे और खंडहर के कमरे का मुआयना करने लगे। कुल पांच कमरे नजर आ रहे थे । पांचवें कमरे में एक कॉर्नर पर नीचे जाने के लिए कुछ सिड़िया नजर आ रही थी। वहां अंधकार ज्यादा होने के कारण वे बाहर आ गए। बाहर आकर उन्होंने कुछ घास तथा मोटी लकड़ियों से चार मसाले बनाई और उसे जलाकर अंदर पहुंचे। मुकुंद ने कहा ,"अब अच्छा है, कुछ दिखाई तो दे रहा है"। राज ने ध्यान से चलने को कहा," उसने कहा जरा ध्यान से चलना, कहीं सांप बिच्छू ना हो" साहिल कहने लगा " हां यहां अब तक कोई इंसान नहीं आया। क्या पता कितने सालों पुराना महल होगा ?" वे सीढ़ियों के रास्ते से नीचे जाने लगे तो भड़भड़ाते हुए, मसाल की रोशनी में चमगादड़ों का झुंड उड़ता हुआ उनके सर के ऊपर से बाहर आ गया। रिया और रोजी की तो चीख निकल गई। वे बहुत डर गए । 

     वे लोग डरते डरते अंदर तहखाने में पहुंच गए। नीचे उन्होंने देखा पत्थरों की कुछ सुंदर मूर्तियां थी। कुछ पत्थर नुमा सामान यहां वहां बिखरा पड़ा था। एक जगह पर एक आईना पड़ा हुआ था। उसका फ्रेम बड़ा ही नक्काशी दार लकड़ियों से बना था जो अपने आप में एक अद्भुत कारीगरी से भरपूर था। उस पर खूब मोटी धूल लगी हुई थी। राज ने उस आईने को उठाया वह बहुत भारी था। उसे बाहर लाने में वह पसीना पसीना हो गया। तीनों लड़कियों ने मिलकर उसे साफ किया। उस आईने में एक अद्भुत कशिश थी, जो उन्हें अपनी तरफ आकर्षित कर रहा था। उसके पीछे संस्कृत में लिखा हुआ था। यह आइना शापित है । कृपया इससे दूर रहे, वरना फंस जाओगे, यह एक चेतावनी थी। उन्होंने उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। वे उसे अपने साथ ले जाने के लिए खंडहर से बाहर आए, पर बाहर तो अंधेरा हो चुका था। वैसे ही वे लोग रास्ता भटक चुके थे। अब रात अंधेरे में किस तरह बाहर पहुंचा जाए, इस का पता न था, और फिर जानवरों का भी डर था। इसलिए उन्होंने रात खंडहर में ही बिताने की सोची।

     आग जलाने के लिए उन्होंने यहां वहां से कुछ लकड़ियां एकत्र की। कुछ लकड़ियों से उन्होंने कैंप फायर किया। तथा कुछ लकड़ियों को खंडहर के दरवाजे के पास जला दिया, जिससे जंगली जानवर अंदर ना आ सके। अपने साथ लाया हुआ खाना खाया तथा पानी पिया । फिर थोड़ी देर बैठ कर यहां वहां की बातें की मजाक मस्ती की। और फिर सोने की तैयारी करने लगे । उन्होंने निश्चय किया कि हर कोई एक घंटा जागेगा निगरानी के लिए। लड़कियां एक तरफ और लड़के एक तरफ लेट गए। सबसे पहले राज जाग रहा था। बाकी सभी थके हुए थे, तो सभी को नींद आ गई। राज पहरेदारी कर रहा था। उसने आईना देखा। वह एक बहादुर और निडर किस्म का लड़का था। उसे वह साधारण आईना लग रहा था। उसने अपने आप को निहारा, तो वह निहारता रह गया। उसे लगा आईना उसे अपने अंदर खींच रहा है। उसने जैसे तैसे आईना से अपनी नजरें हटाई। जैसे ही उसने नजरें हटाई सब सामान्य हो गया। वह समझ गया यह आइना सचमुच में शापित है। जो इसे थोड़ी देर देखेगा, वह इसमें डूबता चला जाएगा और उसमें समाहित हो जाएगा। उसके अंदर फंस जाएगा।

     उसका एक घंटा समाप्त हो चुका था। उसने मुकुंद को उठाकर, खुद लेट गया। उसने उसे कुछ नहीं बताया। उसने सोचा इसे बताऊंगा, तो यह डर जाएगा। मुकुंद आग के पास बैठा आग सेंकता रहा। उसकी नजर यहां वहां घूम रही थी। उसकी नजर सामने रखे आईने पर गई। उसे लगा उसमें किसी की परछाई है। वह अपनी जगह से उठकर आईने की तरफ बढ़ा। इतने में सोनिया उठ गई, उसने रोजी को उठाया की टॉयलेट जाना है। दोनों मुकुंद के पास गए मुकुंद आईने के पास ही खड़ा था। उसे देख रहा था। वे दूसरे कमरे की तरफ चले गए। वहां से जब वे वापस लौटे तो वहां कोई नहीं था। मुकुंद का पता नहीं था। उन्होंने यहां वहां देखा, उन्होंने सोचा शायद वह भी बाहर कहीं टॉयलेट गया होगा।

     सोनिया ने रोजी से कहा ,"तू सो जा मैं जागती हूं"। रोजी अपनी जगह सो गई। थोड़ी देर बाद सोनिया भी उसी आईने की तरफ बढ़ गई। उसकी नजर आईने में पड़ी। आईने में उसे मुकुंद दिखाई दिया। वह आईने के करीब पहुंचकर आईने को हाथ लगाई। वह भी उसी आईने में खिंचीं चली गई, आईने ने उसे अपने अंदर खींच लिया। दोनों आईने में कैद हो चुके थे। रोजी की नींद बीच में खराब हो जाने के कारण उसे सही ढंग से नींद नहीं आ रही थी। वह आंख बंद कर अपनी करवटें बदल रही थी। जैसे कोई उसे पुकार रहा हो। उसे आवाज सुनाई दी । उसने आंखें खोली सर उठाकर यहां वहां देखा। उसे सोनिया दिखाई नहीं दी। वह उठ कर बैठ गई । उसने देखा मुकुंद भी अपनी जगह पर नहीं है। वह अपने आप में कुछ सोच कर मुस्कुराई और लेट गई। अभी आंख बंद भी नहीं हुई थी, कि उसे सोनिया की आवाज सुनाई दी, जैसे वह रोजी को मदद के लिए पुकार रही हो। रोजी उठी उसने यहां वहां देखा। उसकी नजर आईने पर गई। उसे आईने में सोनिया दिखाई दी। वह दौड़कर आईने के पास पहुंची, उसने देखा सोनिया उसके अंदर बंद है। वह उसे बाहर निकालने के लिए प्रयास करने लगी। उसने आईने को यहां वहां घुमाया और उसने भी सोनिया के हाथ पकड़ने के चक्कर में कांच को छू लिया। वह भी उसके अंदर खींची चली गई। अब रोजी सोनिया और मुकुंद उस आईने में कैद हो चुके थे।

     आईने के अंदर एक रहस्यमय दुनियां थी। यह तीनों वहां अलग-अलग जगह कैद हो गए थे। वहां से बाहर आ पाना मुमकिन न था। सुबह के 4:00 बज गए थे । पक्षियों के चह चाहने से साहिल जाग गया । उसने यहां वहां देखा उसे तीन लोग नहीं दिखाई दिए। पहले उसे लगा टॉयलेट गए होंगे पर काफी देर बाद वह उठ कर इधर-उधर देखने लगा। तीनों गायब हो चुके थे। उसने राज और रिया को भी उठा दिया। उनसे कहने लगा "यहां तीन लोग गायब हो चुके हैं, और अब हम तीन लोग ही बचे हुए हैं"। राज ने अपने हाथों को अपने मुंह में दबा दिया। उसने अब इनको बताया कि सारी गलती मेरी है। मुझे तुम लोगों को जगा कर बता देना चाहिए था। कि यह आईना बहुत खतरनाक है। यह आईना सचमुच शापित है। वह तीनों जरूर इसके अंदर कैद हो गए होंगे। हमें उन्हें बाहर निकालने की कोशिश करनी होगी। रिया ने पूछा " कैसे?.... यदि वे इसके अंदर चले गए हैं, तो हम उन्हें बाहर कैसे निकाल पाएंगे ?....."

     साहिल ने कहा इसका राज भी यहीं कहीं होना चाहिए तहखाने में जहां यह आईना पड़ा था। राज ने उन्हें हिदायत दी कि भी कोई भी आईने में नहीं देखेगा। इतने में साहिल को रोजी की आवाज सुनाई दी। वह रोजी को बहुत चाहता था। उसने आईने में देखा, आईने में उसे रोजी नजर आई। वह आईने की तरफ बढ़ गया। वह रोजी को देख रहा था। उसे बाहर निकालने की कोशिश में देखते ही देखते कुछ ही देर में वह भी आईने में खींचता चला गया। रिया यह सब देखकर चीख पड़ी। राज भी कुछ ना कर सका साहिल भी आईने के अंदर कैद हो गया। अब छह लोगों में से सिर्फ दो ही लोग बचे थे। राज ने रीया से कहा "चाहे कुछ भी हो जाए आईने में मत देखना। हमें यहां से बाहर निकलना है।" 

     सूर्योदय हो चुका था। हल्की रोशनी चारों तरफ फैल चुकी थी। तहखाने में अभी भी अंधेरा छाया हुआ था । वे मशाल जलाकर का तहखाने में पहुंच गए। वहां उन्होंने हर एक चीज को बड़े ध्यान से देखा, उन्हें पता लगाना था कि अपने साथियों को बाहर कैसे निकाला जाए। अंदर तहखाने में उन्हें कुछ भी नहीं मिला। वे तहखाने से बाहर आ गए। आईना सूरज की रोशनी में साधारण सामान्य हो गया था। उन्होंने आईने को पेपर में पैक किया। वह एक साधारण आईने की भांति आराम से पेपर में पैक हो गया। वे उस आईने को वहां नहीं छोड़ सकते थे, क्योंकि उसके अंदर उनके चारों मित्र कैद थे। इसलिए वे उसे साथ लेकर वहां से निकल पड़े। जंगल पूरा भूल भुलैया था। वे काफी दूर चले गए, पर वे क्या देखते हैं वे घूम फिर कर फिर उसी खंडहर के सामने पहुंच गये। रिया चीखें मारने लगी। रोने लगी। अपने ईश्वर से विनती करने लगी, हे ईश्वर यह हम कहां फंस गए। अब क्या हम यहां से कभी बाहर नहीं निकल पाएंगे?" राज ने रिया को धैर्य रखने को कहा और कहा "डरो नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूं। हम यहां से जरुर बाहर निकल जाएंगे। तुम चिंता मत करो।" वह फिर चलने लगे। उन्हें ना प्यास लग रही थी ना भूख लग रही थी। उन्हें तो बस अब इस जंगल से बाहर निकलना था। इसलिए वे लगातार चलते रहे- चलते रहे। चलते-चलते शाम हो गई। वे फिर घूम फिर कर उसी खंडार के पास पहुंच गए। वह आज पूरे दिन भर चले थे। पूरी तरह से थक चुके थे। शाम हो चुकी थी। सूर्य अस्त हो रहा था। अंधेरा होने लगा। राज के दिमाग में विचार आया कि क्यों ना इस कांच को तोड़ दिया जाए, शायद इसके कारण ही वे लोग इस जंगल से बाहर नहीं निकल पाए। उसने आव देखा न ताव और उस आईने को एक बड़े से पत्थर के ऊपर पटक दिया। वह आइना टूटा नहीं, उसके अंदर की रहस्यमय शक्तियां वापस आ चुकी थी। अंधेरा घिर चुका था। आईने में से पेपर निकल चुका था। राज को अपनी मां का दिया हुआ खंजर याद आया। वह उस खंजर से ही उस कांच के ऊपर लगातार प्रहार करने लगा। रिया दुर खड़ी यह सब देख रही थी। उसे आईने में उनके मित्र दिखाई दे रहे थे। उसे ऐसे लगा राज जैसे अपने ही मित्रों पर खंजर से प्रहार कर रहा है। रिया ने राज को मना किया ऐसा मत करो। तुम अपने ही मित्रों को मार रहे हो। उसने राज को दूर धकेला और आईने में अपने मित्रों को देखने के लिए आगे बढ़ी, उसने आईने में देखा, उसे वहां कोई नहीं दिखाई दिया पर वह आईने के करीब पहुंच चुकी थी। वह लगातार आईने को हीं देखी जा रही थी। आईने ने उसे भी अपने अंदर खिंच लिया। राज चीखता चिल्लाता रह गया। अब एक-एक कर उसके सारे मित्र आईने में आकर उसे पुकारते राज तुम भी अंदर आ जाओ। अब अकेले क्या करोगे? पूरी रात राज के साथ यही होता रहा। कभी कोई पुकारता तो कभी कोई पुकारता इन सब आवाजों के चलते राज का दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। वह पागल हो गया। 

     सुबह हो गई। वह आइना उड़कर तहखाने में अपनी जगह वापस आ गया। राज भटकते भटकते अपने आप में बड़बड़ाते हुए सड़क तक पहुंच गया। यहां पुलिस वाले और उनके घर वाले उनकी तलाश कर रहे थे। उन्होंने राज को देखा। वे राज से उनके मित्रों के बारे में पूछने लगे, बाकी लोग कहां है। पर राज कुछ भी बताने के हालत में नहीं था। वह पूरी तरह से पागल हो चुका था। उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया।

     राज के बाकी सभी साथी जंगल में कहां भटक गए यह लोगों के लिए एक राज बनकर ही रह गया।


           


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