सफ़ीना
सफ़ीना


दूर से गोलियों की आवाज़ “ठक ठक ठक” कानो में साफ़ सुनाई पड़ रही थी। मगर रात के समय असलम भाई के लिए ये कोई नई बात नहीं है बल्कि हर तीसरे ऱोज का क़िस्सा है।ज़ोर दार लात के साथ एकाएक घर का दरवाजा खुलता है और एक नकाबपोश आदमी असलम भाई के माथे पर बन्दूक लगाकर बोला “घर में जो खाने पीने का है वो ले आओ और ख़बरदार अगर काफ़िरो को ख़बर की तो”।
डरे सहमे असलम भाई और सहमी बेगम रसोई में खाना परोस रहे थे और उनकी 10 साल की बेटी सफीना बिस्तर के नीचे सांस रोके लेटी हुई थी। वही नकाबपोश विचलित सा पूरे कमरे में तेज तेज चक्कर काट रहा था।
एकाएक कमरे में लाल रंग नुमा लेसर बीम घुमती दिखाई दी और कुछ सेकंड के लिए एक ही जगह पर आ ठहरी “ठक ठक ठक”…
असलम भाई खाना लेकर जैसे ही कमरे में पहुचें तो लाल रंग से उनके पाँव भीग गए। असलम भाई के हाथ से खाने की थाली नीचे गिर गयी और वो अजान पढ़ने लगे “या इलाही इल लालह …।।”
सहमा बेगम और सफीना सहमे हुए दो हिस्सों में बटी खोपड़ी के चीथड़े को देखते रहे।
सेना कार्येवाही समाप्त कर जा चुकी थी।