आदत से मजबूर
आदत से मजबूर


भरी सभा में सारे ज्ञानी लोग एक आदमी को पकड़ रगड़ रगड़ धोने में लगे है।
तू फर्जी इंसान है रे
तू घपलेबाज है रे
तू तो कपट मूर्ति है रे
तू तो चंडाल है रे
तुझसे घटिया तीनों लोक में कोई नहीं रे
तुझसे घटिया तो ब्रह्माण्ड में कोई नहीं रे
ये सुन सुन कर भाई दुर्योधन के कान लहू लुहान हो गए और वो गुस्से में कुर्सी पीछे फ़ेक के मारते हुआ खड़ा हुआ।
“सारे सुन लो जो जो तुम कह रहे हो सब सही कह रहे हो मगर मुझ से किसी सुधार की उम्मीद मत करना।”
बाबा भीष्म: सुधार की उम्मीद क्यों नहीं करे बे ??
दुर्योधन: जी में भयंकर मजबूर हूँ
बाबा भीष्म: तू किस चीज़ से मजबूर है बे ??
दुर्योधन: जी आदत से !!!
तो मित्रों हम सब को भी अपनी सारी खूबियों का पूर्ण ज्ञान होता है मगर हम भी मजबूर है जी…।।आदत से!!!
राम राम