सदमा
सदमा
"प्यार" एक अनमोल जज़्बात है जिसे समझाने के लिए आपको किसी भी भाषा या शब्द की ज़रूरत नहीं होती। एक बेज़ुबान इंसान भी अपने प्यार को बखूबी अपने चाहने वालों तक पहुंचा सकता है। मीत का प्यार इस बात का साक्षात प्रमाण है क्योंकि मीत भी एक बेज़ुबान लड़का था।
मीत और रूही बचपन से ही एक दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त रहे। दोनों पड़ोसी थे तो एक दूसरे के घर में खेलने के लिए आना जाना लगा ही रहता था। रूही एक अमीर घराने की लड़की थी। पर मीत के माता-पिता का आर्थिक अवस्था कुछ सही नहीं था इसलिए मीत अपने मामा-मामी के साथ ही रहता था। रूही के माता- पिता और मीत के मामा-मामी में काफ़ी अच्छे संबंध थे। लेकिन मीत की मामी मीत के साथ काफ़ी सख़्ती से पेशात थी। जब भी मीत पढ़ने बैठता था तब मामी वक्त-बेवक्त उससे घर का काम करवाती थी, उसे भरपेट खाना भी नहीं देती थी।
मीत बेज़ुबान होते हुए भी रूही तक अपने दिल की बात आसानी से पहुंचा पाता था। रूही भी मीत के कुछ बिना बोले ही समझ जाती थी कि मीत क्यों दुःखी है और कब दुःखी है। रूही के घर में जब भी अच्छे पकवान बनते थे, वह मीत के लिए छुपाकर लाती और उसे खिलाती थी। मीत हमेशा रूही को खुश देखना चाहता था इसलिए वह रूही के कहने पर पेड़ पर चढ़कर उसके लिए आम तोड़ लाता, तालाब से कमल का फूल ले आता, यहां तक की रूही की ख़ुशी के लिए तितलियां भी पकड़ने की कोशिश करता।
वक्त बीतता गया और दोनों अब ग्यारवीं कक्षा में पहुंच चुके थे। एक दिन मीत मेले से रूही के लिए उसकी मन पसंद कांच की चूड़ियां लाया और रूही को अपने हाथों से पहना दिया। रूही को एहसास हो चुका था कि मीत उससे बेहद प्यार करता है और कहीं न कहीं रूही भी मीत को चाहने लगी थी। रूही को चूड़ियों के लिए खुश देखकर मीत भी बहुत खुश हो गया। मीत के लिए रूही मानो उसकी ज़िंदगी थी।
पहली बार मीत को अपने बेज़ुबान होने पर अफ़सोस हुआ और अपने आप को लाचार पाया जब वह एक बस को तेज़ रफ़्तार से रूही की तरफ़ बढ़ते हुए देखा पर बेज़ुबान होने की वजह से रूही को आवाज़ नहीं दे पा रहा था। पर रूही को अपनी ज़िंदगी मानने वाला मीत अपनी जान की परवाह किए बिना रूही को बचाया और खुद घायल हो गया। रूही को उस दिन पूरा एहसास हो गया था कि मीत उसको कितना प्यार करता है।
लेकिन बेज़ुबान मीत की खुशियों को मानो किसी की नज़र लग गई हो वरना रूही के पिता का अचानक तबादला होना और रूही का मीत से बिछड़ जाना मीत के लिए एक सदमा ही तो था। रूही जाने से पहले जब मीत से मिलने आई तो मीत ने अपने हाथों से फूलों से बनाया हुआ एक अंगूठी रूही को पहना दिया। मानो मीत बहुत कुछ बोलना चाहता था रूही से जो मीत के आसूं बयां कर गए। रूही भी अपनी एक सोने की अंगूठी मीत को पहनाते हुए बोली, "भले ही मैं तुमसे दूर जा रहीं हूं पर मैं शादी तुम्हीं से करूंगी। यह मेरा वादा है तुमसे।" देखते ही देखते रूही की कार चल पड़ी और मीत उस कार के पीछे रोते हुए, बहुत दूर तक भागता रहा। रूही के जाने के बाद, मीत काफ़ी उदास रहता था क्योंकि बेज़ुबान होने की वजह से मीत बेचारा फ़ोन पर भी बात नहीं कर पाता था। उसको बस रूही की चिट्ठियों का इंतज़ार रहता था और जब भी उसकी चिट्ठी आती तो मीत उसे पढ़कर बहुत खुश हो जाता था।
अचानक रूही का चिट्ठी आना बंद हो गया और ना ही मीत की लिखी हुई चिट्ठियों का कोई जवाब आता था। लाचार और बेज़ुबान मीत मन ही मन घुटता रहा और उसकी चिट्ठियों का इंतज़ार करता रहा। करीब पांच साल बाद रूही की एक चिट्ठी आई जिसपे रूही ने जल्द मीत को अपने नए घर में बुलाया।मीत बहुत खुश था कि आखिर में रूही ने अपना वादा निभाने के लिए मीत को अपने पास बुलाया। मीत ख़ुशी-ख़ुशी रूही के नए घर पहुंचा।
वहां पहुंचकर मानो मीत के पैरों तले ज़मीन खिसक गई । सारा घर फूलों से सजाया हुआ था और बाहर बोर्ड पर लिखा था, "रूही वेड्स शशांक"। मीत पागलों की तरह रूही को ढूंडने लगा और अचानक रूही को दुल्हन के जोड़ें में खुश देख हक्का-बक्का रह गया। मीत धीरे से रूही के पास जाकर रूही की दी हुई सोने की अंगूठी दिखाकर इशारों से उसको समझाने की कोशिश कर रहा था,"तुमने तो मुझसे शादी करने का वादा किया था क्योंकि तुम तो मुझसे प्यार करती थी, तो फिर यह शादी कैसा?" मीत की आंखों से आंसू रुक ही नहीं रहे थे और मानो मीत रूही से पूछ रहा हो, "मेरे प्यार का तुम्हारे पास कोई मोल नहीं, क्योंकि मैं एक बेज़ुबान हूं?" "क्या हुआ तुम्हारे उस वादे का?"
रूही उसकी भाषा समझकर मीत से बोली, "वादा? कौनसा वादा?" हंसते हुए बोली, "पागल हो क्या? तुम मेरे बचपन के अच्छे दोस्त तक ठीक हो। पर तुम जैसे एक बेज़ुबान से शादी कर मैं अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं कर सकती। वो बस मेरी बचपन की एक नादानी थी कोई वादा नहीं ।"
रूही की इतनी बेवफ़ाई, कड़वी बातें और अपनी आंखो के सामने शशांक के साथ लेते हुए सात फेरों का सदमा मीत ले ही नहीं पाया और वह पागल हो गया।
अब मीत रूही की ही शहर में उस सोने की अंगूठी को लेकर घूमता रहता और हर राह चलते लोगों से अंगूठी दिखाकर इशारा करता मानो वह बता रहा हो, "मेरी रूही मुझे छोड़कर हमेशा के लिए चली गई।" "मेरी रूही मुहे छोड़कर हमेशा के लिए चली गई।"
नाम: आयुषी भादूरी

