धड़कन
धड़कन
धड़कन की बोल नहीं होती पर उसकी धड़क हर एक एहसास को बख़ूबी समझा ही जाती है।
यह कहानी पाखी और रजत की अनमोल दोस्ती की कहानी है जो सबकी रूह को छू जाएगी।
पाखी एक अनाथ लड़की थी जो अपनेे चाचा-चाची के पास रहती थी। पाखी आठवीं कक्षा में पढ़ती थी। पाखी काफ़ी सहमी-सहमी सी रहती थी और दोस्तों सेे ज़्यादा बात-चीत करना पसंंद नहीं करती थी। उसके स्कूल के बाहर उसी के उम्र का एक लड़का हर रोज़ गुब्बारें बेचने आता था। उस गुब्बारे बेचने वाले लड़के का नाम रजत था। एक दिन पाखी रजत के पास गई और पूछी, "यह गुब्बारा कितने की है?" रजत ने कहा, "पांच रुपए।" पाखी ने धीरे से पूछा, "तुम दिन में कितने गुब्बारें बेच लेते हो?" रजत ने कहा, "यही कुछ दस से बारह।" पाखी ने उदास मन से पूछा, "तो फ़िर तुम स्कूल नहीं जाते?" रजत ने बोला, "हा, मैं स्कूल जाता तो था, सातवीं कक्षा तक पढ़ाई भी की पर घर की हालात इतने खराब हो गए कि अब पढ़ाई का ख़र्चा मेरे मां-बाप नहीं उठा सकते। इसलिए उनका हाथ बटाने के लिए अब मैं गुब्बारें बेचता हूं।" यह सब सुनकर पाखी काफ़ी उदास हो गई और रजत से कहा कि, "अब से तुम हर रोज़ छुट्टी के वक्त मेरा इंतज़ार करना, मैं तुमसे गुब्बारें खरीदूंगी।" दूसरे दिन से पाखी हर रोज़ रजत से दस गुब्बारें खरीदती और पचास रुपए रजत के हाथ में देती। पर पाखी कभी वो गुब्बारें घर में लेकर नहीं जाती बल्कि वो दस गुब्बारें रजत को वापस दे देती और कहती, "यह गुब्बारें तुम किसी और को दुबारा बेच देना।" रजत इस बात पर थोड़ा झिझक रहा था पर पाखी के मनाने पर वह मान गया। पाखी हर रोज़ रजत के लिए स्कूल के कैंटीन से कभी चाउमीन, कभी बर्गर तो कभी सैंडविच लेकर आती थी और अपने ही बोतल से पानी भी पिलाती थी। धीरे-धीरे दोनों में काफ़ी अच्छी दोस्ती हो गई। समय बीतता गया और देखते ही देखते पाखी बारहवीं कक्षा में पहुंच गई पर उन दोनों की दोस्ती दिन भर दिन और गहरी होती गई। एक दिन पाखी ने रजत को ख़ुशी से कहा, "पता है रजत, कल मेरा जन्मदिन है, तुम ज़रूर आना।" रजत भी ख़ुश होकर बोला, "हां-हां ज़रूर आऊंगा।" रजत मन ही मन पाखी को चाहता था पर कभी हिम्मत जुटाकर पाखी को कभी अपनी दिल की बात नहीं बता पाया। दूसरे दिन रजत पाखी के लिए पैसे बचा बचाकर एक बड़ा सा चॉकलेट ले आया और पाखी को जन्मदिन की बधाइयां दी। पाखी बहुत खुश हो गई और कहा, "रजत, यह तोहफ़ा मेरे लिए बेहद कीमती है क्योंकि यह तुमने दिया है।" रजत उस दिन पाखी को अपने मन की बात बताना चाहता था पर रजत कुछ बोलता उस से पहले ही पाखी रजत को केक खिलाते हुए बोली, "पता है, मेरा रिश्ता तय हो चुका है और परीक्षा ख़त्म होते ही मेरी शादी हो जाएगी। फ़िर तो हम और मिल ही नहीं पाएंगे। रजत, तुम हमारी दिस्ती को कभी भुला तो नहीं दोगे ना? मुझसे मिलने तुम आओगे ना?" रजत के लिए जैसे सब कुछ एक पल के लिए थम सा गया। रजत ने अपने दिल की बात दिल में दबाकर रख दी। देखते ही देखते पाखी की शादी हो गई। कुछ ही दिनों में पाखी को एहसास होने लगा कि उसका पति मोहक और उसके ससुरालवाले अच्छे इंसान नहीं हैं। बात-बात पर पाखी का पति उस पर हाथ उठाता, गाली देता और ससुरालवाले दिन-रात उससे काम करवाते थे। पाखी ने रजत से कई बार मिलने की कोशिश की पर मोहक उसे अकेले कहीं नहीं निकलने देता था और दिन-रात उस पर अत्याचार करता था और धमकियां देता था कि, "अगर इस मार-पीट के बारे में अपने चाचा-चाची को कुछ भी बोला तो इस घर में तेरा आखरी दिन होगा।" पाखी डर के मारे चुप रहती। एक दिन पाखी की तबीयत बहुत ज़्यादा बिगड़ गई और उसको अस्पताल में भरती करवाना पड़ा। जांच के बाद पता चला कि जल्द से जल्द पाखी का हार्ट ट्रांसप्लांट करवाना होगा नहीं तो उसकी जान भी जा सकती है। रजत को जैसे ही पाखी के चाचा-चाची से पाखी की भरती की खबर मिली, वह तुरंत अस्पताल गया और पाखी के लिए वो कर दिखाया जो शायद पाखी ने कभी अपने सपने में भी ना सोचा होगा।
भले ही रजत अपने दिल की बात कभी पाखी को ना बता पाया लेकिन वो अपना ख़ूबसूरत दिल पाखी को देकर यह साबित कर गया कि वो पाखी से कितना प्यार करता था।
अब रजत पाखी की "धड़कन" बनकर हमेशा के लिए पाखी के पास ही रह गया। आपरेशन के बाद जब पाखी को होश आया तो उसने डॉक्टर से पूछा, "मुझ अनाथ को किसने नई ज़िंदगी दी? मुझे उसके बारे में जानना है।" तब डॉक्टर ने पाखी को दो गुब्बारें दिए जो रजत पाखी के लिए छोड़ गया था। गुब्बारें देखकर पाखी को समझ आ गया कि वो इंसान और कोई नहीं रजत ही था। पाखी चीख चीख कर रोने लगी और कहने लगी, "रजत तुम मुझे अकेला छोड़कर नहीं जा सकते। तुमने यह क्या किया? खुद मौत को गले से लगा लिया और मुझको नई ज़िंदगी दे गए? पाखी बहुत रोई और कहने लगी, "रजत, तुम मेरी धड़कन बनकर हमेशा के लिए मुझमें ज़िंदा रहोगे।"
दो साल बाद पाखी को एक प्यारा सा बेटा हुआ जिसका नाम पाखी ने "रजत" रखा ताकि हर पल पाखी को रजत की मौजूदगी का एहसास हो।

