ayushi bhaduri

Children Stories Inspirational

4.5  

ayushi bhaduri

Children Stories Inspirational

निवाला

निवाला

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राकेश और सीमा का एक सात साल का बेटा था जिसका नाम ध्रुव था। ध्रुव एक नामी अंग्रेज़ी माध्यम स्कूल में पढ़ता था। ध्रुव के माता-पिता दोनों नौकरी करते थे इसलिए हरि काका ध्रुव को स्कूल ले जाते थे और स्कूल से वापस भी ले आते थे। ध्रुव का जो भी जिज्ञासा होता था वह हमेशा हरि काका से ही पूछता था और हरि काका भी धैर्यपूर्वक उसके हर सवाल का जवाब देते थे। एक दिन जब वह स्कूल जा रहा था तब उसकी नज़र एक छोटी से झोपड़ी में पड़ा। ध्रुव ने देखा कि उस झोपड़ी के सामने छोटे- छोटे दो बच्चे कूड़ेदान से कुछ खाने की चीज़ें उठाकर आपस में लड़ रहे थे। ध्रुव जो कि बहुत ही कोमल हृदय वाला बच्चा था, उस नज़ारे को देखकर वह उदास हो गया। अब वो जब भी स्कूल जाता और स्कूल से लौटता, वो झोपड़ी की तरफ़ देखता रहता। कभी दोनों बच्चों को खेलता देखता तो कभी रोते हुए देखता और कभी किसी खाने की चीज़ को लेकर लड़ते हुए देखता। हरि काका ध्रुव को निराश देखकर एक दिन पूछा कि, "तुम पहले जैसे स्कूल जाते - आते वक्त मुझसे सवाल क्यों नहीं पूछते? अच्छे से बात क्यों नहीं करते?" ध्रुव ने हरि काका को तब झोपड़ी वाली बात बताई।

ध्रुव ने हरि काका से आग्रह किया कि उसे स्कूल से लौटते वक्त उन दो बच्चों से बात करना है। हरि काका ने लौटते वक्त ध्रुव को उस झोपड़ी के सामने ले गए। ध्रुव ने इशारों से दो बच्चों को बुलाया और प्यार से दोनों का नाम पूछा। उन्होंने बताया,"मेरा नाम राजू है और मेरी बहन का नाम मुनिया है। मेरे पापा एक मोची है और हम इसी झोपड़ी में रहते हैं।" फिर ध्रुव ने उनसे पूछा कि, "तुम दोनों उस दिन कूड़ेदान से खाना क्यों खा रहे थे?" मुनिया ने बोला, "हम तो गरीब है, हमें तो दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं होता।" यह सब सुनकर ध्रुव की आखें भर आई। ध्रुव उन्हें टाटा बोलकर उदास मन से घर चला गया। दूसरे दिन सुबह-सुबह जब हरि काका ध्रुव को स्कूल के लिए तैयार कर रहे थे , उसने हरि काका से बड़ा सा एक डब्बा मांगा। हरि काका डब्बा देते हुए ध्रुव से पूछा, "बेटा स्कूल में यह डब्बा क्यों लेकर जा रहे हो?" ध्रुव ने कुछ नहीं बोला और डब्बा लेकर अपने स्कूल के बस्ते में भर दिया। ध्रुव अपने कक्षा का कप्तान था, तो सभी बच्चें उसकी बात मानते थे। ध्रुव ने कक्षा में सबको उस झोपड़ी के बच्चों के बारे में बताया और सबसे आग्रह किया, " दोस्तों हम लोग सारा टिफिन खा नहीं पाते तो स्कूल के कूड़ेदान में डाल देते हैं ताकि घर में जाकर मम्मी से डांट न पड़े लेकिन आज से हम सब कोई खाना बर्बाद नहीं करेंगे।" यह बोलकर ध्रुव ने अपने बस्ते से वो डब्बा निकला और सबको अपने टिफिन में से थोड़ा थोड़ा खाना उस डब्बे में डालने को कहा और सभी ने वैसा ही किया। इस तरह रोज़ ध्रुव घर जाते वक्त उस डब्बे का सारा खाना उन दो बच्चों को देकर जाता था। तो इस से हमें यही सीख मिलती है कि "खाने की बर्बादी कभी न करो क्युकी आज जो एक निवाला तुम बर्बाद कर रहे हो, शायद उस एक निवाले के लिए दूसरा कोई तरस रहा होगा।"


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