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ayushi bhaduri

Tragedy Inspirational Others

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ayushi bhaduri

Tragedy Inspirational Others

"काश! हम मिले ही ना होते "

"काश! हम मिले ही ना होते "

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"हमसफ़र", यह लफ्ज़ दिमाग़ में आते ही यह दिल न जाने कितने सुनहरे सपने बुनने लगते हैं। हमसफ़र यानी जीवनसाथी जिनके बिना हमसबका जीवन का सफ़र अधूरा है। हम सबके दिल में अपने अपने हमसफ़र को लेकर न जाने कितने अरमानों का महल बसा चुके हैं। क्या वाकेई जिंदगी में हर एक को अपना मनचाहा हमसफ़र मिलता है? जिन्हें मिल जाए, वो नसीबवाला, और जिन्हें ना मिले वो ना जाने कितने गमों और आसुओं के साथ अपने जीवन का सफ़र उस अनजान शक्स के साथ गुज़ारते होंगे। 


हम सभी दिल से चाहते हैं कि हमारा हमसफ़र हमसे बेइंतहा मोहब्बत करे, हमें कभी धोखा ना दे, जिंदगी के हर मोड़ पे हम दोनों में एक अच्छी साझेदारी हो, हमारे कुछ बोलने से पहले ही वो हमारे दिल की बात समझ जाए। पर शायद हर किसी को अपना प्यार नसीब नहीं होता चाहे वो प्यार कितना ही गहरा और सच्चा क्यों ना हो? 


यह कहानी सक्षम, आशी और रक्षित की है। सक्षम और आशी एक ही कॉलेज में पढ़ते थे पर दोनों का विषय अलग अलग थे। दोनों की पहली मुलाकात एक तूफ़ानी बरसात वाले दिन में हुआ था। आशी छाता लेकर कॉलेज के अंदर चल रही थी कि तभी उसने देखा की सक्षम भीगता हुआ उसके पास से गुज़र रहा है। आशी ने सक्षम को आवाज़ दी, "हेलो! आप मेरा छाता शेयर कर सकते हैं।इस तरह भीगेंगे तो बीमार पड़ जायेंगे।" सक्षम पीछे मुड़कर देखा और एक हल्के से मुस्कुराहट के साथ कहा, "शुक्रिया।" और फिर दोनों एक ही छाते में कॉलेज के भीतर चलने लगे। चलते चलते दोनों ने एक दूसरे का नाम पूछा, विषय पूछा और फिर अपने अपने कक्षा तक पहुंच गए। कुछ दिन बाद दोनों अचानक कॉलेज की कैंटीन पर मिले और एक ही साथ बैठकर खाना भी खाए। उस दिन दोनों काफ़ी देर तक बातें किए और अपना मोबाईल नम्बर भी एक दूसरे के साथ शेयर किए। धीरे धीरे दोनों एक दूसरे से मोबाईल पर बातें और चैट करते रहे और दोनों में काफी अच्छी दोस्ती होने लगी। सक्षम बहुत ही मज़ाकिया स्वभाव का था और आशी के साथ काफी मज़ाक किया करता था। एक दिन आशी ने सक्षम से पूछा, "सक्षम, तुम्हारी क्या कोई गर्लफ्रेंड है?" सक्षम ने झट से मज़ाक में आशी से झूठ बोल दिया, "हां, मेरी तो गर्लफ्रेंड है।" यह सुनकर आशी को बहुत दुख हुआ क्योंकि आशी, सक्षम को पसंद करने लगी थी। फिर से आशी ने पूछा, "क्या वो इसी कॉलेज में पढ़ती है?" सक्षम ने फिर से झूठ बोला, "नहीं वो दूसरे कॉलेज में पढ़ती है।" आशी ने फिर धीर से बोला, "अब उसका नाम भी बतादो।" सक्षम ने मज़ाक मज़ाक में एक झूठा नाम बता दिया, "उसका नाम? उसका नाम, नैना है।" सक्षम को पता ही नहीं था कि उसके इस मज़ाक से आशी के दिल पर क्या बीत रही थी और वो सक्षम के हर मज़ाक को सच मान रही थी। थोड़ी देर में आशी ने सक्षम को बाई बोला और किसी ज़रूरी काम का बहाना देकर वहां से चली गई। घर आकर आशी बहुत रोई क्योंकि वह मन ही मन सक्षम को प्यार करने लगी थी और उसको भी लगा था कि सक्षम भी उससे प्यार करता है। आशी ने तो सक्षम को ही अपना हमसफ़र मान लिया था और उसी के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताने का सपना भी देख चुकी थी। यह सब जानने के बाद आशी ने सक्षम को अपनी दिल की बात फिर कभी नहीं बताया और एक अच्छी दोस्त बनकर ही रह गई। 


वक्त बीतता गया और दोनो की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी। अब आशी की जिंदगी में वो वक्त आ चुका था जब उसको अपना हमसफ़र चुनना था पर आशी ने कॉलेज में सक्षम के सिवा किसी और से प्यार किया ही नहीं था। पर यह आशी की बदकिस्मती थी की सक्षम ने आशी के प्यार को कभी समझ ही नहीं पाया क्योंकि सक्षम के एक झूठ और मज़ाक ने दोनों को कभी एक होने का मौका ही नहीं दिया। 


आशी को मजबूरन अपने माता पिता के पसंदीदा लड़के से शादी करने के लिए राज़ी होना पड़ा। उस लड़के का नाम था रक्षित। ना चाहते हुए भी आशी को उस अनजान रक्षित को अपना हमसफ़र मानना पड़ा। आशी दिल से रक्षित के साथ रहना नहीं चाहती थी और ना ही वह खुश थी क्योंकि आशी अब भी दिल से सक्षम से ही प्यार करती थी। शादी के बाद आशी और पढ़ाई करना चाहती थी पर रक्षित और उसके घर वालों ने इसकी इजाज़त नहीं दी। आशी को सिर्फ नौकरी करने की ही इजाज़त मिली। रक्षित बहुत ही बदमिजाज़ वाला इंसान था। बात बात पर वह आशी पर चिल्लाता था। अपना हर छोटे से छोटे काम वह जान बूझकर आशी से करवाता था ताकि वो आशी को परेशान कर सके। थका हारा जब आशी नौकरी से लौटती थी रक्षित उसको दो मिनट भी चैन से उसको बैठने नहीं देता था और ना ही उसको एक गिलास पानी को पूछता था उल्टा हर रोज़ नए नए खाना बनाने की फरमाइश करता था। सिर्फ इतना ही नहीं रक्षित इतना बुरा इंसान था की वह हर रात आशी की मर्ज़ी हो या ना हो, उसपर अपना हक जाताता था। आशी, रक्षित के हर अत्याचार को सहने को मजबूर थी क्योंकि रक्षित आशी के किसी दूर के रिश्तेदार का बेटा था और आशी नहीं चाहती थी की उसकी वजह से रिश्तेदारों से उसके माता पिता को अपमानित होना पड़े। ऐसा एक भी दिन नहीं था जिस दिन आशी ने आसूं ना बहाया होगा।


रक्षित ने एकदिन हद ही पार कर दी। आशी को काम से लौटने में थोड़ी सी देर होगई थी कि रक्षित ने उसको बहुत खड़ी खोटी सुनाई और जैसे ही आशी ने थोड़ी सी आवाज़ उठाई, रक्षित ने आशी पर हाथ ही उठा दिया। कुछ दिन बाद आशी को पता चला की वो मां बनने वाली है। आशी ने रक्षित को बताया तो रक्षित ने उतनी खुशी ज़हिर नहीं की। आशी ने सोचा था कि अब शायद रक्षित उसका थोड़ा सा ख्याल रखेगा, उससे प्यार से बात करेगा क्योंकि वह रक्षित के बच्चे की मां बनने वाली थी। पर अफ़सोस आशी ने जैसा सोचा था, वैसा कुछ भी नहीं हुआ। रक्षित पहले की तरह ही आशी से हर काम करवाता था। एक दिन आशी की तबीयत ज़्यादा ही खराब लग रही थी तो उसने खाना नहीं बनाया था। तो जैसे ही रक्षित ने घर आकर देखा की आशी ने खाना नहीं बनाया तो उसको बहुत तेज़ गुस्सा आया। उसने आशी से चिल्लाकर पूछा, "तुमने खाना क्यों नहीं बनाया अभी तक? महारानी की तरह सोई क्या हो? उठो और खाना बनाओ, मुझको बहुत भूख लगी है।" आशी ने बोला, " एक दिन तुम भी तो हमारे लिए खाना बना सकते हो, हमेशा मैं ही बनाऊ, ऐसा कहां लिखा है?" यह सुनते ही रक्षित ने आशी को एक कसकर चांटा लगाया। आशी रोते रोते उस दिन बिना खाए ही सो गई। 


अगले दिन जब आशी काम पर जा रही थी, तो अचानक उसे सक्षम मिला। सक्षम आशी को देखकर हैरान हो गया। वो सोचने लगा, "मैं यह कौनसी आशी को देख रहां हूं? वो पहली जैसी सुंदर और बहुत बातें करने वाली आशी कहा गुम हो गई?" फिर उसने आशी को अपने कार में बिठाकर एक कैफे लेकर गया क्यों कि सक्षम को कुछ गड़बड़ लगा और उससे बातें करना चाहता था। आशी ने रोते रोते सक्षम को सब कुछ बता दिया और साथ में यह भी बताई कि,"काश! सक्षम तुम्हारी गर्लफ्रेंड नहीं होती तो मैं उस दिन तुमको अपने दिल की बात बता देती की मैं तुमसे कॉलेज के दिनों से ही बहुत प्यार करती थी और तुमको ही अपना हमसफ़र दिल से मान चुकी थी। मन ही मन ना जाने तुमको लेकर कितने सपने देखे थे, यह करेंगे वो करेंगे, यहां घूमने जायेंगे और बहुत खुश रहेंगे शादी के बाद।" पर मेरी तकदीर तो देखो, "एक अंजान इंसान को न चाहते हुए भी मेरा हमसफ़र बनाना पड़ा और दिन रात बस आंसू और गम के सिवा मुझको और कुछ न मिला। क्या सच में यही सब पाने की योग्य हूं मैं, बोलो ना सक्षम?" आशी का रोना देखकर सक्षम को बहुत बुरा लगा, वो मन ही मन अपने आप को कोसने लगा, "काश मैंने उस दिन आशी से ऐसा मज़ाक ना किया होता, झूठ ना बोला होता तो आज हम दोनों हमसफ़र होते और मेरी आशी को इतना दुख और ज़ुल्म ना सहना पड़ता। मैं उसका हर सपना पूरा करता, उसको पलकों पर बिठाकर रखता। क्यों नहीं समझ पाया मैं आशी का सच्चा प्यार? काश मैं समझ जाता तो आशी आज मेरे साथ कितनी खुश रहती।" आशी का इतना रोना देखकर सक्षम हिम्मत नहीं जुटा पाया की आशी से यह कह दे कि, "मैंने उस दिन बस एक मज़ाक किया था। मेरी कोई गर्लफ्रेंड है ही नहीं।" सक्षम को पता था यह सुनकर आशी बिलकुल ही टूट जाएगी। जैसे ही आशी रोने लगी उसके पेट में अचानक बहुत दर्द होने लगा। सक्षम ने कार में बिठाकर उसको जल्द से जल्द अस्पताल ले गया। सक्षम की बहन उसी अस्पताल में डॉक्टर थी। तो सक्षम के लिए आशी की डिलीवरी करवाना और आसान होगया। आशी ने एक फूल जैसी बच्ची को जन्म दिया पर आशी के बचने की उम्मीद ना के बराबर थी। आशी को भी एहसास हो गया था कि उसके पास वक्त बहुत कम है। आशी ने सक्षम का हाथ पकड़ा और अपने बच्ची की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, "सक्षम मैं हमेशा सिर्फ तुम्हारे पास रहना चाहती थी, पर वो तो नहीं हो पाया। प्लीज़ तुम मेरी बच्ची को हमेशा के लिए अपने पास रख लो। क्योंकि रक्षित कभी मेरी बच्ची का ख्याल नहीं रखेगा। ना ही कभी वो अच्छा पति बन पाया। ना ही कभी अच्छा पिता बन पाएगा। तुम्हारे पास मेरी बच्चे रहेगी, तो मैं चैन से मर सकूंगी। " सक्षम ने आशी से वादा किया की वो आशी की बच्ची को हमेशा अपने पास ही रखेगा। यह सुनकर आशी सक्षम की तरफ़ एक मुस्कान देकर उसका हाथ पकड़े ही अपना दम तोड़ दिया। सक्षम बच्ची को अपने गोद में लेकर बहुत रोया क्यूंकि उसको अपने उस मज़ाक का पश्चाताप हो रहा था, "मेरी वजह से यह सब हुआ वरना आशी आज मेरे साथ खुश रहती और जिंदा भी।" सक्षम यही सब सोच कर बहुत रो रहा था। और उस बच्ची का नाम भी अपनी मां के नाम पर "आशी" ही रखा। उधर बच्ची के भलाई के लिए डॉक्टर ने भी रक्षित के घर, खबर भिजवा दिया की मां और बच्चा, दोनों अब इस दुनिया में नहीं रहे। 


सक्षम ने कभी शादी ही नहीं की और आशी की यादों में उसकी बच्ची के साथ ही जिंदगी गुजारने लगा। 

यह दर्दनाक कहानी पढ़ने के बाद क्या हम सबके दिमाग में यह सवाल पैदा नहीं हो रहा है?, "क्यों सबको प्यार के बदले प्यार नहीं मिलता? ...... क्यों हम सबको अपनी मनचाही हमसफ़र नहीं मिलती? ..... क्यों तकदीर के हाथों हम सबको मजबूर होना पड़ता है?"....... शायद इस सवाल का जवाब हम में से किसी के पास नहीं है। 

अगर हमारे हाथ में कुछ है, तो सिर्फ़ यह कि "वक्त रहते प्यार कि कदर करो क्योंकि शायद

एक दिन तुम्हारे पास वक्त हो पर वो प्यार ना हो!"... 


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