सद्बुद्धि

सद्बुद्धि

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दूर कहीं एक घने जंगल में पक्षियों की आपातकालीन बैठक हो रही थी, छोटे बड़े हर तरह के पक्षी बैठक में उपस्थित थे, अनेक प्रकार के विचार विमर्श हो रहे थे ।

इस बार की बैठक में पक्षियों की संख्या काफी कम थी।

ऐसे तो हर वर्ष ही उनकी संख्या मोबाइल टावर के रेडियेशन, फैक्ट्रियों के जहरीले धुएँ, पराली प्रदूषण, पेड़ों के अंधाधुंध कटाव आदि कारणों की वजह से लगातार घटती ही जा रही थी पर इस बार तो अलग ही नज़ारा था,

माहोल में मातम पसरा था ।

प्रवासी पक्षी गमगीन, उदास मुंह लटकाये बैठे थे..

हर बार की तरह इस बार भी कोसों दूर उड़कर, हजारों मील लम्बा सफ़र तय करके उनके अज़ीज़, उनके भाई-बन्धु अपनी सालों साल पुरानी प्रिय विश्राम स्थली पहुँचे कुछ सुकून भरे पल जीने पर वहां भी उन्हें तोहफें में मौत मिली..

वो झील जिसे वे अपनी भाषा में 'पक्षियों का स्विट्ज़रलैंड' कहते थे, वही उनके प्राणों की प्यासी निकली...

ढेर के ढेर पक्षी झील में उतरे तो सही पर फिर उड़ ना पाए, रह गए सड़े गले शरीर और दूर-दूर तक बिखरे हुए लाखों पंख..

मौत की घाटी बनी झील ने प्यास बुझाने की जगह उनके प्राण ही चूस लिए।

एक पक्षी गमगीन स्वर में बोला- दोस्तों, कई वर्षों पहले मानव सभ्यता का नाश हुआ था परंतु मनुष्य ने अपने साहस के बल पर फिर से जिन्दगी पर जीत हासिल कर ली थी पर अब अगर मानव सभ्यता का नाश हुआ तो उसकी वजह प्रकृति न होकर स्वयं मनुष्य होगा।

विज्ञान पर बढती अति निर्भरता के दुष्परिणाम 'ग्लोबल वार्मिंग' के रूप में सामने आ रहे हैं पर फिर भी इन्सान उससे कुछ नहीं सीख रहा ।

आज दिन प्रतिदिन बढते प्रदूषण की वजह से हम आंखें मूंद रहे हैं पर इससे भी उनकी आंखें नही खुली तो वो दिन दूर नहीं जब शुद्ध हवा, साफ़ पानी, हरियाली, चहकते पंछी किसे विरासत में मिलेंगे इस बात पर 'तीसरा विश्वयुद्ध' होगा !

अब भी अगर इन्सान नहीं समझा तो जो हाल हमारा हो रहा है, वही हाल उनके साथ भी हो सकता है, ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि प्रदान करें।

सुनकर सभी पक्षी एक स्वर में बोल उठे- हे ईश्वर, मानव जाति को सद्बुद्धि प्रदान करें..'सद्बुद्धि' प्रदान करें...।


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