Shubhra Varshney

Inspirational

5.0  

Shubhra Varshney

Inspirational

सच्ची खुशी

सच्ची खुशी

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शाम हो चली थी। पिछले दिनों से लगातार चलती मूसलाधार बारिश ने हमारे दीपावली की शॉपिंग पर अपनी झड़ियों से पहरा लगा दिया था। हम सभी मित्र अपने मनोभावों को दबाए बैठी थी कि कब बरखा रानी शांत हो जाए और हम अपनी अपनी अभिलाषा पूरी कर पाएँ। संध्या की धुँधली चादर डालने के साथ सूर्य की किरणों ने धरती से विदाई ली और साथ ही बरखा रानी ने भी 3 दिन अपनी लीला दिखा कर विदाई ले ली। उत्साह से भरी मैं अपनी सखी को फोन करना ही चाह रही थी कि उसका फोन आ गया।

"अब चलें?"

मैं अपनी उत्कंठा दबाए बड़ी मासूमियत से बोली "रात हो चली है, कल चलते हैं।"

पहले से बारिश से खराब हुए दिन को अब कविता बहस में और खराब नहीं करना चाहती थी।

बस यह बोली, "दस मिनट में इस सेविका की सवारी रानी जी के द्वार होगी।"

कुछ कविता का नाटकीय अंदाज़ और कुछ शॉपिंग की मन को अंदर तक खुश कर गई।

अब हम दोनों अपने अस्त्र-शस्त्र यानी मनी पर्स और शॉपिंग बैग लिए मार्केट में शॉपिंग का युद्ध करने को तैयार थे। मनी पर्स धीरे-धीरे हल्का और शॉपिंग बैग सामान से और मन आनंद से भरा जा रहा था। तभी सामने दिखा एक कॉस्मेटिक की दुकान पर बोर्ड जिस पर औरतों के शब्दकोश का सबसे प्रिय शब्द 'ऑफर' लिखा था। जो इस प्रकार था "ऑफर रु 500 की ख़रीद पर दोनों हाथों की मेंहदी फ्री।"

ऑफर का लाभ उठाने हेतु हमने पुनः शॉपिंग की। तब मेंहदी लगवाने हेतु सेल्स गर्ल ने हमें सामने लगे टेंट की तरफ इशारा किया।

ऑफर का स्वाद हमें नहीं कईयों को भाया था, वह स्थान खचाखच भरा था।


अपना नंबर आने पर हमने अपने सामने पाया एक ऐसी कम उम्र की युवती को जिसे रचने में प्रकृति ने कंजूसी बरती थी। उसका बाया हाथ कोहनी तक था तथा दाया हाथ केवल अंगूठा लिए हुए था चारों उंगलियाँ आधी कटी हुई थी।

"यह कैसे मेंहदी लगा पाएगी ?" कहते हुए कविता ने उससे मेंहदी लगवाने से इनकार कर दिया। उस युवती ने मुझसे मेंहदी लगवाने का आग्रह किया कि वह बहुत सुंदर रचना रखेगी। उसके साथ एक बालक भी था जिसकी अवस्था आठ -दस वर्ष की लग रही थी। उन दोनों को अपनी तरफ व्याकुलता से देखता देख मैं मेंहदी लगवाने को तैयार हो गई। धीरे-धीरे जब उसने मेंहदी लगानी शुरू करी तो मैं दंग रह गई। सिर्फ अंगूठे और उंगलियों के बीच मेंहदी का कोन फसाए बड़े मनोयोग वह रचना चित्रित करने में मगन थी। बीच-बीच में उसका बेटा कभी अपनी माँ की और कभी मेरी पंखे से हवा कर रहा था।

माँ के प्रति उसका प्रेम देख मेरा मन भर आया। मेंहदी लग चुकी थी। बहुत सुंदर तो नहीं पर उसकी बनाई रचना में संपूर्णता झलक रही थी।

मैं सहानुभूति प्रकट करना चाहती थी पर झिझक रही थी क्योंकि किसी की असमर्थता की तरफ इशारा करके मैं उसके स्वाभिमान को चोट नहीं पहुंचाना चाहती थी। ऑफर से अतिरिक्त मैंने उसे जब यह कहते हुए रुपए दिए कि है तुम्हारा इनाम है। यह देख उसका बेटा बहुत खुश हो गया। और उस युवती का चेहरा आनंद से रक्तिम हो गया। उसकी हंसी सच्ची थी। विकट परिस्थितियों के बाद भी उसकी कर्म की लगन से उपजा आत्मविश्वास उसके चेहरे पर आनंद झलका रहा था। उसने कहीं भी अधूरेपन की पंगुता की झाई नहीं थी। माँ बेटे की खुशी मेरी भरपूर शॉपिंग से उपजी खुशी से कहीं ऊपर थी।



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