सच्चा श्राद्ध

सच्चा श्राद्ध

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सुनो जी! अब अंत समय ही आ गया है। मेरा अब लगता नहीं कि मैं बच पाऊंगी।


हॉस्पिटल के बेड पर पड़े पड़े सुरभि, अपने पति अतुल से वो कहने लगी।कोई भी बच्चा नहीं है इस आस में ही लगता है चली जाऊंगी। फोन किया ना आपने! करा तो था पर दोनों व्यस्तता के कारण नहीं आ सकते।ऐसे भी क्या व्यस्त थे कि अपनी मां के अंतिम दर्शन के लिए भी नहीं आ पाऐ। मां की अंतिम इच्छा पूरी कर ले। ना जाने कौन सी कमी रह गई थी उनकी परवरिश में जो बच्चों को मां-बाप की याद तक नहीं आती।वीडियो कॉल से बात करके कहते हैं कि देख तो लिया। जिंदगी ऐसी ही है सुरभि। अगर तुम्हें कुछ हुआ, तो मैं भी बच नहीं पाऊंगा। दोनों बच्चों को हमारी परवाह ही नहीं, तुम्हें याद है सुरभि कैसे पाई पाई जोड़ कर इनके कॉलेज के रूपयो का हमने इंतजाम किया था! अपने खर्चे कम कर के ही इन दोनो को विदेश भेजा था और खुशी से फूले नहीं समा रहे थे, हम लोग यह हमारे बच्चे विदेश में पढ़ रहे हैं।


हाँ जी और जब कोई कह भी देता कि अरे भारत में भी तो हैं तो हम कैसे गर्व से उसकी बात काटते हुए कहते हैं कि वहां की अलग ही बात है पढ़ाई की।अजी आज समझ में आ रहा है कि लोग अपने बच्चों को यहां के संस्कार क्यों देते हैं? कि भारत ही सबसे अच्छा है,?वो उनके आसपास रह सकते हैं उनके दुख-सुख में वह लोग आ सकते हैं। हम दोनों के पास सारे रिश्तेदार मिलकर चले गए। बस हमारे ही बेटे बहू नहीं आ पाए।


सुरभि तुम अपने मन में यह लेकर कभी मत सोचना कि तुमने बच्चों से नहीं आ पाए। तुम बस जल्दी सही हो कर घर चलो फिर दोनो खुशी से रहेगें। मै बार बार चाय नही बनवाऊँगा। ये कहकर अतुल जी की आँखे भर आई। सुरभि जी की भी आँखे भर आई।


रहने दिजिए पता है यहाँ कहकर कल भूल भी जायेगे आप। बस आधा कप कहकह कर बनवा लेते हो। पता नही जा भी पाँऊगी या नही।


ये मत बोलो सुरभि जल्दी चलेगें। मै बनाउंगा इस बार चाय।दोनो रोते रोते मुस्कुरा दिये।


तो वीडियो कॉल से बात करके यह समझ लो कि तुम उनसे मिली।


हां जी मैं समझती हूं। आप अपना ध्यान रखना मुझे लगता है डॉक्टर मुझे नहीं बता रहे पर आपको बता चुके होगें, कि अब मेरा समय बहुत कम है। पुरानी यादों को संजो कर रखे हुए मैं अपने मन में जाऊंगी और सुहागन जाऊंगी, यह सबसे बड़ी बात है। पर इस बात का मुझे भी अफसोस रहेगा कि अपने बच्चों से जी भर के देख भी नहीं पाई। पोते पोती को दिखा देते बस।


सुरभि तुम ऐसी बातें ना करो निराशा वाली। हम दोनों उन लोगों को उनके पास मिलने चलेंगे, अगर वह नहीं आ सकते तो क्या हुआ हम जाएंगे। पर दुख बस यह लगता है कि उन्हें आना चाहिए था। क्या कह सकते हैं आजकल?


तभी छोटा बेटा आ गया और मम्मी कहकर अपना सिर सुरभि के हाथ पर रखा। मम्मी सही हो जाओगी आप, देखो बच्चे निशा सब आये है।


अरे मेरे बच्चो बस और कुछ नही चाहिए सब खुश रहो।


दादी दादी कहकर बच्चे सुरभि के पास आ गये।


अरे बडे हो गये मेरे बच्चे। तू मना कर रहा था आने को अतुल जी ने कहा।


जी पापा पर मैने मना लिया छूट्टी के लिए सिनियर को। निशा सुरभि से बाते करती रही सारी रात सब वही रहे। 


 और बस वो रात आखिरी रात ही सुरभि की थी। सुरभि इस दुनिया से जा चुकी थी।


शोभित नही आया।


फोन किया था पापा भाई नहीं आयेगा।


क्यूँ अंतिम दर्शन नही करना चाहता वो, जो उसके लिए तरसती चली गयी। अतुल जी ने थोड़ा गले पर जोर लगाकर बोला।


नहीं, पापा वह नहीं आ पाए उनको छुट्टी नहीं है और उन्होंने बोला है कि, उन्होंने बोला है कि..?


क्या बोला उसने, तीन साल से नही आया। तू तो साल मे दो बार आता था। उसको कहाँ लगाव हमसे। अतुल जी ने कहा। क्या कह रहा था?


भैय्या कह रहे थे, मां के क्रिया कर्म में तुम चले जाओ, जब पापा का होगा तो मैं चला जाऊंगा।


अतुल जी के जैसे चक्कर आ गया हो। सोच कर और वह चुपचाप सोफे पर बैठ गए सुबक सुबक कर रोने लगे। उसने तो मेरा जीते जी ही श्राद्ध कर दिया। उसके बाद वह आए या ना आए करें या ना करें मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसी औलाद के लिए ही हमने अपनी जी जान एक एक पाई लगाकर विदेश भेजा था इसिलिए क्या ? कि विदेश में वह हमारा श्राद्ध करेगा जीते जी पिता का। उससे कह देना उसकी जरूरत नहीं पड़ेगी मुझे। उसकी जरूरत नहीं, जो अपनी मां के अंतिम दर्शन के लिए भी नहीं आ सका। उसको बाद में आने की भी कोई जरूरत नहीं है।वह वही खुश रहे मैं भी अपने मन को मना लूंगा कि एक ही बेटा था। मेरा भी श्राद्ध कर दिया वही बैठे।


जो बच्चे माता पिता के सुख दुख मे नही रहते उन्हे दिखावटी श्राद्ध की जरूरत नही। समाज को दिखाने का, या दान पुण्य का क्या फायदा जो जिन्दा होते नही पूछने आया। पापा कोई परेशानी तो नही। 

माँ चली गयी कोई दुख नही। 


मेरा पापा ऐसा क्यों कहते हो ? मैं हूं ना! मैं नौकरी छोड़ने की एप्लीकेशन दे आया हूं। मां से मिलते समय ही मुझे ऐसा लगा जैसे मैंने बहुत कुछ खो दिया है। उनके साथ में ज्यादा वक्त बिता सकता था पर मेरी आंखों पर विदेश की चकाचौंध का जो पर्दा पड़ा था। वह अब हट गया है। मां के जाने से, यह कह लीजिए कि मां मेरी आंखें खोल कर चली गई है। आपकी सेवा के लिए, मैं नहीं जाऊंगा पापा, मैं और मेरे बच्चे यहीं रहकर आप की सेवा करेंगे।


बेटा चाहे मरने के बाद श्राद्ध नही करना, बस जीते जी ही आदर कर लो ये ही असली श्राद्ध है। तेरी माँ तेरी बातें सुनकर खुश हो रही होगी जँहा भी होगी।


दोनो गले लगकर बिलख बिलख कर रोने लगे।


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