Anupama Thakur

Inspirational

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Anupama Thakur

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सच्चा दोस्त

सच्चा दोस्त

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प्रथम की बार बार शिकायतें सुन सरोज और अशोक परेशान थे।

आए दिन डायरी में एक नया नोट होता। सरोज जब प्रथम से पूछती तो सफाई में बस इतना कहता, मेरी कोई गलती नहीं थी। सरोज के सब्र का बांध अब टूट रहा था। धीरे-धीरे वह और अशोक उस पर हाथ उठाने लगे थे। प्रथम भी दिन-ब-दिन गुस्सैल होता जा रहा था। और बिना कारण अपने छोटे भाई को मारने लगता अध्यापकों के प्रति भी उसका रवैया नकारात्मक हो गया था अध्यापक पढ़ाने लगते तो वह बीच-बीच में टोकता, हंसता या तो कोई सवाल पूछता जो अध्यापकों को प्राय: बेतुके लगते।

12वर्ष का प्रथम यह समझ नहीं पा रहा था कि सभी उसके साथ ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं? माता अध्यापिका तथा पिता शिक्षण अधिकारी थे। फिर भी उसे कोई सहायता नहीं मिल रही थी। सरोज निराश रहने लगी। उसे अपनी हस्ती खेलती गृहस्थी टूटती नजर आने लगी। बार-बार प्रधानाध्यापक के द्वारा स्कूल में बुलाने से अशोक और सरोज निराश रहने लगे। प्रथम को लेकर आपस वो आपस में ही लड़ने लगते। एक दूसरे पर दोषारोपण करते। अशोक कहता, तुम्ही ने उसे सिर पर चढ़ा रखा है, यह सब तुम्हारे ही लाड़ प्यार का नतीजा है। सरोज भी चुप नहीं बैठती, वह कहती प्रथम की जिम्मेदारी क्या मुझ अकेली की है?

जाने अनजाने में उनकी आवाज इतनी ऊंची हो जाती कि दोनों भूल जाते कि घर में उनका छोटा बेटा आर्यन भी है। आर्यन मां -पिता को लड़ते देख सहम जाता और रोने लगता। तब सरोज को ही पीछे हटना पड़ता। सरोज ने सोच लिया कि वह प्रथम को किसी काउंसलर को बताएगी उसे 3 दिन बाद का अपॉइंटमेंट मिला। प्रथम को लेकर उसे मुम्बई जाना था। अत: आर्यन के साथ किसी का रहना आवश्यकता था। सरोज ने अपनी मां को बुलवा लिया। नानी से मिलते ही प्रथम के चेहरे पर खुशी लौट आए स्कूल से आते ही नानी उसकी मनपसंद चीज बना कर देती और किचन में खड़े -खड़े प्रथम स्कूल की सारी बातें नानी को बताता। एक ही दिन में जैसे घर की काया पलट गई हो नानी प्रथम के साथ छोटी बच्ची बन जाती उसके साथ हंसती खेलती उससे कहानियां सुनाती प्रथम भी दिल खोलकर सारे किस्से नानी को सुनाता सरोज को धीरे- धीरे समझ में आने लगा कि प्रथम को अपने ही घर में कोई दोस्त नहीं मिला। अध्यापक अब उसकी प्रशंसा करने लगे थे। सरोज ने काउंसलर का अपॉइंटमेंट रद्द कर दिया प्रथम को उसका सच्चा दोस्त जो मिल गया था।


माता-पिता से बढ़कर भी इस दुनिया में एक ऐसा रिश्ता है, जो हमें सदैव सुनने, जानने, पहचानने तथा आगे बढ़ने की शिक्षा व आर्शीवाद देते हैं, वो रिश्ता है दादा-दादी का।


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