सब्ज़ी वाली
सब्ज़ी वाली
अवंतिका बड़े दिनों बाद अपने शहर गोरखपुर आयी थी। दूसरे दिन अपने जेठजी की बहू के साथ बाजार टहलने आ गयी। बाजार करने के बाद दोनो सब्ज़ी लेने चल पड़ी। बहुत मन था, चलो आज पालक, बथुआ ले लिया जाए। जैसे ही साग वाले से भाव पूछने लगी, वो अवंतिका के पैर छूने लगी," पांव लागी मलकिन, कब आईलु ?"
वो ध्यान से देखने लगी ये कौन महिला है, जो मुझे जानती है, बहू भी आश्चर्य में पड़ गयी।
" अरे हम परभा बाटी, आपके घरे 10 साल बर्तन भांडा साफ करली। साहब हमरे आदमी के रिकशा दिलवाई रहल, जब आप यहां से गइली, उ रिक्शावा से बढ़िया आमदनी होत बा।"
ध्यान आया, प्रभा, उसके यहां काम करती थी, और उसकी कर्तव्यपरायणता को देखकर उस शहर को छोड़ते समय अवंतिका ने ही अपने श्रीमान जी से उसके पति को एक रिक्शा दिलवाने कहा था।
"अब हम कहीं काम नाही करती, साग सब्ज़ी बेचकर सब बढ़िया चलत है।"
अवंतिका खुश हो गयी, जल्दी से सामने ठेले से गन्ने का जूस मंगाया और उन सबको पिलवाया। साग सब्ज़ी लेकर गर्व से घर वापस आयी।