अधिकार
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रजनी का फ़ोन आया था, माँ नही रही। रवीना तुरंत उसके घर के लिए चल दी, रजनी की मम्मी विमला उसकी सबसे प्रिय सहेली थी। बड़े शहर में कहने को एक ही शहर होता है पर दूरी कई किलोमीटर की थी।
कैब में जैसे आगे बढ़ रही थी, अतीत उसे पीछे धकेल रहा था। कॉलेज की पढ़ाई भी एक साथ हुई पर विमला की शादी तय होने के कारण वह पढ़ाई पूरी नही कर पाई। उसके घर मे सब बहुत खुश थे, कम उम्र में ही लड़का अच्छा मिल गया। जिम्मेदारी पूरी हो गयी।
शादी के एक वर्ष बाद ही गोदी में रजनी आ गयी। और जीजू की दूरी घर से और उससे बढ़ती ही गयी। रात में कई बार चेहरा दिख जाता, पर दिन तो बाहर ही बीतता। कुछ ही दिनों में जग जाहिर हो गया, जीजू प्रोफेसर साहब एक स्टूडेंट से ही दिल लगा बैठे। घर मे विमला के सास ससुर ने भी बहुत समझाया, पर उनका इश्क का भूत नही उतरा और कुछ ही दिनों में वह उसके साथ दूसरे मोहल्ले में रहने लगे।
सास ससुर ने हमेशा बहू का साथ दिया और तो और संपत्ति भी उसी के नाम कर दी, वहीं पर उसने भी अपने दिल से प्रेम नामक चिड़िया का क्रिया कर्म कर दिया, सारे सुहाग चिन्ह उतार कर एक बक्से में काले कपड़े में बांधकर रख दिये। सिलाई में बहुत एक्सपर्ट थी, एक बुटीक खोल दिया जिससे उसकी दिन दूनी रात चौगुनी आमदनी होने लगी। बेटी को इंजीनियर बनाया, बेटी एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब में लग गयी।
अचानक एक महीने के अंदर ही सास ससुर स्वर्गवासी हुए, तब प्रोफेसर साहब एक घण्टे को फ़र्ज़ निभाने आये थे।
अब अकेले ही दोनो माँ, बेटी रहती थी, कई बार बेटी की चिंता करती थी, कैसे इसकी शादी होगी, रिश्ता कैसे मिलेगा।
और आज दिल का दौरा पड़ने से वही विमला की इहलीला समाप्त हो गयी।
तभी कार रुकी और रवीना घर के अंदर गयी। गले लगकर रो पड़ी, "मौसी, माँ चली गयी।"
सब तैयारी चल रही थी, उसी समय प्रोफेसर आये। गली मोहल्ले की औरतें विमला को नहला कर सुहाग की वस्तुयों की तैयारी ही कर रही थी, कि बेटी रजनी की आवाज़ में दावानल गूंजा, "नही, मेरी माँ जैसे सादगी से रहती थी, वैसे ही जायेगीं, कोई सुहाग चिन्ह जब उन्होंने जीते जी नही उपयोग किया तो इस समय क्यों, कोई दिखावा मंजूर नही। और मौसी ये प्रोफेसर साहब की अब क्या जरूरत है, सब कुछ और मुखाग्नि भी देने का साहस और अधिकार मुझे ही है, इनसे कहो यहां से जाएं।"
और सिर झुकाकर प्रोफेसर साहब बाहर की ओर चले गए।