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Bhagwati Saxena Gaur

Inspirational

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Bhagwati Saxena Gaur

Inspirational

जाको राखे साइयाँ

जाको राखे साइयाँ

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वैसे तो मेरे परिवार की प्रत्येक जनरेशन में, और आज भी भारतीय सेना में बहुत उच्च श्रेणी में सदस्य हैं। पर वहां की हर गतिविधि को सार्वजनिक करने की मनाही होती है।

सिर्फ एक, मेरे बाबूजी(ससुर जी) का संस्मरण लिखना चाहूंगी।

जाको राखे साइयां

 ये वाकया 1962 के भारत चीन युद्ध के समय का था, मैं और मेजर शैतान सिंह एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे।

"लाल साहब, आप भी क्यों नही हमारे साथ चलते हैं, आप दो लोग ऐसे पहाड़ में टेंट में अकेले कैसे बैठेंगे, माइनस तीस तक तापमान जा सकता है।" ये मेजर शैतान सिंह ने कहा

"सर, जैसा आप कहें।"

मैं आर्मी के मेडिकल कॉर्प में था, मेडिकल कोर हमेशा युद्ध क्षेत्र से थोड़ा पीछे रहती है, पोस्टिंग चिसुल में थी। मेजर शैतान सिंह अपने यूनिट के 120 सैनिकों के साथ युद्ध मे आगे चोटी में जाने के पहले उनके पास रुके थे तभी उन्होंने अपने साथ चलने कहा था। तभी एकाएक खबर आयी, ऊपर च

ोटी पर एक जवान घायल हुआ है, उसे मेडिकल ऐड के लिए नीचे ला रहे हैं। इस कारण से मुझे वहीं रुकना पड़ा।

उस युद्ध में मेजर शैतान सिंह ने अपने साहस और पराक्रम के चलते 1300 चीनी सैनिकों को अकेले ही मौत के घाट उतार दिया था |

मेजर सैतान सिंह ने 1962 के युद्ध में 120 भारतीय सिपाहियों की टुकड़ी के साथ अपने से कई गुना ज्यादा सिपाहियों का सामना किया, जबकि उस समय सेना के पास न ही ज्यादा हथियार थे न ही ऑटोमैटिक बंदूक थी, हड्डी गलाती ठंड में कपड़े भी सही नही थे।

आगे जाने पर मेजर शैतान सिंह और 120 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। 

और मैं आज भी उस मंजर को भूल नही पाया, और कई दिन सोचता रहा, ईश्वर की लीला भी अजीब है, अंत समय मे मुझे जाने से रोका, वरना !!

पर मेरे नैनो में अश्रु थे, मेरे दोस्त मेजर शैतान सिंह के लिए ...

मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत भारत सरकार ने परमवीर चक्र से नवाजा।  


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