तलाक
तलाक
कोर्ट से जानकी और आस्तिक अपने मन पर, कई मनो का बोझ लेकर बाहर आ गए। दोनो के मन मे द्वंद चल रहा था, शब्दो की सुनामी चल रही थी, पर दोनो निशब्द थे। आज आस्था और आस्तिक में तलाक हो चुका था।
ख्याल अतीत की ओर बढ़ चले, जानकी ने बड़े ही मन्नतों से बेटा पाया था, आज उस बेटे की शादी थी, घर मे चहल पहल थी। बेटे ने अपने पसंद की इंजीनियर लड़की से शादी करने की इच्छा जाहिर की। बड़े भारी मन से जानकी को उसकी बात माननी पड़ी क्योंकि वो अपनी सहेली की बेटी को बहू बनाना चाहती थी। आस्था अपने मातापिता की इकलौती बेटी थी। शादी तो हो गयी, हर तरह से होशियार बहू थी वो, करियर में सफल, कुकिंग में चैंपियन, फिर भी जानकी कभी उसे स्वीकार नही कर पाई। पग पग पर उसने उसे सताना शुरू कर दिया, बेटे बहू के बीच खाई पैदा करने में कोई भी कसर नही छोड़ी, और आज जब आस्था बर्दाश्त नही कर पाई, मजबूरन उसे तलाक देना पड़ा। आस्तिक सब समझता था, पर कुछ कर नहीं सका, इकलौता बेटा था, माँ को उसे ही सम्हालना था।
इसी हालात में एक दिन जानकी को अटैक पड़ा, और वो अपाहिज बनकर बिस्तर की हो गयी। कहीं पड़ोस से आस्था को खबर हुई, तुरंत देखने पहुँची। कानूनी तौर पर तो कोई रिश्ता नही था, पर मन इतनी जल्दी तलाक नही देता। उसने पूरे दिन के लिए आया का इंतज़ाम किया और हर दूसरे दिन हाल लेने आने लगी। आस्तिक एक दोस्त की तरह मानता था और जानकी बोल नही पाती थी, चुपचाप आंखों से अश्रुओं से पश्चाताप की नदियां बहाती थी। एक दिन सुबह मिलने आयी तो आया ने बताया एक कागज में कुछ लिखा है, लीजिये। और जब उनके कमरे में सब गए पता चला , उनका स्वर्गवास हो चुका है...कागज़ में जो लिखा होगा वो आस्था जानती थी...। फिर से आस्था और आस्तिक एक हो गए।