Swapnil Choudhary

Inspirational inspirational

4.3  

Swapnil Choudhary

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सबसे अनमोल तोहफा

सबसे अनमोल तोहफा

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रेलवे स्टेशन पर साइड मे लेटी हुई महिला दर्द से कराह रही थी । मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि उसे कोई भारी पीड़ा हो रही है । अन्य यात्रियों की भॉंति मैनें भी उसे नजर अंदाज कर दिया । मेरे साथ में मेरा आठ वर्ष का बेटा अंष भी था । वह उस बुढि़या के दर्द को दिल से महसूस करके उसकी ओर टकटकी लगाकर देख रहा था । 

”पापा ये बुढि़या क्यों चिल्ला रही है ? इसे क्या परेसानी है“ अंष ने मुझसे पूछा और तब मैने जवाब दिया -

”बेटा इसे कही दर्द हो रहा होगा या फिर इसे कोई अन्य परेेशनी होगी।“पापा गाड़ी तो एक घंटा लेट है" अंष फिर बोला और मैने हॉं मे जवाब दिया । “

यह तो बहुत कमजोर हो गई है । बेचारी दर्द से कितना कराह रही है । पापा क्यों न इसे हम दवाई दिला दें ।" अंष ने जब मुझये कहा तो मैने उसे समझाते हुए कहा, ”बेटा हम इसे दवाई क्यों दिलायें ? हम तो इसे जानते तक नही है और देखो कितनी गन्दी है । लगता है कई दिनो से नहाई भी नही है, कोई देखेगा तो हमारा मजाक बनायेगा ।“ पापा आप ही तो कहते थें कि गरीबों और असहायों की जो मदद करता है तो भगवान उस पर सदा मेहरबान रहते हैं। इसलिए हमेेेशा दूसरों की सहायता के लिए अग्रसर रहना चाहिए और आज आप कह रहे है कि कोई देखेगा तो क्या कहेगा, हमारा मजाक बनायेगा मेरी समझ से दूसरों की सहायता करने पर हमारा मजाक कोई नही बनायेगा । अगर पापा कोई बनाता है तो बनानें दो । हमें अपने कार्य पर ध्यान देना चाहिए । ऐसा आप और मॉं दोनो लोग कहते थे। परन्तु आज आप.... “ अंष ने मुझे उल्टा समझाते हुए कहा तब मैने फिर उसे समझाकर बताया कि ”बेटा वह नाटक कर रही है इसे कहीं दर्द नही हो रहा है । मै ऐसी औरतो को भलि-भॉंति जानता हूॅ।", “नही पापा यह नाटक नही कर रही है मै जाकर देखता हूॅ।" इतना कहकर अंष दौड़कर बुढि़या के पास जाकर फिर बोला," पापा जल्दी आओं देखों इन्हें कितनी तेज बुखार है" मैनें जानबूझ कर उसके बुलाने की आवाज को अनसुना कर दिया । परन्तु अंष के बार-बार बुलाने पर मै उसके पास गया और देखा कि बुढि़या काफी गन्दी है और बुखार की तपन से कराह रही है । 

"पापा चलों इन्हे दवाई दिला कर आते है।" अंष ने फिर मुझसे एक उम्मीद भरी नजर से देखकर कहा । मैने भी आवेश मे आकर कह दिया चलों चलते हैं"

"मेरा इतना कहने पर अंष के चेहरे पर खुशी की झलक दिखाई देने लगी थी जो कि कुछ क्षण पहले अदृष्य थी । यह देख मेरे दिल मे उस असहाय महिला की मदद करने के लिए दिल मे श्रद्वा और प्रेम-भाव जागृत होने लगा था ।

 पास के दवाघर से हमने उस बुढि़या को दवा दिलाई । कुछ देर बाद उस बुढि़या को जब कुछ राहत मिली तब बुढि़या हमें दुवाओं की पोटली देती जा रही थी  "भगवान तुम्हारा भला करें, तुम दोनों सदा सुखी रहो, तुम्हारा घर सदा धन-धान्य से भरा रहें , भगवान तुम्हारे जैसे बच्चे हर मॉ को दे ।" 

उस बूढ़ी औरत के इन शब्दो ने मुझ पर बाणों का कार्य किया और मेरे अन्दर बैठे असुर को मार भगाया । उसकी मदद करने का मुझे अंष व खुद पर फ़ख्र महसूस हो रहा था। साथ ही असहायों की मदद करने की भावना मेरे अन्दर जागृत हो चुकी थी ।

 जब हम रेलवे स्टेेशन पर पहुॅचे तो वहॉ पर उपस्थित यात्रियों ने भी हम दोनों को दुवाओं की गठरी देना शुरू कर दिया । "आप दोनों उस महिला के लिए फरिशता हो, आपके बेटे की तारीफ जितनी की जाये उतनी कम है, ये आपके ही संस्कार है जो आपके बेटे द्वारा उस असहाय महिला व यहॉ पर उपस्थित हर यात्री को प्राप्त हुए हैं। भगवान आपको हमेषा खुश रखे । “ ये वाक्य थे वहॉ पर उपस्थित यात्रियों के, कुछ यात्री कह रहे थे कि हमे इस बालक से सीख लेनी चाहिए । यह बालक समाज के लिए भगवान की एक महत्वपूर्ण देन है । यह सब सुनकर मेरा दिल खुशी से गदगद हो रहा था। 

 आज मै बहुत खुुश था कि उपर वाले ने मुझे मेरे बेटे द्वारा व बेटे के रूप् मे कितना अनमोल तोहफा दिया है जिसकी मैने कभी कल्पना भी नही की थी । यह सोचते -सोचते मैने अपने बेटे को सीने से लगा लिया और कहा ”थैंक्स बेटा “ इतना सुनकर अंष मेरे सीने से चिपक जाता है और ”आई लव यू पापा“ ”आई लव यू बेटा “ मैनें भी पलट कर जवाब दिया ।


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