"वक़्त "
"वक़्त "
रात काफी गुजर चुकी थी। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ था। गांव के समस्त प्राणी सोए हुए थे परंतु रामलाल अभी जाग रहा था। शायद किसी गहरी सोच में डूबा हुआ है हां ऐसा ही है रामलाल अपने गुजरे वक्त को याद कर रहा है कि कैसे उसने एक एक कोढ़ी जोड़कर यह संपत्ति इकट्ठा की और साथ ही बच्चों को भी पढ़ाया फिर शादी की और आज वही बच्चे उसकी ओर ध्यान नहीं देते तुम सबसे अच्छी तो उसकी बेटी है जिसे वह जिंदगी भर पराया समझता रहा और उसकी हर आजादी को छीनता रहा जो कि उसका भी हक था रामलाल के दो बेटे अर्जुन और आशीष एक बेटी शीतल है रामलाल ने अपने दोनों बेटों को खूब पढ़ाया जिसके फलस्वरूप अर्जुन (जज) न्यायाधीश बन गया और आशीष एक वकील रामलाल को अपने दोनों बेटों पर गर्व था परंतु रामलाल ने शीतल को घर पर काम में व्यस्त रखा पढ़ाई से उसे कोसों दूर ही रखा, शीतल चाहती थी कि अभी स्कूल जाए परंतु रामलाल ने उसकी एक न सुनी और वक्त के साथ शादी कर दी और फिर दोनों बेटों की शादी हो जाती है परंतु शादी के कुछ ही दिन बाद अर्जुन में शहर जाने की तैयारी कर ली और जाते वक्त रामलाल को बताया रामलाल को जानकर बहुत दुख हुआ। अर्जुन को रोका पर वो ना रुका परंतु आशीष है यह सोच कर खुश था ज्यों-ज्यों रामलाल की उम्र बढ़ती गई त्यों त्यों बेटे उससे दूरियां बढ़ाने लगे आज वह वक्त आ गया है कि रामलाल के पास कोई बैठने या घर के विषय में कोई सलाह तक नहीं लेता था। एक वक़्त वो था घर में उससे पूछे बिना कोई कार्य नहीं होता था परन्तु बेटों से कितनी भी दूरी क्यों ना हो लेकिन शीतल जब भी आती उसके पास घंटों घंटा बैठती और अपने घर की सारी बातें करती है इससे उसे बहुत खुशी मिलती है, रामलाल बहुत दुखी होता जब उसे पता चलता कि अर्जुन गांव की बेटी की शादी में गया था उसके पास एक मिनट को भी नहीं आया। उसका अर्जुन आज आएगा कल आएगा उससे मिलने आया तो संदेश भिजवा कर चला गया पिताजी मुझे जरूरी काम से जाना है, आपको मिलने फिर आऊंगा। और और उसी ग़म में रामलाल अभी तक जाग रहा है। और मन ही मन सोच रहा है कि जिन बेटों के लिए उसने दिन रात मेहनत की उन बेटों के पास उसके लिए वक्त नहीं है इनसे तो अच्छी उसकी बेटी है जिसे वह जिंदगी भर घृणा की दृष्टि से देखता रहा परंतु जब भी वह आती तो कम से कम उसका हाल-चाल तो लेती है अपने घर ले जाना चाहती है और यह बेटे एक न्यायकरता तो दूसरा न्याय दिलाने वाला खुद के ही रंग में डूबे रहते हैं अर्जुन शहर में रहता है और आशीष घर में रहकर भी उसके पास एक मिनट नहीं बैठता, शाम को आता है तो सीधा कमरे में चला जाता है उससे सही तो उसकी पत्नी है। जो कम से कम खाने-पीने को पूछ लेती है। वरना हमें कौन पूछता है। यही सोचते सोचते रामलाल को नींद आने लगती है। वह सो जाता है।