"रंग जिन्दगी के"
"रंग जिन्दगी के"
"ऐ आईना बता न मुझे मैं कैसी लग रही हूं कुछ तो बता यश मुझे पसन्द करेगा या नहीं, सुना है यश बड़ा ही सुन्दर, गुणवान पुलिस अफसर है और उसकी वीरता व ईमानदारी को देख सारे चोर उचक्के उसका क्षेत्र छोड़कर भाग जाते हैं ।"
निशा मन ही मन आईने के सामने बैठकर खुद से बातें कर रही है कि माँ की आवाज आती है," अरे निशा जल्दी तैयार हो लड़के वाले आते ही होगे ।"
" जी माँ तैयार हो रही हूं " निशा जवाब देती है और फिर वह तरह-तरह के ख्यालों में डूब गई ।
निशा के पिता विजय प्रताप सिंह दीवान थे परन्तु चार वर्ष पूर्व वह सेवा निवृत्त हो गये थे निशा की शादी के लिए उन्होंने भानू प्रताप सिंह के बेटे यश को देख रखा था जो कि आज निशा को देखने आ रहे है। निशा के घर के सभी सदस्य मेहमानों की व्यवस्था करने मे व्यस्त है निशा की माँ तरह-तरह के पकवान बना रही है। तभी दरवाजे की घण्टी बजती है निशा के पिता झपटकर दरवाजा खोलते है "नमस्कार भाई साहब, नमस्कार भाभी जी आइये" यह शब्द कहकर निशा के पिता यश के माता-पिता का स्वागत करते है।
"वाह ! साक्षात लक्ष्मी का स्वरूप है आपकी बेटी यह हमारे घर को रौशन कर देगी भाई हमें तो आपकी बेटी पसन्द है" यश के पिता भानू प्रताप सिंह जी कहते है ।"
" कितने तक पढ़ाई की है आपने" यश की माँ निशा से पूछती है ।" जी स्नातक की लास्ट ईयर है। निशा से उत्तर मिलता है ।
" लाखों में एक है। हमारी निशा, गाने-बजाने, नाचने और पढ़ने-लिखने में बहुत अच्छी है। और खाना तो ऐसा बनाती है कि खाने वाला प्लेट तक खा जायें।" निशा की माँ निशा की तारीफ करते हुए कहती है।" जी प्लेट तक ........यश बोलता है ।"
"अरे नहीं बेटा इनका मतलब है खाना अच्छा बनाती है" यश के पिता बोलते है।
"भाई हमें तो आपकी बेटी पसन्द है । अब कुछ लेन-देन की बाते भी हो जाये तो और भी अच्छा होगा" यश के पिता भानू प्रताप सिंह निशा के पिता, विजय प्रताप सिंह से कहते है।
"निशा ट्रे ले जाओ" विजय प्रताप सिंह निसा से नास्ते की ट्रे को ले जाने को कहते है।
"जी बताइये भाई साहब ! हमारा कहा तक रिश्ता हो सकता है" निशा के पिता भानूप्रताप सिंह से पूछते है ।
"देखिये विजय प्रताप सिंह जी, हमने यश को दरोगा बनाने में काफी खर्च किया है । इसलिए उसी हिसाब से शादी होनी चाहिए।"
भानू प्रताप सिंह जी जवाब देते है । "हाँ फिर भी भाई साहब बात खोल दे तो अच्छा रहेगा । हमें इन्तजाम उसी हिसाब से करना होगा ।" निशा के पिता भानूप्रताप सिंह से कहते है । तो यश के पिता जवाब देते है-" देखो भाई यश के लिए रिश्तों की कमी नहीं है और हमने किसी लड़की वाले से कुछ माँगा नहीं है ।"
"अरे लड़की वाले तो खुद ही कहते है बीस लाख खर्च कर दूंगा या पच्चीस कर दूंगा परन्तु हमें आपकी बेटी पसन्द है इसलिए हम ये रिश्ता कम में ही कर लेंगे । ऐसा करो आप अठारह लाख कर देना।" वैसे हमने कल ही विधायक जी की बेटी का रिश्ता खारिज कर दिया है वह तो कह रहे थे कि आप बस हाँ कीजिए यश को मैं नोटों से तौल दूंगा परन्तु मैंने फिर भी मना कर दिया क्योंकि हमें ऐसे घमण्डी बिल्कुल पसन्द नहीं है जो पैसे के रुआब पे शादी करना चाहते हो ।" यश की माँ बीच में बोल पड़ती है निशा के पिता विजय प्रताप सिंह के पास इतने पैसे की व्यवस्था न थी। वह सोच में डूब गये कि इतने पैसे की व्यवस्था कहाँ से करेंगे तभी यश भानूप्रताप सिंह से कहता है, ”पापा यह क्या कह रहे हो। जब निशा हमें पसन्द है तो लेन देन की क्या बात है। इनके पास जो सुविधा होगी उस हिसाब से इन्हें खर्च करने दीजिए।"
" तू चुप रहे कम्बखत ! मुझे बात करने दे । तुझे जो बात करना है वो घर चलकर मुझसे करना यश के पिता गुस्से से परन्तु धीमी आवाज में यश से कहते है। यश चुप हो जाता है ।
"देखिए भाई साहब हम इतना तो खर्च नहीं कर पायेंगे परन्तु फिर भी मैं सोचकर शाम तक बता दूंगा।“ निशा के पिता भानु प्रताप सिंह से कहते है।"
"निशा हमारी इकलौती बेटी है । जो कुछ है सब इसी का तो है।" निशा की माँ बताती है ।
”हॉ वो तो सब ठीक है बहन जी फिर भी सोच के बताना दरोगा है हमारा बेटा“ यश की माँ कहती है निशा की माँ और पिता जी सोच समझकर जब सोच-विचार करके सारे पैसों का आकलन करते है तो दस लाख तक उनके पास बन पाते है । विजय प्रताप सिंह सोचते है कि गाँव की जमीन बेच दे परन्तु जमीन बेचने से आगे उन्हें समस्या आयेगी क्योंकि बेटी तो पराया धन होती है वो तो चली जायेगी बुढ़ापे पर उनके लिए जमीन ही उनका एक मात्र सहारा है उसे बेचकर वह अपाहिज हो जायेंगे इसलिए उन्होंने अपनी पूरी ताकत भानु प्रताप सिंह को बता दी । यह सुनकर भानु प्रताप गुस्सा करके निशा के पिता से कहते है "क्या सिर्फ दस लाख! अरे हमने तुम्हारी बेटी की जरा तारीफ क्या कर दी आप तो मुफ्त मे ही शादी करने की सोचने लगे ।"
"भाई साहब मेरी जितनी ताकत थी बता दी। अब फैसला आप पर है क्या करना है।" विजय प्रताप सिंह ने यश के पिता से कहा तो यश के पिता ने जवाब दिया, "फैसला क्या करना । इतने में शादी नहीं होगी । इतना कहकर फोन काट दिया अगले दिन सुबह” यश चलो विधायक जी के यहॉं उनका फोन फिर आया था उनकी बेटी देखने और आज बात भी पक्की करके आयेंगे बहुत पैसा मिलेगा ।
" नहीं पापा मैं निशा से ही शादी करूंगा। मुझे पैसा नहीं चाहिए। पैसा तो मैं खुद कमा रहा हूँ।“ यश ने जवाब दिया।"
" पागल हो गया है तू अपने पापा से जबान लड़ा रहा है।“ यश की माँ बोली।
”नहीं माँ आप दोनों को मैं भगवान से भी ज्यादा मानता हूँ। परन्तु माँ यह प्रार्थना मेरी स्वीकार कर लो। निशा को अपनी बहू बना लो प्लीज माँ। यश अपनी माँ से विनती करता है।
”कभी नहीं ! ऐसा कभी नहीं होगा।“ यश के पिता बोले । तो यश ने जवाब दिया ”तो ठीक है मैं कभी शादी नहीं करूँगा।“ इतना कहकर वह वहॉं से चला जाता है और निशा के कालेज के गेट पर उसके आने का इंतजार करने लगता है। कुछ देर बाद वह निशा को आते देखता तो वह उसके पास पहुंच कर बोलता है, ”निशा जी ! मैं तुमसे प्यार करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूं। क्या आप मुझसे शादी करोगी।“ निशा को यश पसन्द था। परन्तु वह कुछ न बोलकर चल दी तब यश ने फिर निशा से कहा ”आपने जवाब नहीं दिया।" मेरे पापा इतना खर्च नहीं कर सकते। इसलिए आप यहॉं से जाइये “निशा ने ज्यों ही जवाब दिया कि यश फिर बोला, ”मैं तुमसे बगैर पैसे के शादी करूँगा। बस तुम हाँ करो।“ तो मेरे पापा से बात करो उनकी हाँ तो मेरी हाँ होगी।“निशा ने जवाब दिया तो यश "ओ के" कहकर निशा के घर पहुंच जाता है। यश के बार-बार कहने पर वह राजी हो जाते है और अगले ही दिन निशा और यश की शादी भगवान शिव के मन्दिर में होने वाली है कि यश अपने पिता को एक हवलदार द्वारा सूचना दिला देता है। जब यश के पिता वहां पहुँचते है तब तक शादी हो जाती है।
”बहुत अच्छा किया तुमने यश अपने बाप की इज्जत मिट्टी में मिला दी।“ परन्तु आज से तुम मेरे साथ मेरे घर में नहीं रह सकते“ यश के पिता ने यश से कहा।
”ठीक है पापा परन्तु मैं भी दरोगा हूं। अपनी कमाई से फूटी कौड़ी आपको नहीं दूंगा “ यश ने भी उलटा जवाब दिया तो यश की माँ बोली ”अरे बेटा यह क्या कह रहे हो। तुम्हारी खुशी हमारी खुशी है। मैं भी देखती हूं। यह कैसे नहीं रहने देंगे।“
”लेकिन सुमित्रा “ यश के पिता यश की माँ से बोले कि सुमित्रा फिर बोली ”लेकिन-लेकिन कुछ नहीं, इतनी सुन्दर, सुशील बहु है । हमारी और हमारे बेटे की जो भी खुशी है वो हमारी खुशी है“ इस तरह से यश की माँ के समझाने पर भानू प्रताप सिंह मान जाते है और चाहकर भी कुछ नहीं कह पाते है। क्योंकि हाथ-पॉव थकने पर यश और उसकी पत्नी ही उनका सहारा थे। इसलिए वह चुपचाप यश और निशा को लेकर चले आते है।