सबक
सबक
आज स्वाति ने फोन कर उसके नए घर के उद्घाटन के अवसर पर मुझे आमंत्रित किया ।
किसी कारणवश मैं उस दिन जा न सकी अतः 3~4 दिन बाद चली गई।
चूँकि मुझे उसके नए घर का पता अच्छे से याद नहीं था अतः मैं उसके सास ससुर के घर चली गई। जिनका घर स्वाति के नए घर के केम्पस में ही था और वैसे भी मैं उसके सास ससुर से भली
भाँति परिचित भी थी । वहाँ पहुँचकर जब मैंने उसे फोन किया तो वह कहने लगी अरे तुम वहाँ क्यों चली गई ? फिर मुझे अपना नया पता देते हुए कहने लगी, आ जाओ। तब मैंने उसे कहा अगर तुम ही यहाँ आकर मुझे ले जाती तो अच्छा होता,थोड़ी हिचक के बाद वह आने के लिए मान गई। उसकी सास कहीं दूसरे शहर गई हुई थी।और उसके बूढ़े ससुर अकेले घर पर ही थे। घर में प्रवेश करते ही वह अपने ससुर से पूछने लगी।
आपने मुझे फोन क्यों नहीं किया? दो दिन से आप कहाँ खाना खा रहे हैं? उत्तर मिला होटल से ऑर्डर किया था ।
आश्चर्य के साथ साथ। दुख भी हुआ उसे अपना मित्र कहते हुए जो अपने पिता समान ससुर से ऐसा सवाल कर रही है। जिसे खुद या तो उन्हें अपने घर सम्मान के साथ लेकर जाना चाहिए था या टिफिन लाकर खाना खिलाना चाहिए था वह कह रही है फोन क्यों नहीं किया? तभी मुझे उसे सबक सिखाने की इच्छा हुई ।
उसे मुझसे कुछ जरूरी सामान चाहिए था जो कि मैं लेकर आई थी। किंतु मैंने उसे भूल गई कहकर टाल दिया और अगली बार जब आऊंगी तब दे दूँगी कह दिया ।दूसरे। दिन उसका फोन आया मैंने उठाया नहीं अगले दिन फिर फोन आया इस बार मैंने उठाया,उसने कहा मैं खुद ही आकर ले लेती हूँ तब मैंने उसे उसकी करनी का एहसास कराते हुए कहा जब तुम्हें जरूरत होती है तो बार बार फोन करती हो।उस समय जब तुम्हारे ससुर को तुम्हारी जरूरत थी तो तुमने फोन करने की बजाय उनसे कहा आपने फोन क्यों नहीं किया ।
उसमें ग्लानि भाव स्पष्ट हो चुका था । तब मैंने उसे कहा सामान तुम्हारे ससुर के घर पर ही रखकर आई थी जाकर ले लो।और हो सके तो उनसे माफी माँग लेना।।