Padma Agrawal

Inspirational

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Padma Agrawal

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सब ठीक तो है

सब ठीक तो है

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सब ठीक तो है .....

ट्रि. ट्रिं. ट्रि. ...

‘’हेलो मां,

‘’तुम कैसी हो .... ‘’

‘’सब ठीक तो है ...’’ कहते कहते उसका गला रुंध गया ... उसने फोन उन्मुक्त को पकड़ा दिया था .

‘’मॉम थोड़ी देर में बात करता हूँ .....’’ कहते हुए फोन कट कर दिया था .

डॉ महिमा के केबिन से बाहर निकलते ही ईशानी उन्मुक्त से उदास स्वर में बोली थी , ‘’बीच पर चलिये .’

ईशानी के चेहरे पर गहरी उदासी की पर्त छाई हुई थी ... वह समुद्र की आती जाती लहरों पर निगाहें जमा कर बैठ गई थी ...उसे ऐसा लग रहा था कि ये लहरें अपने अस्तित्व के लिये लगातार संघर्ष कर रही हैं ...

आज उसका मनोमस्तिष्क भी तो अपने अंश के वजूद के लिये निरंतर संघर्षरत ही तो है ..... ये लहरें जो हमेशा उसे आगे बढने की प्रेरणा या संदेश दिया करतीं थीं आज वह उसकी निराशा को नहीं दूर कर पा रही हैं .

सुबह डॉ. महिमा के द्वारा कहे गये शब्दों ने उसकी हंसती खेलती जीवन धारा को असमंजस्य और पशोपेश की भंवरजाल में उलझा कर रख दिया है ...

ईशानी, मैं तुम्हारी डॉक्टर हूँ .... मेरी राय से तुम्हें इस बच्चे का एबॉर्शन करवा देना चाहिये .... मैं श्योर तो नहीं हूँ लेकिन बच्चे की ग्रोथ बहुत पुअर है ....बच्चे का फ्यूचर बहुत डाउटफुल है ...

डॉक्टर का एक एक शब्द पिघले शीशे सा उसके कानों के साथ साथ अंतस पर चोट कर रहा था ....

उन्मुक्त चिंतातुर स्वर में बोले, ‘’ डाउन सिंड्रोम.... यू मीन एब्नॉर्मल चाइल्ड…’’

‘’नो पूरी तरह से एब्नॉर्मल तो नहीं .... पर बच्चा शारीरिक या मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है ...ग्रोथ बहुत स्लो रहेगी और यह भी संभव है कि शायद ग्रोथ हो ही नहीं ..... यह भी संभव है कि शारीरिक रूप से अपंग या विकलांग हो .... ‘’

उन्मुक्त आवेश में बोले, ‘’साफ साफ शब्दों में बोलिये .... पहेलियां मत बुझाइये ....’’

‘’यू मस्ट एबॉर्ड ....मेरी तो यही राय है कि आप एबार्शन करवा कर इस बच्चे से मुक्ति पा लीजिये ...’’

ईशानी का चेहरा रक्तहीन जैसा सफेद पड़ गया था ...उसका चेहरा भावना शून्य और स्पंदनहीन था . उसके अंतर्मन में विचारों की आंधी पूरे वेग से चल रही थी ....

 वह अपने अतीत की गलियों में विचरण करने लगी थी .... सब कुछ सर्वोत्तम तो चल रहा था . जीवन में उसने जो चाहा हमेशा उसको मिलता चला गया .... अपनी मेहनत के बलबूते अपने जीवन के हर पृष्ठ को मनचाहे रंगों से रंग कर सफलता के नये आयाम गढती चली गई थी . ...

 स्कूल के दिनों से ही मेडेल और ट्रॉफी लेना उसका प्रिय शगल बन गया था ...आई. आई. टी. क्लियर किया, फिर टॉप क्लास एम. न. सी. में कैंपस सेलेक्शन .. प्रोमोशन मिलते मिलते वह मैनेजर बन गई थी .

उसके जीवन में चारों तरफ खुशियां ही खुशियां थीं ... उन्मुक्त जैसे जीवनसाथी के साथ जीवन के 5 वर्ष कब बीत गये, वह जान ही नहीं पाई थी ... सोसायटी के पार्क में झूला झूलते, दौड़ भाग करते ... उछलते कूदते नन्हें मुन्ने उसके मन को लुभाने ल़गे थे ....उसके मन में मां बनने की अभिलाषा सिर उठाने लगी थी ...

 डॉ. महिमा की देख रेख में प्रारंभिक असफलताओं के बाद,  यहां भी उसे जल्दी ही सफलता मिल गई थी.

वह नन्ही नन्ही उंगलियों के स्पर्श की कल्पना मात्र से रोमांचित हो उठती थी ... उसका कमरा सुंदर सुंदर गोल मटोल बच्चों की तस्वीरों से सज गया था .

वह अपने विचारों में खोई हुई थी, जाने कब उन्मुक्त ने उसकी हथेलियों को कस कर पकड़ लिया था

‘’प्लीज ईशानी इतनी परेशान मत हो ...वी कांट अफोर्ड दिस चाइल्ड ... डोंट वरी ... मैं डॉक्टर महिमा से टाइम ले लेता हूँ .... पूरे जीवन के लिये परेशानी मोल लेने से अच्छा है कि पहले ही जड़ से खत्म कर दो’’ ....

‘’नहीं,  उन्मुक्त हमें पहले दूसरे डॉक्टर से उसका ओपिनियन भी ले लेना चाहिये . ‘’

‘’ओ. के. माई लव ....’’

फिर शुरू हो गई एक थकाऊ दौड़ ...आज इनके पास तो कल उनके पास ...... डॉक्टरों के भी दो तरह के ओपिनियन थे ...... कुछ का कहना था कि ग्रोथ धोड़ी धीमी हो सकती है दूसरी तरफ कुछ का कहना था कि बच्चे को तुरंत हटा देना ही बुद्धिमानी है ....

दोनों मानसिक यंत्रणा से गुजर रहे थे ईशानी की तो आंखों की नींद ही उड़ गई थी ... असमंजस और पशोपेश की मनःस्थिति से दोनों ही गुजर रहे थे ....

मां भी आ गईं थी ... अंतत़ः एबॉर्शन की तैयारी चल रही थी ...

ईशानी का दिल मातृत्व भाव से ओतप्रोत था ... अचानक ही उसके पेट में जोर की हलचल सी हुई मानो वह मासूम अपनी मां से विनती कर रहा हो .... मां मुझे इस दुनिया में आना है ....

उसी पल वह रूम से बाहर आ गई थी ....

मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी ...

उन्मुक्त नाराज होकर बोले,  ‘’ बेवकूफी की बात मत करो ... कैसे मैनेज करोगी ....’’

‘’मैं कर लूंगीं ....’’

उसके लिये एक एक दिन बिताना काफी मुश्किल हो रहा था .... डॉ. महिमा भी उसके निर्णय से अचंभित थीं... परंतु उन्होंने अपना पूरा सहयोग दिया ...

उसने निर्णय तो ले लिया था परंतु मन ही मन वह बहुत डरी हुई थी .... मां उसकी देखभाल के लिये साथ रहने के लिये आ गईं थीं .. वह भी उसके निर्णय को बेकार की जिद् कह रहीं थीं लेकिन फिर भी उसके खाने पीने के साथ उसका पूरा ख्याल रख रहीं थीं ....

       निश्चित समय पर उसने ऑपरेशन से बेटे को जन्म दिया था ... बेबी शारीरिक रूप से बहुत कमजोर था... उसकी छुट्टियां चल रहीं थीं .. उसने बेटे का नाम उम्मीद रखा था ... वह हर पल अपने उम्मीद के साथ बिताना चाहती थी ... वह सामान्य बच्चे से धीरे बढ रहा था.... साल भर के अंदर उसका शरीर भर गया था ..गोरा गोरा गोलमटोल गदबदा प्यारा सा नीली नीली भावहीन आंखें देख उसका दिल रो पड़ता .. वह न तो मुस्कुराता न ही हंसता ... बिना किसी प्रतिक्रिया के बस टुकुर टुकुर देखता रहता ... वह अपनी उम्र के बच्चों की तरह न हंसता न ही मुस्कुराता .... अजीब से दयनीय स्वर में ई....ईं.... करता रहता.

उन्मुक्त उसकी आवाज सुन कर चिड़चिड़ा उठते ...

 परंतु उसने अपना धीरज नहीं खोया था ... क्यों कि यह फैसला तो उसका अपना ही था ... इसलिये सामना भी तो उसे ही करना है .....वह ऑफिस जाने लगी थी लेकिन उसका मन बेटे में ही उलझा रहता घर आते ही वह उम्मीद को प्यार से समझाती ...सिखाती ... वह डगमगाते कदमों से चलने लगा था ..वह उसे बोलने के लिये प्रेरित करती रहती लेकिन वह भावहीन आंखों से बस टुकुर टुकुर निहारता रहता . शरीर से नॉर्मल बच्चा दिखता लेकिन कुछ बोलता नहीं था और समझता भी देर से था ....

कई बार उसका साहस भी डगमगाने लगता था कि शायद उसने गलत फैसला ले लिया लेकिन उसकी प्यारे से चेहरे को देख कर इतना प्यार आता कि वह अपनी सुध बुध ही भूल जाती ....फिर वह उसको सिखाने समझाने में पूरे उत्साह से जुट जाया करती थी .

उन्मुक्त अपने फोन और लैपटॉप में बिजी रहते ... वह अपने बेटे में ... पति के लिये उसके पास समय ही नहीं होता था ... .. वह भी कुछ उखड़े उखड़े से रहते ... हां, उम्मीद अब तीन वर्ष का हो चुका था ... वह खिलौनों से खेलने लगा था .. ताली बजाता और मुस्कुराता भी .... परंतु मां शब्द सुनने के लिये वह तड़पती तरसती रहती थी ....

 सन्डे की छुट्टी का दिन था ... वह बोली, बहुत दिन बीत गये ... चलो आज लहरों से मिलने चलते हैं ....

वह तीनों बीच पर आकर बैठ गये थे ... वह लहरों की अठखेलियों पर नजरें लगाये बैठी थी ... उसे ध्यान भी नहीं था कि उम्मीद कहां है ....

उम्मीद ने रेत को इकट्ठा करके घर बनाया था वह अपनी नन्ही हथेलियों से इशारा करके उन लोगों को दिखा रहा था ... तभी उसके मुंह से ‘ममा’ शब्द प्रस्फुटित हो गया था और वह एक बार नहीं बार बार मना कह रहा था ...

 वह खुशी से अभिभूत होकर उम्मीद को अपनी बांहों में उठा कर वहां पर नाचने लगी थी ...

उन्मुक्त भी बहुत खुश था .... उसने खुशी से दोनों को अपनी बांहों में भर लिया और बोला, ‘’सब ठीक तो है’’ .....



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