साथ
साथ
"भाभी जी,बिटिया की शादी का कार्ड है। आप सब जरुर आइयेगा। "पड़ौस के शर्मा जी अपनी बेटी की शादी का कार्ड देने आये। सुबह का वक्त था।
कार्ड लेकर मैने उन्हे बधाई दी,और कहा-भाई साहिब बैठिये। चाय तैयार है,चाय पीकर जाईये। "उन्होने मेरा अनुरोध स्वीकार किया।
मैं कार्ड देखने लगी। कार्ड बिल्कुल सादा था। वर का नाम पढ़ने से पता चल गया की विवाह अंतरजातीय है।
शर्मा जी ही अपनी ओर से बोले--"बिटिया की पसंद है। दोनों एक ही ऑफिस मे काम करते हैं। हम लोगों ने उसे बहुत समझाया पर उसने ज़िद पकड़ ली, शादी इसी से करेगी वरना सारी जिन्दगी अविवाहित रहेगी।"
उनकी मनोदशा मैं समझ सकती हूँ। पीढ़ियों से संस्कार में बंधे माता पिता के लिये बेटी का गैर जाति में विवाह करना बड़े कलेजे का काम होता है।
मैंने हल्के मे लेकर कहा--भाई साहिब अब अंतर जातीय विवाह आम बात हो गई है। आप नाहक चिंता कर रहे हैं। हमें बच्चो की खुशी का ख्याल रखना चाहिये। "
उनके चेहरे को देख कर लगा की मेरी बात ने उन्हे बहुत राहत दी है।
थोड़ा रुक कर वो बोले--मैंने तो मन को समझा लिया,पर उसकी मां----वो बीमार सी हो गई है, हरदम यही कहती है, हमारे और उनलोगों के आचार विचार सभी में जमीन आसमान का अंतर है। बिटिया वहाँ दुखी हुई, सामंजस्य न बैठा पाई तो क्या होगा ? मैंने तो कह दिया की जब बिटिया अपनी ज़िद पर अटल है तो जो उसके भाग्य मे हो वो भुगते। ठीक है न भाभीजी ?"
मानो वे मुझसे समर्थन ले अपनी बात की पुष्टि करवाना चाह रहे हो।
मैंने कहा- देखिये भाई साहिब, चाहे लव मेरिज हो या अरेंज। अगर बेटी ससुराल मे प्रताड़ित, अपमानित होती है तो पैरेंटस को उसके साथ खड़ा होना ही चाहिये न की उसे वहाँ अकेला असहाय छोड़ दिया जाय।