Anshul Jain

Abstract

3.9  

Anshul Jain

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साथ तुम्हारे जो पल देखे

साथ तुम्हारे जो पल देखे

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साथ तुम्हारे जो पल देखे, फिर ऐसे पल देगा कौन 
तुमने ही मुख मोडा, तो फिर मन को सम्बल देगा कौन

तुमने ही तो श्रवण किया था, मेरा पहला पहला गीत 
तुमने ही स्पर्श किया था तभी हुआ था मै नवनीत 
तुमने ही तो भाव सिन्धु में स्वाति – बूँद टपकाई थी 
तुमने ही तो मधुर कंठ से मेरी तान सुनाई थी

रचना का आकार तुम्हीं हो, गीतों का श्रंगार भी तुम 
तुम रूठे तो मुझे प्रीत का शुद्ध धरातल देगा कौन 
तुमने ही मुख मोडा, तो फिर मन को सम्बल देगा कौन

तुमसे परिचय हुआ हृदय का, मंज़िल मिली मुसाफिर को 
छुअन तुम्हारी मूरत देकर चली गई मन मन्दिर को 
ऐसा कुछ आभाष हुआ, अपराध सभी आराध्य हुए 
तुमसे मिलना हुआ कि सारे बंजर अक्षर काव्य हुए

तुमसा नहीं मिलेगा कोई जग के शेष विकल्पों में 
छलके जिससे प्यार तुम्हारा ऐसी छागल देगा कौन 
तुमने ही मुख मोडा, तो फिर मन को सम्बल देगा कौन

 


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