Anshul Jain

Abstract

2.2  

Anshul Jain

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दिल किसी का मत दुखाओ,मत सताओ

दिल किसी का मत दुखाओ,मत सताओ

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दिल किसी का मत दुखाओ,मत सताओ 
जिन्दगी तो मुस्कराने के लिये है 

कर रहा सन्दल, पवन का रूप शीतल 
पुष्प जग को सुरभियों से भर रहा है 
कोकिलायें घोलतीं संगीत मीठा – 
कोई पर्वत बन के झरना,  झर रहा है 

मिलन का सावन न विन भीगे गवाओ 
यह प्रणय मिलने मिलाने के लिये है 

घुघरुओ की छनछनाहट नाचती है 
तितलियां लिखती है कलियो पर उजाले 
कंगनों की खनखनाहट कह रही है 
दिन सुगन्धित है सभी अब आने बाले 

चीख छोडो,कुछ सुनहरे गीत छेडो, 
यह जनम तो गुनगुनाने के लिये है 

फिर भला अधियार क्या ठहरे कही भी 
आगमन हो जब धरा पर ज्योतियों का 
जब दिया भी जगमगाकर रौशनी से 
हार पहनाये गले मे मोतियों का 

इस तरह तुम भी हृदय दीपक जलाओ 
जो

--  भी पल हैं, जगमगाने के लिये है 


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