सात फेरे
सात फेरे
सर्दियों का मौसम था। मालिनी को बहुत सर्दी लग रही थी। और उसने हीटर लगाया था। आज मालिनी को देखने लड़के वाले आने वाले थे। लेकिन मालिनी को जोरों से जुकाम हो रखा था। और मालिनी का छींक छींक कर बुरा हाल था। मालिनी की मां सुजाता सुबह से लड़कों के स्वागत में लगी हुई थी। उन्होंने तरह-तरह के पकवान बनाए थे। और घर की सजावट में वह लगी हुई थी। उन्होंने घर को बहुत सुंदर सजाया था। घर में भीनी भीनी खुशबू आ रही थी। लड़के वाले 11:00 बजे आने वाले थे। 11:00 बजने को आए थे मां चिल्ला रही थी मालिनी तैयार हो जा। पर मालिनी का सर दर्द से फटा जा रहा था। और उसका सर्दी से बुरा हाल था। उसने बोला ठीक है मैं आती हूं। मालिनी ने लाल रंग की साड़ी पहनी थी। आ गए थे। मालिनी की मां ने लड़के वालों का स्वागत किया। लड़के का नाम सूरज था, और सूरज का पेट खराब था। सूरज ने कहा नमस्ते अंकल आंटी, मालिनी की मां ने मुस्कुराकर जवाब दिया, बैठो बेटा। और मालिनी को आवाज लगाई। मालिनी धीरे से आई और उसने सबको नमस्ते किया। मालिनी का मुंह लाल लाल हो रखा था। जैसे ही बात कुछ बोलती है तो उसे छींक आ जाती। तुम्हारे मालिनी को ऊपर भेज दिया। सूरज को वॉशरूम जाना था। दोनों की तबीयत ठीक ना होने के कारण इन दोनों ने एक दूसरे के लिए हां बोल दिया। और ताबड़तोड़ दोनों परिवारों ने शादी की तारीख भी तय कर ली। 20 जनवरी की तारीख निश्चित की गई। मालिनी और सूरज दोनों दूल्हा दुल्हन के भेस में बहुत प्यारे लग रहे थे। शादी संपन्न हुई मालिनी सूरज के घर आ गई। मालिनी को सातों फेरे थे। सूरज पर सूरज शायद सब कुछ भूल चुका था। वह मालिनी को किसी के भी सामने गुस्सा करता। इसे कोई भी बात ना बताता। और ना ही उसका ध्यान रखता। मालिनी बहुत दुखी रहने लगी थी। सूरज उसकी कोई बात नहीं मानता था। मालिनी और सूरज दोनों अब पूरब पश्चिम हो चुके थे। मालिनी ने तय किया कि जब सात फेरों के सात वचन निभा नहीं सकते तो साथ रहकर क्या मतलब। और दोनों हमेशा हमेशा के लिए अलग हो जाते हैं।