Ekta Rishabh

Inspirational

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Ekta Rishabh

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सासूमाँ, बहुओं में फ़र्क क्यों

सासूमाँ, बहुओं में फ़र्क क्यों

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आँखों में ढेरों सुनहरे सपने सजाये श्रुति ने अपने जीवनसाथी नमन के साथ सात फेरे ले अपने ससुराल में कदम रखा !हर नई दुल्हन की तरह श्रुति का दिल भी नई जीवन के कई सुनहरे सपने सजा रहा था!ससुराल भरा पूरा मिला था, सास ससुर, जेठ जेठानी एक छोटी नंद और पति के रूप में नमन!

ससुराल में ससुर जी रिटायर क्लास वन ऑफिसर थे, जेठजी की भी बैंक में अधिकारी की पोस्ट थी, छोटी नंद हॉस्टल में रह पढ़ाई कर रही थी और नमन बड़े आई टी फर्म में इंजीनियर के पोस्ट पे बंगलौर में काम करते थे!घर हर तरह से संपन्न था, शादी में नमन को सिर्फ दस दिनों की छुट्टी मिल पायी थी! शादी के बाद बंगलौर जाते वक़्त नमन, श्रुति को भी अपने साथ ले जाना चाहता था लेकिन सास रमा जी ने ये कह रोक दिया की श्रुति कुछ समय हम सब के भी साथ भी समय बिता ले फिर तो बाहर ही रहना है!


नई नई शादी थी तो संकोच में नमन और श्रुति भी कुछ कह नहीं पाये श्रुति ने भी सोचा इसी बहाने अपने ससुराल वालो के दिल में अपनी जगह बना लेगी! नमन जल्दी ही श्रुति को अपने साथ ले जाने का वादा कर बंगलौर लौट गया!नमन के जाते ही रमा जी ने श्रुति को रसोई की सारी जिम्मेदारी ये कह सौप दी की, " तुम्हारी जेठानी और मैंने बहुत काम कर लिये अब तुम्हारी जिम्मेदारी है रसोई और घर के रीती रिवाजों को समझने की "!नई नवेली श्रुति ने हाँ में सिर हिला दिया!


रसोई घर में अब ना तो रमा जी जाती ना श्रुति की जेठानी सीमा जाती सुबह की चाय से ले कर रात को दही ज़माने तक का सारा काम श्रुति के जिम्मे आ गया!अपने घर में कभी इतना काम श्रुति ने किया नहीं था तो वो थक के चूर हो जाती फिर रात को नमन का कॉल आ जाता उससे बातें करते देर से सोती तो सुबह जल्दी आँख ही नहीं खुलती!श्रुति के चेहरे से नई दुल्हन की चमक खो सी गई थी! इतना करने के बाद भी जब अपनी सासूमाँ के तरफ से एक तारीफ के बोल सुनने को श्रुति तरस जाती वही दूसरी ओर श्रुति की जेठानी को रमा जी सिर आँखों पे बिठाती!दिन भर बड़ी बहु, बड़ी बहु कहते जुबान नहीं थकती उनकी और वही श्रुति को उसके नाम से भी नहीं पुकारती सुनो, ऐ, ऐसे संबोधन से श्रुति बहुत दुखी हो जाती!


श्रुति की सासूमाँ का विशेष स्नेह उनकी बड़ी बहु से था इतना तो श्रुति समझ ही गई थी अपनी ओर से पूरा प्रयास भी करती श्रुति की अपने सासूमाँ के दिल में अपना स्थान बनाने का!एक रात नमन देर रात तक बातें करता रहा, ""देखो नमन अब फ़ोन रखो मुझे सुबह जल्दी उठना है, श्रुति ने नमन से कहा ""|

"एक दिन देर तक सो जाओगी तो क्या होगा भाभी भी तो कई बार देर तक सोती है", नमन ने कहा |नमन की बातों का क्या ज़वाब देती श्रुति अगले दिन वही हुआ श्रुति की आँख देर से खुली बाहर आयी तो सासूमाँ के तेवर गर्म थे!


""ये क्या इतनी देर तक कौन सोता है? तुम्हारे पापाजी बिना चाय पिये वॉक पे चले गए! मंदिर की सफाई नहीं हुई कब से नहा के बैठी हूँ, अब चुप क्यों खड़ी है जा जल्दी से मंदिर की सफाई कर नाश्ता बना""!


अपनी सासूमाँ की बातें सुन श्रुति अवाक् खड़ी रह गई ; ऐसे तो कोई कामवाली को भी नहीं कहता! "बस माँजी बहुत कह लिया आपने और मैंने बर्दाश्त की हद से ज्यादा सह लिया ,जब घर सबका है तो काम भी सबके होने चाहिये और क्या एक दिन जेठानी जी अपने ससुरजी को चाय नहीं दे सकती या एकदिन आप खुद मंदिर नहीं साफ कर सकती माँजी!"श्रुति का ज़वाब सुन रमा जी तिलमिला गई आज तो बेज़ुबान गाय भी बोलना सीख गई यही तमीज़ और संस्कार है तुम्हारे अपनी सास से जुबान लड़ना! इतने सालों से बड़ी बहु ने ही तो सब संभाला है अब तुम आयी हो तो क्या चार दिन अपनी जेठानी को सुख नहीं दे सकती??


"बिलकुल माँजी आप बड़ी है मुझसे जितना बन सकेगा मैं आपको आराम दूंगी लेकिन बदले में सम्मान तो चाहूंगी ना! आप जिस तरह जेठानी जी को बड़ी बहु, बेटा बुलाती है मुझे तो आप श्रुति भी नहीं कहती क्या घर की बहु को ऐ, ओ से सम्बोधित किया जाता है!"


" मैं मानती हूँ माँजी, जेठानी जी मुझसे पहले इस घर में आयी है और मैं ये भी मानती हूँ की उन्होंने काम भी मुझसे ज्यादा किया होगा लेकिन मेरे इस घर में आने से पहले |माँजी आप मेरी भी परेशानी समझें मुझपे एक साथ सभी जिम्मेदारी डालना कहाँ तक उचित है? अब ये जरुरी तो नहीं की जितना काम जेठानी जी अकेली कर लेती थी उतना मैं भी कर लू! सारा दिन मैं अकेली सारा काम करती हूँ और जेठानी जी थोड़ी मदद भी नहीं करती ये कहाँ तक सही है माँजी आप ही बताइये दोनों बहुओं में इतना फ़र्क क्यों माँजी और माँजी संस्कारों की बात कहाँ से आयी यहाँ तो बात मेरे आत्मसम्मान और मेरे हक़ का है " !जो मान सम्मान जेठानी जी को मिलता है इस घर की बहु होने के नाते वो मुझे भी तो मिलना चाहिये क्यूंकि दोनों ही इस घर की बहुएं है!

आज से सारे काम आपको बांटने होंगे और मैं वही और उतना काम ही करुँगी जितने मैं खुशी से कर सकूँ बोझ समझ कर नहीं! आप बॅटवारा करें तो ठीक नहीं तो मैं कुछ भी नहीं करने वाली!" इतना कह श्रुति अपने कमरे में चली गई!


रमा जी के होश उड़ गए उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था श्रुति ऐसा भी बोल सकती है! वो समझ गई इससे ज्यादा बात बढ़ी तो उनका बेटा भी ना हाथ से निकल जाये! बुझे मन से ही सही दोनों बहुओं में कामों का बॅटवारा हो गया! अब श्रुति पे काम का कम बोझ था जितना काम उसके हिस्से में था वो ख़ुशी से करती और कभी कभी अपनी जेठानी की भी मदद कर देती! जल्दी ही नमन भी श्रुति को बंगलौर ले कर चला गया अपनी नई दुनियां बसाने |


दोस्तों

कई बार अपने हक़ के लिये अपने सम्मान के लिये खुद ही लड़ाई करनी होती है जैसा श्रुति ने किया!




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