Mukta Sahay

Drama Inspirational

4.7  

Mukta Sahay

Drama Inspirational

सासु माँ का प्रायश्चित!

सासु माँ का प्रायश्चित!

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शांति देवी की ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था आज ।दौड़ दौड़ कर शादी का सारा इंतज़ाम देख रही है।कभी किसी को माला साइड से लगाने को कहती तो कभी बिजली के झालर सही करवाती है।कभी पंडितजी से कुछ पूछती तो कभी घरवालों को हिदायत देतीं हैं ।आज का दिन शांति देवी के लिए इसलिए ख़ास है क्योंकि आज उनकी बहू की शादीहै जी हाँ उनकी बहू की शादी है।बहू के माता पिता तो थोड़े शंका में और सहमे से दिख रहे हैं।उन्हें शायद समझ नहीं आ रहा कि ये सही है या ग़लत।

दो साल पहले जब शांति देवी की बहु मोहिता ने उनके एकलौते बेटे हिमांशु से तलाक़ लिया था तब शांति देवी बहुत आहत हुई थी । एक तरफ़ बेटे का मोह और दूसरी तरफ़ बहु की पीड़ा । साल भर ही तो हुआ था उनके बेटे की शादी को और बेटे द्वारा की गई ग़लती ने तलाक़ की नौबत ला दी । शांति देवी जानती थी कि उनके बेटे ने बहुत ही गम्भीर ग़लती करी है ।शांति देवी ने जब अपने बेटे हिमांशु की शादी मोहिते से तय करी थी तब हिमांशु ने अपनी कायरता की वजह से शांति देवी को ये नहीं बताया था की वह मुंबई में एक लड़की के साथ रहता है “लिव-इन “ में।मुश्किलें इस वजह से और भी बढ़ी की उसने मोहिते से शादी के बाद भी उस लड़की के साथ रहना नहीं छोड़ा । ये बात शायद शांति देवी को कभी पता ही चलती अगर उस दिन मोहिता बिना बताये मुंबई ना गई होती हिमांशु के पास।

तलाक़ के बाद शांति देवी का बेटा फिर कभी घर नहीं आया। किंतु शांति देवी अपनी बहू मोहिता की पीड़ा को देखकर आत्मग्लानि से घुली जा रही थी। वैसे तो मोहिता ने उन्हें कभी कुछ नहीं कहा पर शांति देवी उसकी पीड़ा के लिए ख़ुद को क़सूरवार मानती थीं।

तलाक़ के बाद मोहिता शांति देवी के पास ही रुक गई थी । शांति देवी कानपुर में अकेले रहती थीं। मोहिता ने कभी नहीं कहा की वो मायाके जाना चाहती है । या तो वह शांति देवी को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी या फिर शायद उसे अपने माता-पिता से इस बात की शिकायत थी की उन्होंने हिमांशु के बारे में अच्छे से पड़ताल नहीं करी थी। सिर्फ़ कानपुर वाले चाचा के कहने पर ही रिश्ता तय कर दिया था ।

तलाक़ के बाद तो कुछ दिन ऐसे ही निकल गए । शांति देवी और मोहिता दोनो ही अपनी अपनी तकलीफ़ में धीरे धीरे घुलते जा रहे थे। शांति देवी ने मोहिता को पीड़ा में घुलते देख ख़ुद को सम्भाला और सोचा अब ऐसे नहीं चलेगा । मेरा क्या कुछ दिनों की मेहमान हूँ पर मोहिता , उसकी तो पूरी ज़िन्दगी पड़ी है । उसके माता-पिता के प्रयास को मोहिता सिरे से नकार देती है। ऐसे में अब मुझे ही कुछ सोचना होगा।

शांति देवी अब मोहिता को साथ ले कर मार्केट - मॉल जाने लगी । कभी साथ नई सिनेमा देखती तो कभी कीर्तन संध्या ले जातीं। अब शांति देवी ने उसे नौकरी फिर से शुरू करने को प्रेरित किया । दो - तीन महीनें में ही मोहिता को ,वहीं कानपुर ,में अच्छी नौकरी मिल गई। अब मोहिते अपने दुखों से उबरने लगी थी । लोगों के साथ थोड़ा हँसने बोलने लगी थी।

एक दिन शांति देवी ने मौका देख कर मोहिता को दूसरी शादी के लिए टटोला । मोहिता ने कुछ कहा तो नहीं पर उठ कर चली गई। शांति देवी ने हार नहीं मानी। मौक़ा देख कर मोहिता को समझती रही और उसे आगे की ज़िंदगी के लिए सोचने को विवश किया । शांति देवी की मेहनत आख़िरकार रंग लाई । मोहिता फिर से शादी के लिए थोड़ी नर्म हुई और अपना पक्ष रखना शुरू किया । धीरे धीरे बात-चीत और वाद-विवाद के बाद मोहिता शादी के लिए राज़ी हो गई।

शांति देवी के लिए अब सबसे कठिन काम था एक अच्छे लड़के की तलाश।पहले तो शांति देवी ने मोहिता से पूछा की कोई उसकी नज़र में हो तो बता दे ताकि बात आगे बढ़ाई जाए। इस पर मोहिताने मना कर दिया और कहा मैं तो अब किसी भी पुरुष को देखती ही नहीं हूँ सो ढूँढने का काम आप ही करें पर हाँ बात पक्की होने से पहले मैं उससे मिलना ज़रूर चाहूँगी ।

शांति देवी कमर कस कर एक अच्छे लड़के की तलाश में जुट गई । कई परिवारों से मिलीं , भावी दूल्हे से मिलीं , उसके ऑफ़िस गई, उसके दोस्तों - पड़ोसियों से मिली; जितनी जानकारी इकट्ठा हो सकती थी जमा करने लगी। अंततः शांति देवी को रोहित के रूप में उनके पसंद का रिश्ता मिल गया।रोहित कानपुर के एंजिनीरिंग कॉलेज में लेक्चरर था और अपने वृद्ध माँ-पिताजी की देखभाल के लिए कभी कानपुर से बाहर जाने की नहीं सोचा । आज भी उसे अच्छी कम्पनीयों से प्रस्ताव मिलते रहते हैं पर वह माँ-पिताजी को छोड़ कर कहीं बाहर जाने की नहीं सोंची।

दोनों परिवारों के मिलने के बाद अब समय था मोहिता और रोहित के मिलने का। दोनो की मुलाक़ात एक रेस्टरेंट में हुई । औपचरिकता पूरी होते ही मोहिता ने सबसे पहले रोहित को अपने और हिमांशु के बारे में बताया । मोहिता इस नए रिश्ते को पूरी सच्चाई के साथ शुरू करना चाहती थी। इसपर रोहित ने कहा माताजी ने मुझे इस बारे में सब कुछ विस्तार से बताया है और यह i बताया है की उनका बेटा हिमांशु तो उन्हें फ़ोन भी नहीं करता मिलना तो दूर की बात है। आप हिमांशु से अलग होने पर भी माताजी के साथ ही रहती है और माताजी आपको अपना मजबूर सहारा मानती हैं। मैं मेरे माता पिता के साथ रहता हूँ और आगे भी उनके ही साथ रहूँगा । आपको भी हमारे साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए , रोहित ने मोहिता से पूछा । मोहिता ने कहा बिलकुल नहीं बल्कि ये तो सौभाग्य है कि उनका आशीर्वाद बना है । दोनो ने एक दूसरे से जुड़ी बहुत से बातें साझा करीं और अपने विचार रखा ।

मोहिता - रोहित की सहमती के बाद शांति देवी ने सारी बात मोहिता के माता-पिता को बताई और उनकी रज़ामन्दी के बाद शादी की तारीख़ पक्की कर दी ।

जब मोहिता के हाथों में मेहंदी लग रही थी तब दो दो माँओं की आँखे नम थी और उनका रोम रोम आशीर्वाद दे रहीं थी की उसके आगे की ज़िन्दगी ख़ुशियों से भारी हो। जितनी पीड़ा उसने आज तक सही हैं वे कभी पलट कर ना आएँ । रोहित के रूप में उसे ऐसा जीवनसाथी मिले जो हर पल हर क़दम उसके साथ रहे।

दूसरी तरफ़ मोहिता की आँखे शांति देवी से हट ही नहीं रही थीं। वो जहाँ जाती मोहिता की कृतज्ञ आँखे उन्हें निहार रही होतीं। शांति देवी ने सास होने की परिभाष ही बदल दी थी । जो ग़लतियाँ उनके बेटे या उनसे हुई थीं उन्हें सुधरते हुए शांति देवी को आत्मसंतोष की अनुभूति हो रही थी जो उनके चेहरे से साफ़ झलक रही थी।

शांति देवी और मोहिता के रिश्ते को कोई नाम दे पाना बहुत मुश्किल है । कहते हैं माँ-बच्चे के बीच नाल और नाड़ी का रिश्ता होता है जो एक दूसरे की धड़कनों को मीलों दूर से महसूस कर लेता है वैसे ही यहाँ दर्द-पीड़ा का अनूठा रिश्ता है जिसके अद्भुत तार दोनो स्त्रियों के हृदय से जूड़े है । शादी में शामिल मेहमान इस ख़ास रिश्ते तो देख भावी-विभोर हुए जा रहे थे ।


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