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Rekha Rana

Inspirational

3  

Rekha Rana

Inspirational

साफ़ रुख

साफ़ रुख

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 "क्या होया यू मुँह क्यूँ लटकै रख्या?" जैसे ही अनीस ने घर में कदम रखा रूबीना ने सवाल दागा।

 "वो अब्दुल भाई जान ने बलावा भेज्या था, वंही ते आया।"

 "क्यूँ आज कूण सा काम पड़ग्या?"

 "वो....,"

 "एक मिनट रूक जा... कहीं यो लैक्सन का चक्कर तो नी?"

 "हाँ ... वो कैह रे थे.....।"

 "वो क्या कैह रे मन्नै नी सुणणा पर ईब कै मैं तो अपणी मर्ज़ी ते वोट देऊँगी।" रूबीना ने अपना फैसला सुना दिया।

 "इब लक इन्हीं के कहणे पै वोट करदे आये। म्हारा तो कुछ नै बण्या ....पर थारे अब्दुल भाईजान का दो कमरों का मकान चबारा ज़रूर बण ग्या।

कौम का नाम ले कै अपणा घर भर रया, हम तो आज भी न्यू ई हैं जिकर दस- पन्द्रह साल पैलों थे।"

रूबीना आवेश में कह गई।

"इबकै वोट दयूँगी उसते जिन्ने म्हारी जैसी लुगाईयों की तकलीफ़ समझी, गैस कनैक्सन दे दिया,

घर -घर सौचालय बणवाये, म्हारी कौम की लुगाईयों का तलाक का दरद समझ्या, होर तो होर तेरे अर मेरे नाम का बैंक मा खाता भी खुलवै दिया। 

तन्ने जिसते देणी उसते दे ......मन्नै तो इबी और सधार चहिंये"

रूबीना ने सुलझे तरीके से अपनी बात कह दी।

 "कह तों ठीक है, बहुत मूर्ख बण लिए कौम के नाम पै, मैं भी उसी ते वोट द्यूँगा जिसते मेरी रूबीना देगी....जिन्ने म्हारी माँ- भाणों की तकलीफ़ समझी।"

 अनीस ने रूबीना की तरफ देखते हुए कहा।

 "एक बात बताऊँ।" रूबीना ने सरगोशी करते हुए कहा।

  "क्या ?"

  म्हारी कौम की सारी लुगाईयाँ उसी ते वोट देंगी।

रेहाना आपा भी।"

 "क्या भाभी जान भी? "

 "तरक्की किसे बुरी लगे है।"

  "हाँ भई तरक्की तो सबकी होणी चहिये...पर मन्नै या बात बहोत देर मा समझ आई।"

अनीस ने धीरे से कहा ।



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