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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

सांस्कृतिक विरासत और परंपराएं

सांस्कृतिक विरासत और परंपराएं

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" क्षमा चाहूंगा , ज्ञान प्रकाश जी।आपको इंतजार करना पड़ा। आप मोबाइल ' आउट आॅफ़ कवरेज एरिया ' में था इसलिए फोन पर आपसे संपर्क नहीं हो पाया। यदि संपर्क हो जाता तो आपको यहां होटल में आने का कष्ट नहीं करना पड़ता।"- होटल के रिसेप्शन पर मेरा इंतजार कर रहे हमारे प्रोजेक्ट के सहायक मैनेजर ज्ञान प्रकाश जी से खेद व्यक्त करते हुए मैंने कहा।


मुझे प्रोजेक्ट के नक्शे को लेकर सिविल इंजीनियर और फाइनेंस एडवाइजर से कुछ चर्चा करनी थी। यहां पिछली रात आने के बाद मुझे अपने पहुंचने की सूचना इन दोनों ही लोगों को देनी थी। प्रोजेक्ट मैनेजर होने के कारण लोगों से मिलने, मिलने के बाद उस पर होने वाली चर्चा और चर्चा के बाद सारी प्रक्रियाओं का सारा प्रबंधन करना भी मेरा उत्तर दायित्व था।मैं प्रोजेक्ट साइट पर मैं कितने बजे तक पहुंचूंगा ।इस बारे में मेरे और ज्ञान प्रकाश जी के बीच चर्चा होनी थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पाई थी इसलिए वे होटल पर ही आ गये थे। मैंने अपनी प्रात:कालीन पूजा में व्यस्त रहने के अनुमान अनुसार आठ बजे तक ' डों'ट डिस्टर्ब ' की सूचना होटल के रिसेप्शन पर दे रखी थी कि यह मेरी पूजा का समय है इस अवधि में किसी भी व्यक्ति मुझसे मिलने मत भेजना। मेरी द्वारा दिए गए निर्देश का पालन करने के लिए रिसेप्शनिस्ट ने ज्ञान प्रकाश जी को वहीं इंतजार करने के लिए कहा था। उन्हें यहां रिसेप्शन पर आधे घंटे से अधिक समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ी थी। जिसके लिए आते ही मैंने खेद व्यक्त किया।


ज्ञान प्रकाश जी बोले-"कोई बात नहीं, सर ! मुझे यह अनुमान नहीं था कि आप कितने बजे तैयार हो जाएंगे। वैसे मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि आज इक्कीसवीं सदी के इस दौर में भी कोई व्यक्ति पूजा पाठ में एक घंटे का समय लगाता है। सारा संसार धरती को छोड़ चांद और मंगल की ओर कदम बढ़ा रहा है ।वहीं आप जैसे पढ़े-लिखे समझदार लोग भी यदि पूजा पाठ में अगर इस प्रकार वक्त बर्बाद करेंगे तो हमारा देश कितने पीछे रह जाएगा? ऐसी परंपराएं निभाने से हानि ही होती है जो समय हम पूजा पाठ करने में बर्बाद कर देते हैं। अगर उतना समय हम अपनी काम करते हुए उन्नति, धनोपार्जन और ज्ञानवृद्धि में लगाएं तो हम आज जहां हैं उससे बहुत आगे पहुंच सकते हैं।"


मैंने ज्ञान प्रकाश जी से कहा - " हमारी परंपराएं हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। हम अपनी संस्कृति की जड़ों से दूर रहकर भौतिक संसाधन जुटाकर बाहरी दिखावे वाली उन्नति तो कर सकते हैं किंतु जो हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराएं हैं वे सारी की सारी विशुद्ध वैज्ञानिक चिंतन पर आधारित हैं। हमारे मनीषियों ने एक लंबा समय बिता कर स्थितियों और परिस्थितियों का अध्ययन और उस पर मनन - चिंतन करने के उपरांत यह परंपराएं बनाईं ताकि व्यक्ति इस पर अनावश्यक रूप से वाद - विवाद ,तर्क वितर्क और उससे अधिक कुतर्क करने से बच जाएं । प्राचीन ऋषि-मुनियों के अध्ययन का निष्कर्ष जो परंपराओं के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचता रहे और ये परंपराएं सभी पूरे समाज के लिए कल्याणकारी साबित हों।"


" सुबह और शाम दोनों समय पूजा में जो समय लगाया जाता है उसको यदि सृजनात्मक कार्य में लगाया जाए तो वह तुलनात्मक रूप से समाज के लिए ज्यादा कल्याणकारी होगा। उसके बारे में आपके क्या विचार है आप क्या उचित तर्क के साथ मुझे समझा सकते हैं? "- ऐसा मेरा मानना है ज्ञान प्रकाश बोले।


मैंने उन्हें समझाया -" सुबह ब्रह्म मुहूर्त में ही बिस्तर छोड़ देना हमारी सनातन भारतीय संस्कृति की परंपरा में बताया गया है। "अर्ली टू बेड एण्ड टू अर्ली टू राइज । मैक्स ए मैन हेल्दी वेल्दी एंड वाइज।" अंग्रेजी की राइम बुक में हर कोई बचपन से रटता है लेकिन अमल में विरले ही लाते हैं। जैन धर्म की परंपरा के अनुसार भोजन सूर्यास्त से पहले ही कर लेना चाहिए ताकि भोजन पाचन की प्रक्रिया के लिए उचित ढंग से समय मिल सके। आज हममें से बहुत लोग पश्चिमी सभ्यता के वशीभूत होकर शाम को देर से भोजन करते हैं और अधिकांश लोग भोजन करने के बाद सो जाते हैं। हमारी इस गलत परंपरा से अपच , कब्ज ,मोटापा और पेट से जुड़ी हुई बहुत सारी जटिलताएं इसकी परिणति हमारे खराब पाचन तंत्र और विभिन्न रोगों के रूप में हमारे सामने आती हैं।"


" दीपक ,धूपबत्ती जलाना ,गा- गाकर आरती बोलना,शंख बजाना किस प्रकार तर्क संगत है?"-ज्ञान प्रकाश जी ने जानने की इच्छा व्यक्त की।


मैंने उन्हें समझाने का प्रयास किया-" पूजा करने के दृढ़ संकल्प के कारण हम समय समय से उठते हैं। दीपक और धूपबत्ती जलाने से वातावरण विविध रोगाणुओं मुक्त होकर स्वच्छ व शुद्ध होता है। फेफड़ों के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लम्बी सांस खींचकर आरती गाना और शंख बजाना श्रेयस्कर होता है। पूजा के नाम से हम ध्यानमग्न होकर मानसिक शांति प्राप्त करके अपनी कार्यक्षमता बढ़ाते हैं। उगते सूर्य को जल देने की परंपरा सूर्योदय से पूर्व उठने और प्रात:कालीन रक्तवर्ण प्रभाकर की रश्मियों के जल के अंदर गुजरते हुए आंखों में पहुंचने का अपना लाभ है।प्रात:काल उगते सूर्य की किरणें विटामिन डी का निर्माण करती हैं।आप देखेंगे कि यह सोच वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूर्णतया तर्कसंगत है।"


"विविध पेड़ों के पूजन के लिए आप क्या विचार व्यक्त करेंगे।" - वे बोले।


मैंने कहा-" धरती पर सारी ऊर्जा का स्रोत सूर्य है। हरे पेड़-पौधे सौर-ऊर्जा को ग्रहण करके उसका संग्रहण करने की क्षमता रखते हैं। वनस्पतियां उत्पादक तथा जन्तु विविध श्रेणियों को उपभोक्ता होते हैं।इनके पूजन की परंपरा इनके विकास और संरक्षण के अनिवार्य है। विविध त्योहारों के माध्यम से विविध पशु-पक्षियों का संवर्धन- संरक्षण हो पाता है। हमें नदी-नालों, झीलों के न्यायपूर्ण उपयोग के लिए विविध परंपराओं के निर्वहन की ईमानदार कोशिश सतत् बनाए रखनी है। इसके अलावा आप और क्या जानना चाहते हैं।"


"अब सारा ज्ञान एक ही दिन में अर्जित अन्य लिया तो कल क्या करेंगे?"- ज्ञान प्रकाश जी बोले- " दस मिनट में सिविल इंजीनियर और फाइनेंस एडवाइजर दोनों एक ही गाड़ी में पहुंच रहे हैं ऐसा संदेश सिविल इंजीनियर महोदय के फोन आ चुका है। तो प्रकृति के बारे में चिंता को ब्रेक लेकर प्रोजेक्ट के बारे में चिंतन किया जाए।"


हम दोनों ही इस बात के पक्षधर थे इसलिए हम दोनों ने प्रोजेक्ट पर चिंतन कर मेज़ पर मैप फैला दिया और सहायक प्रोजेक्ट मैनेजर और फाइनेंस एंड वाइजर की प्रतीक्षा करने लगे।


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