सामा वेलाडी
सामा वेलाडी
सामा वेलाडी माडिया गोंड जनजाति जो आज गडचिरोली जिला, महाराष्ट्र के घने जंगलों में पाई जाती है, उसका अदम्य साहसी युवक था। किंग जॉर्ज पंचम ने उसे उसकी अभूतपूर्व वीरता के लिए 9 नवंबर 1924 को अल्बर्ट मेडल जो उस समय का सर्वौच्च वीरता पुरस्कार था, प्रदान किया था।
लंदन गैजेट की रिपोर्ट के मुताबिक 12 मई 1925 को एच एस जॉर्ज तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर, साउथ चंदा डिवीजन जो आज सिरोंज तहसील गडचिरोली जिले में है, सामा वेलाडी के साथ जंगल का दौरा करके लौट रहे थे।सामा उनकी बंदूक पकड़े आगे- आगे चल रहा था।
अचानक एकमानव भक्षी चीते ने जॉर्ज पर पीछे से हमला कर उनकी गर्दन दबोच ली और उन्हें घसीटते हुए जंगल की ओर बढ़ने लगा। सामा इस अप्रत्याशित हमले से बिना घबराए अदम्य साहस का परिचय देते हुए उछले और उन्होंने तुरंत 12 बोर की रायफल का माउजर चीते के मुंह से सटा दिया। मगर अफसोस, वे घोड़ा दबाना नहीं जानते थे!
चीता शिकार के बीच अड़चन देख और भी आक्रामक हो गया, वह सामा की ओर झपटा। सामा ने बंदूक की बट से चीते के सर पर मारना शुरू किया। यह जीवन और मृत्यु का संघर्ष था। राइफल के बट पर 8 इंच तक चीते के दांतो के निशान पड़ गए थे। सामा शोर भी मचा रहे थे। वह तब तक ऐसा करते रहे जब तक चीते ने जॉर्ज को छोड़ नहीं दिया। छूटने के बाद जॉर्ज उठे, मगर तुरंत ही गिर पड़े।वह बुरी तरह घायल थे।सामा उन्हें अपनी पीठ पर लादकर कैंप की ओर लड़खड़ाते हुए चल रहे थे। चीते ने अभी पीछा नहीं छोड़ा था। यद्यपि 'मुर्वाई फॉरेस्ट विलेज' ब्रिटिश कैंप करीब ही था, मगर वहां तक पहुंचना इतना भी आसान नहीं था। एक तो घना जंगल और चीता भी पीछा कर रहा था। बड़ी मुश्किलों से सामा कैंप पहुंचे। जॉर्ज को तुरंत ही चंडा इलाज के लिए ले जाया गया। उन्हें ठीक होने में 11 महीने का वक्त लगा!
इस घटना के बाद जॉर्ज की अनुशंसा पर सामा को अल्बर्ट मेडल देने की घोषणा हुई, किंतु वे लंदन नहीं जा सकते थे। उन्हें नागपुर प्रोविंशियल कैपिटल बुलाया गया, जहां सर फ्रैंक सलि ने अपने हाथों उन्हें पुरस्कार दिया।सामा केवल धोती पहने हुए थे इसलिए मेडल नहीं लगाया जा सका। गवर्नर ने मेडल उनके हाथों में दिया। मेडल के अतिरिक्त उन्हें एक चांदी की बेल्ट और एक चांदी का कड़ा, जिस पर उनकी बहादुरी का उल्लेख था, भेंट किया गया।
सामा के परिवार सामा की स्मृति में मेमोरियल स्टोन लगाया है। वे नियमित रूप से त्योहारों पर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं, और पहली फसल चढ़ा कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
