Laxmi Tyagi

Tragedy Inspirational

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Laxmi Tyagi

Tragedy Inspirational

साक्षात्कार

साक्षात्कार

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विशाल इस परीक्षा में तीसरी बार'' साक्षात्कार'' के लिए आया है, वह बहुत ही हताश और निराश है । इससे पहले, दो बार उसने परीक्षा दी और'' साक्षात्कार'' में ही बाहर हो गया। आज भी वह अपने ''साक्षात्कार'' के लिए पंक्ति में बैठा है। किंतु न जाने कितने सपने, कितने अरमान, अपनी आंखों में दबाये बैठा है। यह उसकी जिंदगी का आखिरी 'साक्षात्कार 'होगा। वह सोच रहा था, अबकी बार भी यदि मैं सफल न हुआ तो मैं, घर वापस नहीं जाऊंगा। इतने परिश्रम के पश्चात भी, न जाने क्यों मुझे सफलता नहीं मिल रही है। मेरे पापा के अरमानों पर पानी फिर जाएगा, साक्षात्कार की चिंता से ज्यादा, उसे अपने पिता के अरमानों को धूलधूसरित होते हुए देखकर बहुत अधिक दुख हो रहा था और उसने निर्णय ले लिया था कि यदि वह अबकी बार भी सफल नहीं होता है, वापस अपने घर नहीं जाएगा। 

ऐसा नहीं है, कि विशाल एक मूढ़ लड़का है किंतु उसके अरमान तो अलग ही थे, वह साहित्य की दुनिया में अपना नाम कमाना चाहता था। किंतु जब उसके पिता को जब पता चला कि वह साहित्यकार बनना चाहता है, तब उन्होंने उसे डांटा दिया और डांटते हुए बोले -'लेखकों का कोई जीवन है, मैंने ऐसे -ऐसे साहित्यकार देखें हैं जो फाके करते दिखलाई दिए हैं, यह शौक तो पैसे वालों के होते हैं, अपनी जमीन -जायदाद है, पिता का व्यापार चल रहा है, खूब सारी पैतृक संपत्ति है। लाट साहब ! अपने शौक पूरे कर रहे हैं। बहुत से लोग ऐसे हैं जो कलाकृति करके, कभी लेखन करके,आगे बढ़ना चाहते हैं किंतु इनसे पेट नहीं भरता है, करना ही है, तो कोई सरकारी नौकरी की तैयारी करो ! बड़े ऑफिसर बन जाओ ! खूब नोट कमाओ ! और तब अपनी शौक पूरे करना, सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो वह अपनी जगह सही थे। '' पहले पेट पूजा फिर काम दूजा ''

इतने परिश्रम के पश्चात भी, न जाने क्यों ?वह अपनी परीक्षा में सफल नहीं हो पा रहा था, उसके अपने सफल होने से ज्यादा उसे, अपने पिता के अरमानों को पूरा करना था उनके कथनानुसार वह चल रहा था। किंतु न जाने कहां कमी रह जाती है ? वह सफल नहीं हो पाया । विशाल का नाम पुकारा गया और वह अंदर गया। जाते ही, उससे एक परीक्षक ने प्रश्न पूछा -आप यह कार्य क्यों करना चाहते हैं ?यह नौकरी क्यों चाहते हैं ?यही रोजगार क्यों चुना ?

जिंदगी में हर कोई सफल होना चाहता है, मैं भी सफल होना चाहता हूं, और सबसे बड़ी बात अपने माता-पिता के अरमानों को पूर्ण करना चाहता हूं। 

क्या आप संतुष्ट होंगे ? आपने अपने शौक में तो लिखा है,'' साहित्यकार बनना ''यानी कि आप एक लेखक भी हैं, लेखन का शौक रखते हैं । तब आपने लेखन क्यों नहीं चुना ? यही नौकरी क्यों चुनना चाहते हैं ? जिससे आपको स्वयं भी खुशी मिले। इस जीवन में कुछ कार्य है, अपने लोगों के लिए और उनकी खुशी के लिए भी करने होते हैं। माता-पिता ने ही हमें जीवन भर मेहनत करके पढ़ाया -लिखाया, अब हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हम उनकी खुशियों में सहयोग करें !

किसी कार्य के लिए एक जुनून होता है, जिसे हम' पैशन' भी कह देते हैं, और जब हम उसके लिए मेहनत और लगन से कार्य करते हैं तो हम उसमें अवश्य ही सफल होते हैं। बहुत से लेखक भी ऐसे हैं जो बहुत प्रसिद्ध हुए हैं, हां यह कह सकते हैं कि हर कोई उतनी ऊंचाइयां हासिल नहीं कर पाता।

तभी दूसरे ने कहा, यह कार्य करना इनके लिए तो मजबूरी है इनमें वह लगन नहीं है। जो हम एक व्यक्ति में चाहते हैं जो अपनी भावनाओं की कदर नहीं कर सकता, वह दूसरों के लिए ही क्या कर पाएगा ? उनके प्रश्नों से विशाल हताश हुआ जा रहा था, और उसे लग रहा था कि वह शायद अबकी बार भी साक्षात्कार में, आगे नहीं बढ़ पाएगा। तभी उसके मन में एक प्रेरणा जागी - या तो'' आर है या फिर पार,''अच्छा -बुरा जैसा भी होगा देखा जाएगा। आज मैं इन्हें स्पष्ट रूप से जो यह पूछना और कहना चाहते हैं। पूरे विश्वास के साथ जवाब दूंगा, यही सोच आते ही उसके मन में आत्मविश्वास जागा, और जो घबराहट उसके अंदर थी, वह न जाने कहां गायब हो गई ? और उसने जवाब देना आरंभ कर दिया- ऐसा कुछ भी नहीं है, हम आम आदमी हैं, और आम व्यक्ति सबसे पहले अपने जीने का साधन करता है। आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी -''भूखे भजन ना ही गोपाला। '' हमारे परिवार के प्रति, समाज के प्रति भी कुछ उत्तरदायित्व हैं, इस कार्य को करते हुए भी मैं अपना साहित्य का सपना अवश्य पूरा करूंगा। किंतु इसके लिए मुझे थोड़ा समय चाहिए ताकि मैं हर चीज को सही तरीके से समझ और कर सकूं। जहां तक नौकरी का प्रश्न है, उसमें मेरी किसी भी तरह की लापरवाही नहीं होगी, क्योंकि वही मेरी रोजी -रोटी तो वही होगी। उसके जबाब सुनकर वह लोग आपस में एक दूसरे को देखने लगे, अभी जो कुछ देर पहले विशाल आया था, उसके चेहरे पर परेशानी, हताशा झलक रही थी और अचानक इसे क्या हुआ ?विशाल को बाहर प्रतीक्षा करने के लिए कहा गया।

 शाम को, जब सूची लगाई गई उसमें विशाल का नाम सबसे ऊपर था, वह अत्यंत प्रसन्न हुआ उसे लग रहा था जैसे उसने आकाश को अपनी बाजूओं में समेट लिया हो। वह सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ गया था। अपने पिता के अरमानों को, ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए, उनके सपनों को उड़ान देने के लिए, उसके पांव स्वतः ही घर की ओर चल दिए थे। 


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