Laxmi Tyagi

Romance Tragedy Inspirational

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Laxmi Tyagi

Romance Tragedy Inspirational

जाने का डर

जाने का डर

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स्वांती परेशानी में बैठी थी , उसके मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे, क्या यह सही होगा ? जो लोग सोचते हैं या कहते हैं, वे सही हैं। समझ नहीं आ रहा क्या करूं? जब प्रणव ने बताया -कि वह बाहर पढ़ने जाना चाहता है। उस समय स्वांति इस बात को हल्के में ले रही थी किंतु जब उसे मालूम पड़ा कि बेटा इस बात के लिए गंभीर है ,तो वह भी गंभीर हो गई और उसे नए-नए डर सताने लगे। उन डर के रहते, उसने बेटे से कहा-क्यों क्या अपने ही देश में अच्छे स्कूल कॉलेज नहीं है, क्या हम यहीं से नहीं पढ़े हैं? क्या विदेश में ही बेहतर पढ़ाई होती है ?


नहीं, मम्मी !पढ़ाई तो यहां भी अच्छी होती है किंतु जिस कोर्स को मैं करना चाहता हूं ,वह तो विदेश में ही है। बेटे की बात पर स्वाति को हंसी आई और बोली -हमारे देश में ऐसा क्या नहीं है ?सब कुछ तो है ,वही नहीं है कुछ और कोर्स कर लो ! जरूरी नहीं ,कि वहीं पढ़ाई तुम्हें करनी है क्योंकि बेटे के जाने का डर, उस पर हावी हो रहा था। 


प्रणव ने जब जाने के विषय में सोचा था ,तब उसे मम्मी का विचार आया था और उसे लग रहा था ,शायद मम्मी उसे बाहर जाने नहीं देंगी , तब अपने आप में विश्वास जगाया -मैं धीरे-धीरे मम्मी को मना लूंगा, आरंभ में तो माता-पिता को डर लगता ही है , धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है। उसका एक दोस्त भी उसके साथ जाने के लिए तैयार था, यही डर उसकी मम्मी को भी सता रहा था किंतु उन्हें तो उसके प्रतियोगिता की परीक्षा का बहाना मिल गया और उन्होंने उसे यह कहकर रोक लिया कि जिसकी तैयारी कर रहे हो, पहले उसके इम्तिहान देकर जाना। 


अब प्रणव अकेला पड़ गया था, वैसे तो उसके मन में भी थोड़ी घबराहट थी, उसे भी अकेले जाने से डर लग रहा था और वह भी पराए देश में, किंतु उसने अपने आप को संभाला , और समझाया- जब हमें कोई कार्य करना है, हमारी मंजिल तय है तो फिर हमें घबराना कैसा ? किसी का सहारा न लेकर अकेले ही आगे बढ़ना होगा। दूसरों के लिए मिसाल बनना होगा।अपनी दूरी , अपने दम पर ही तय करनी है , यह सोचते हुए उसका इरादा और दृढ़ हो गया। 


किंतु स्वाति अभी भी अपने डर से बाहर नहीं आई थी, क्योंकि उसने लोगों से सुना था कि जब बच्चे विदेश में चले जाते हैं ,तो वहीं के होकर रह जाते हैं। माता-पिता उनकी प्रतीक्षा करते रहते हैं , वहां से पैसे तो भिजवा देते हैं किंतु उनका आना नहीं होता है । अपने बच्चे के खोने के डर के कारण वह, उसे इजाजत नहीं दे रही थी। यह डर एक सांप की तरह उसे लिपटा हुआ था। आज भी एकांत में वह यही सब सोच रही थी- उसने देखा,बरबस ही, उसकी आंखों से आंसू आ गए। यदि वह चला गया और वापस अपने देश में नहीं आया वहीं का होकर रह गया ,वहीं बस गया तो....... हमारा क्या होगा ?


तभी उसके दिल ने उसे समझाया -स्वांति तू इतनी, स्वार्थी मत बन, बच्चे की उन्नति में बाधक मत बन ! एक न एक दिन तो सभी को जाना होता है। जब तू चली जाएगी ,तो बच्चे के मन में क्या रहेगा? कि मैं उन्नति करने के लिए बाहर जा रहा था किंतु मेरी उन्नति के मार्ग में मेरी मां ही बाधक बन गई। यदि बच्चा नहीं आएगा, तू तो उसके पास जा सकती है। समीप रहकर ही कौन से बच्चे माता-पिता की सेवा कर रहे हैं ? जिन्हें माता-पिता से प्यार होता है, अपने देश से लगाव होता है. वह अपना कार्य पूर्ण करके वापस भी आ सकते हैं। जब तक हम लोग जिंदा है, तब तक स्वार्थ में लिपटे हुए हैं। जब हम ना रहेंगे तब एक बच्चा भी तो माता - पिता के बगैर जीता है। तू क्यों परेशान होती है ? उसे खुशी-खुशी विदा कर, प्रसन्नतापूर्वक उसके मार्ग को प्रशस्त कर, जब जीवन में वह सफल होगा , तेरे जीवन का लिए सबसे, महत्वपूर्ण पग यही होगा। यह तो जीवन चक्र है, इंसान पैदा होता है, इस देश में हो या विदेश में ,उन्नति के लिए बाहर जाता है गांव में हो या शहर में , उसका परिवार भी बसता है।


 इस बीच यदि माता-पिता उसकी उन्नति में अवरोध पैदा करते हैं , तब उनसे स्वार्थी कोई नहीं, जब किसी को उन्नति का मार्ग मिल रहा है , तो उसे क्यों रोकना ? धीरे-धीरे स्वांति के सभी ड़र की गांठें खुलती चली गईं और वह बाहर आई और उसने अपने बेटे को समझाया -अपनी शिक्षा पूर्ण करके यदि इच्छा हो तो कुछ दिन वहीं रहना वरना अपने घर चले आना , किसी बात की कोई परेशानी हो तो हमें फोन करना। हम यहां भले ही रहेंगे, किंतु यह मत समझना कि वह विदेश में अकेला है। 


स्वांति की बातें सुनकर प्रणव को आश्चर्य तो हुआ किन्तु उसका विश्वास और दृढ़ हो गया उसके माता-पिता उसके साथ हैं। विदेश जाना भी इतना सरल नहीं है , बहुत मशक्कत के पश्चात, आज उसका बेटा, विदेशी यात्रा करेगा क्योंकि अब स्वाति उसके '' जाने के ड़र'' से मुक्त हो चुकी है। 


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